छुट्टियों में होटल के गलियारों में खोए मेहमान: याददाश्त और अपनापन की कहानी
छुट्टियों का मौसम आते ही हर जगह चहल-पहल बढ़ जाती है। परिवार के साथ सफर, नए शहर, होटल में ठहरना – सब कुछ बड़ा रोमांचक लगता है। लेकिन सोचिए, अगर आपके परिवार में कोई बुज़ुर्ग हैं जिनकी याददाश्त कमजोर है, या फिर किसी को डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर जैसी बीमारी है, तो सफर का ये मज़ा अचानक चिंता में बदल सकता है। होटल के गलियारों में भटकते, दरवाज़े पर दस्तक देते, और अजनबी जगह को पहचानने की कोशिश करते ये मेहमान कई बार होटल स्टाफ के लिए भी पहेली बन जाते हैं।
बुज़ुर्ग मेहमानों की टेढ़ी-मेढ़ी राहें: होटल स्टाफ की असली परीक्षा
एक होटल रिसेप्शनिस्ट की कहानी सुनिए—हर छुट्टियों के मौसम में उन्हें ऐसे मेहमानों का सामना करना पड़ता है, जो अपनी याददाश्त के चलते कमरे से बाहर निकल कर गलियों में भटकने लगते हैं। एक बार एक परिवार आया—दादाजी, मम्मी-पापा और दो छोटे बच्चे। दादाजी को भूलने की बीमारी थी। रात के सन्नाटे में वे चुपके से कमरे से निकल जाते और होटल के दरवाज़ों पर दस्तक देने लगते, रास्ता भूल जाते। हर रात रिसेप्शनिस्ट को कॉल आता—"कमरा नंबर 304 के सामने कोई बार-बार दरवाज़ा पीट रहा है!"
होटलवाले भागते-भागते दादाजी को खोजकर उनके कमरे में छोड़ आते और परिवार को जगा देते, जो बेचारे समझ ही नहीं पाते कि दादाजी कब निकल गए। सोचिए, हमारे देश में तो बरसों पहले से घर के दरवाज़े के पीछे घंटी या बाल्टी रखने का रिवाज है, जिससे कोई बाहर जाए तो आवाज़ हो जाए। लेकिन विदेशों में होटल के दरवाज़ों पर ऐसी कोई जुगाड़ नहीं!
नई जगह, नई परेशानियां: याददाश्त से जूझते मेहमानों की मज़ेदार-चिंताजनक बातें
ऐसे ही एक रात की बात है—एक बुज़ुर्ग महिला रिसेप्शन पर आईं, बोलीं, "मुझे अभी होटल छोड़ना है! कमरे में लोग बहुत शोर कर रहे हैं, कोई बुलडोज़र चला रहा है, ड्रिलिंग हो रही है!" उनके पति पीछे-पीछे आते हुए बोले, "अरे भाग्यवान, चलो कमरे में वापस, कोई शोर नहीं है।" लेकिन दादीजी मानी नहीं, रिसेप्शनिस्ट को साथ लेकर गलियारे में निकल पड़ीं, रास्ते में हर आते-जाते मेहमान से पूछती रहीं, "इतना शोर सुनकर आप लोग सो कैसे लेते हैं?"
