छुट्टी से लौटे सज्जन और इंटरनेट का ग़ायब जादू: तकनीकी सपोर्ट की मजेदार दास्तान
भाई साहब, इंटरनेट जब चलना बंद कर दे तो घर में जैसे भूचाल आ जाता है! और अगर आप सोच रहे हैं कि ये सिरदर्द सिर्फ भारत में होता है, तो ज़रा ठहरिए। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो अमेरिका के एक छोटे से शहर में घटी, लेकिन इसमें जो हास्य है, वो हर भारतीय को अपनापन महसूस कराएगा। चलिए, शुरू करते हैं उस इंटरनेट-महाशय की कहानी, जो छुट्टी के बाद अचानक "लापता" हो गया!
मामला कुछ यूँ था कि 2000 के दशक के मध्य में एक छोटे से Wireless Internet Service Provider (WISP) में एक सज्जन टेक-सपोर्ट की नौकरी करते थे। उनके मालिक, जो खुद अपने जीवन के "क्लाइमेक्स" (मतलब तलाक़) से जूझ रहे थे, ज़्यादातर गायब ही रहते थे। तो साहब, सारा बोझ हमारे टेक-सपोर्ट वाले भाई के कंधों पर! ग्राहक सेवा, बिक्री, इंस्टॉलेशन की तैयारी – जैसे एक ही आदमी में सुपरमैन, चाचा चौधरी और शक्ति कपूर सब समा गए हों।
अब एक दिन सुबह-सुबह, ऑफिस से 20 मील दूर एक ग्राहक का फोन आया – "अरे भैया, इंटरनेट नहीं चल रहा!" हमारे टेक-सपोर्ट साहब ने तुरंत खाता देखा, नेटवर्क की जाँच शुरू की – टावर से लेकर ग्राहक के घर तक पिंग (ping) मार-मारकर देख लिया। टावर बिलकुल बढ़िया, CPE (Customer Premises Equipment) भी एकदम फिट, लेकिन ग्राहक के राउटर का IP – बिल्कुल खामोश।
ग्राहक से पूछताछ शुरू हुई – "भैया, केबल चेक कर लो, राउटर रीस्टार्ट कर लो।" जवाब – "सब सही है, मैं छुट्टी पर जाने से पहले सब ठीक-ठाक छोड़ गया था, कोई बदलाव नहीं हुआ।" यानी सीधा-सीधा ठीकरा टेक-सपोर्ट वाले के सिर!
हमारे साहब ने फ़रमाया – "अगर मैं आऊँ और आपकी ही गलती निकली, तो सर्विस चार्ज लगेगा।" ग्राहक बोले – "ठीक है, मैं फिर से देख लेता हूँ।"
अब यहाँ एक भारतीय कहावत याद आती है – "ऊँट के मुँह में जीरा।" दिनभर पिंग चलता रहा, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं। आखिरकार, दोपहर के बाद ग्राहक फिर फोन पर – "भैया अब भी इंटरनेट बंद है, आप आ जाओ।" समय तय हुआ – शाम 4 बजे। टेक-सपोर्ट वाले ने सोचा, चलो आज जल्दी घर निकल लेंगे।
लेकिन जैसे ही ऑफिस बंद करने लगे, ग्राहक का फोन आ गया – "भैया, अब इंटरनेट चलने लगा, आप मत आइए!" असली वजह? जनाब, छुट्टी पर जाने से पहले उनकी पत्नी ने राउटर का प्लग ही निकाल दिया था!
अब बताइए, जो सवाल सबसे पहले पूछा जाता है – "सब कुछ प्लग इन है ना?" – उसका जवाब गलत देकर साहब लगभग 100 डॉलर गंवा बैठते।
इस कहानी को पढ़कर आपको अपने देश के वो तमाम किस्से याद आ रहे होंगे, जहाँ मम्मी टीवी का प्लग निकालकर बिजली बचाने का दावा करती हैं, या दादी मोबाइल की बैटरी फुल रखने के लिए उसे बार-बार चार्जर से निकालती हैं।
रेडिट पर इस कहानी के नीचे लोगों की प्रतिक्रियाएँ भी कम दिलचस्प नहीं थीं। एक सज्जन लिखते हैं – "मेरे भांजे के घर में तो छोड़िए, फ्रीज़ को छोड़कर सब कुछ अनप्लग हो जाता है!" एक और महाशय ने बताया कि उनकी माँ इंटरनेट बंद करके चोरों से बचने की सलाह देती थीं, और उनकी गर्लफ्रेंड तो हर रात राउटर का प्लग निकाल देती थीं – जैसे चोरों को WiFi से डर लगता हो!
एक कमेंट में एक तकनीकी सहायक ने अपनी ट्रिक बताई – "ग्राहक को बोलते हैं, राउटर का प्लग निकालो, इससे वो खुद देख लेते हैं कि प्लग पहले से ही बाहर है। फिर हम उन्हें बधाई देते हैं कि पहला स्टेप सही कर लिया!"
एक और मजेदार प्रतिक्रिया – "कई बार लोग सोचते हैं कि उनका घर का WiFi पासवर्ड हर होटल में चल जाएगा! एक बार एक महिला ने होटल में कॉल किया कि इंटरनेट नहीं चल रहा, जबकि उन्हें नया पासवर्ड डालना ही नहीं आता था।"
असल में, ये किस्से सिर्फ हँसी का विषय नहीं, बल्कि इस बात की मिसाल हैं कि तकनीकी समस्याओं में सबसे छोटी गलती भी बड़ा सिरदर्द बन जाती है – और हमारी आदतें, चाहे अमेरिका हो या भारत, एक जैसी ही हैं।
सोचिए, हमारे यहाँ भी कितनी बार बिजली जाने पर टीवी या इंटरनेट नहीं चलता, और हम तुरंत कंपनियों को कोसने लगते हैं – जबकि असली वजह कभी-कभी एक ढीला प्लग या बंद स्विच होती है।
अंत में, टेक-सपोर्ट वालों को हमारा सलाम! ये लोग हर दिन "इंटरनेट बंद है" जैसी शिकायतों का सामना करते हैं, और फिर भी धैर्य से पूछते हैं – "साहब, सब कुछ प्लग इन है ना?"
अब आपकी बारी – क्या आपके साथ भी कभी ऐसी कोई फनी टेक्निकल समस्या हुई है, जिसका हल एक मामूली प्लग या स्विच में छुपा था? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए, ताकि हम सब मिलकर हँस सकें और अगली बार से टेक-सपोर्ट वाले की सबसे पहली सलाह को दिल से अपनाएँ – "पहले चेक कर लो, कहीं प्लग तो बाहर नहीं है!"
मूल रेडिट पोस्ट: It was working before I left for vacation.