कमरे में पहुंचने पर रिसेप्शनिस्ट को बस हीटर की आवाज़ सुनाई दी। दादीजी को समझाया—"यहाँ तो कोई नहीं है, बस हम तीन हैं और हीटर चल रहा है।" दादीजी बोलीं, "किसी ने दरवाज़ा जोर-जोर से खटखटाया, तभी मैं जाग गई।" उनके पति ने धीरे से कहा, "इन्हें डिमेंशिया है, माफ़ करिएगा।" रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया, पर मन ही मन जानता था कि शायद दादीजी फिर गलियारों में भटकती मिलेंगी।
इंसानियत और अपनापन: दो मिनट की दया, जीवन भर की याद
ऐसे अनुभवों के बीच, होटल स्टाफ की छोटी-छोटी अच्छाइयाँ इन बुज़ुर्गों और उनके परिवारों के लिए बहुत मायने रखती हैं। एक कमेंट में किसी ने कहा, "मैंने अपने माता-पिता की देखभाल की है—डिमेंशिया और कैंसर दोनों के साथ। उस दौर में होटल या अस्पताल के किसी अजनबी ने अगर मुस्कुरा कर बात कर ली, कोई मदद कर दी, तो वो पल आज भी याद हैं। जब सारी दुनिया अजनबी लगे, तब एक छोटा सा अपनापन जीवन में सुकून भर देता है।"
दूसरी ओर, होटल स्टाफ के लिए भी ये चुनौती कम नहीं। कई बार उन्हें पुलिस बुलानी पड़ती है, जैसे एक बार एक दादीजी अपने पति को 'गुमशुदा' बताकर रिसेप्शन पर आ गईं, जबकि असल में वे अपनी बहन और जीजा के साथ यात्रा कर रही थीं। रिसेप्शनिस्ट ने घंटों कैमरों की फुटेज देखी, पुलिस के साथ मिलकर सही कमरा पता किया। जब तक सारा मामला सुलझा, दादीजी रिसेप्शनिस्ट को अपना 'रक्षक' समझने लगीं और बोलीं—"मैं यहीं बैठूंगी, जहाँ से आपको देख सकूं!"
परिवार की जिम्मेदारी और होटल स्टाफ की सीमाएँ
कई पाठकों ने सलाह दी—अगर आपके परिवार में कोई बुज़ुर्ग या याददाश्त से जूझ रहे सदस्य हैं, तो यात्रा से पहले होटल स्टाफ को ज़रूर सूचित करें। एक सज्जन ने लिखा, "हमने होटल के खाते पर नोट लगवा दिया था, साथ ही रोज़ अपने प्रियजन की फोटो खींच लेते थे, ताकि अगर कहीं भटक जाएं तो आसानी से पहचान हो सके।" लेकिन होटल स्टाफ की भी अपनी सीमाएँ हैं। जैसा कि एक होटल कर्मचारी ने कहा, "हम पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन एक पल की चूक से भी कोई बाहर निकल सकता है। जिम्मेदारी परिवार की भी उतनी ही है।"
हास्य और अपनापन: जिंदगी का असली स्वाद
इन सबके बीच, थोड़ी-सी हंसी-ठिठोली भी चलती रहती है। किसी ने लिखा, "मेरी दादी होटल में बार-बार गुम हो जाती हैं, लेकिन होटल और कैसीनो के लोग इतने भले हैं कि हर बार उन्हें ढूंढकर कमरे तक छोड़ आते हैं। दादी खुद कॉल नहीं करतीं क्योंकि उन्हें लगता है कि मुझे तंग न करें—और होटल वाले भी दादी की जुआ खेलने की आदत से खुश हैं, आखिर उनका मुनाफ़ा जो बढ़ता है!"
तो अगली बार जब आप छुट्टियों में परिवार के साथ होटल जाएं, तो अपने बुज़ुर्गों का ख्याल रखें, होटल स्टाफ को ज़रूरी जानकारी दें, और किसी अजनबी बुज़ुर्ग को गलियारे में भटकता देखें तो मुस्कुरा कर मदद ज़रूर करें। आखिर जिंदगी वही है—थोड़ा अपनापन, थोड़ी हंसी, और सबका साथ।
समाप्ति पर एक सवाल: क्या आपके परिवार में कभी ऐसी कोई घटना हुई है? या आपने किसी बुज़ुर्ग यात्री की दिलचस्प हरकत देखी हो? कमेंट में ज़रूर बताइए, आपकी कहानी भी किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है!
मूल रेडिट पोस्ट: It is that time of the year, be on the lookout for confused guests