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चाबी गई तो दुकान बंद! – जब मैनेजर की पक्षपाती भतीजी को मिला करारा जवाब

1970 के दशक की पुरानी कपड़ों की दुकान का दृश्य, जिसमें धातु का गेट और छुपा हुआ चाबी है।
1970 के दशक की कपड़ों की दुकान में एक सिनेमाई झलक, जहां राज छिपे हैं और यादें जीवित हैं। जानिए उस चाबी की कहानी जो गर्मियों की रातों को बंद करती थी।

कहते हैं, “जैसी करनी, वैसी भरनी।” ऑफिस या दुकान हो, रिश्तेदारी और पक्षपात अगर हद से बढ़ जाए तो कभी-कभी सामने वाले का गुस्सा भी अनोखे अंदाज में फूटता है। आज की कहानी है 70 के दशक की एक साधारण सी दुकान, एक मेहनती कर्मचारी और एक ‘खास रिश्ते’ वाली भतीजी की, जिसमें एक छोटी सी चाबी बिगाड़ देती है पूरे मैनेजमेंट के होश!

जब मेहनत की जगह रिश्तेदारी ले गई नौकरी

हमारे नायक उस दौर के हैं जब मॉल में कपड़ों की दुकानों की बड़ी धूम थी और बच्चों को गर्मियों की छुट्टियों में छोटा-मोटा काम मिलना किसी उपलब्धि से कम नहीं था। दो साल तक पूरी ईमानदारी से दुकान बंद करने, चाबी संभालने और ग्राहकों से मुस्कुराकर बात करने के बाद, एक दिन मैनेजर साहब ने अपनी भतीजी ‘कैटी’ को नौकरी पर रख लिया। अब भारतीय समाज में भी यह नया नहीं है—कई बार बॉस अपने जान-पहचान वाले, रिश्तेदार या पड़ोसी के बच्चे को नौकरी में घुसा देते हैं, बाकी काबिल लोग देखते रह जाते हैं।

जैसे-जैसे ‘कैटी’ की एंट्री हुई, वैसे-वैसे हमारे नायक की शिफ्ट घटती गई। हफ्ते में 40 घंटे से गिरकर 20 घंटे से भी कम। आखिरकार, शिकायत करने पर जवाब मिला—“नापसंद है तो छोड़ दो।” यही तो हमारे यहां भी होता है, “मालिक की मर्जी”, कर्मचारी बेचारा।

बदले की आग – ठंडा परोसा गया बदला

अब असली मजा तो यहीं है। गुस्सा तो हर कोई होता है, पर बदला हर कोई नहीं ले पाता। हमारे नायक ने भी नौकरी छोड़ दी, पर दिल में बात चुभ गई। कुछ हफ्ते बाद मौका आया जब कैटी और वे खुद अलग-अलग दुकानों में, पर एक ही मॉल में, बंद करने की शिफ्ट में थे। पुराने अनुभव से मालूम था कि दुकान की चाबी हमेशा उसी कोने में, शटर के ठीक नीचे छुपाई जाती है—ताकि अगली सुबह वाला कर्मचारी आसानी से खोल सके। उस रात, कैटी ने भी वही किया।

जैसे ही कैटी गई, हमारे नायक ने चुपके से शटर के नीचे से चाबी उठाई और मॉल के बाहर कूड़ेदान में फेंक दी। 70 के दशक में सीसीटीवी का नामोनिशान नहीं था—बैंक और गहनों की दुकानों को छोड़कर बाकियों के लिए तो बस भगवान ही मालिक!

अगली सुबह – चाबी का खेल और मैनेजर की बेचैनी

सुबह जब मॉल की दुकानें खुलीं, सारी दुकानें गुलजार, पर कैटी की दुकान बंद! दोपहर तक कोई हलचल नहीं, ग्राहक बाहर इंतजार करते रहे, बाकी दुकानदार हंसते रहे। आखिरकार, मैनेजर साहब खुद अपनी चाबी लेकर हड़बड़ाते हुए पहुंचे—सुना है, वह बाहर शहर गए थे, सिर्फ दुकान खोलने के लिए लौटे! सोचिए, उनके ‘खास’ स्टाफ की वजह से उनकी छुट्टी भी खराब हो गई।

मैनेजर ने जब हमारे नायक से पूछा—“तुम्हें कुछ पता है चाबी के बारे में?”—तो उन्होंने मासूमियत से जवाब दिया, “अरे! लगता है कैटी को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए था।”

कमेंटबाज़ी – जनता की राय और चुटकीले ताने

रेडिट की दुनिया में इस कहानी पर खूब मजेदार कमेंट्स आए। एक पाठक ने लिखा, “यहां तो नेपोटिज़्म ही उसकी सफलता की चाबी थी!” (नेपोटिज़्म यानी रिश्तेदारी के आधार पर नौकरी देना, जो हमारे यहां भी खूब चलता है)। दूसरे ने चुटकी ली, “आपने तो उनकी कमजोरी पर ताला जड़ दिया!” एक और कमेंट बड़ा मजेदार था, “अब उसकी भतीजी का नाम ‘की-टी’ ही हो गया।”

किसी ने कहा, “बॉस अगर अपने कर्मचारियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेगा, तो यही होगा—छुट्टियों में भी दुकान खोलनी पड़ेगी!” एक पाठक ने तो अपनी कहानी भी साझा की—“हमारे यहां भी पेट्रोल पंप पर मालिक ने अपने भाई को नौकरी दे दी, मैं तो बाहर ही हो गया।”

कई लोगों ने यह भी कहा कि ऐसी छोटी-छोटी हरकतें ऑफिस पॉलिटिक्स में आम हैं, लेकिन मजा तब आता है जब कोई चुपके से अपने अंदाज में बदला ले ले। एक पाठक ने लिखा, “आपने जो किया, उसके लिए हिम्मत चाहिए, वरना कितने लोग ऐसे अन्याय को सिर्फ सहकर रह जाते हैं।”

भारतीय संदर्भ – जब ‘चाबी’ बन जाती है इज्जत और जिम्मेदारी की पहचान

हमारे यहां भी दुकानों, दफ्तरों या गोदामों की चाबी किसी आम चीज़ से कम नहीं मानी जाती। “चाबी संभालना” यानी मालिक का विश्वास, जिम्मेदारी और ईमानदारी की परीक्षा। घर में भी पुराने ताले की चाबी बड़ी संभालकर रखी जाती है—कहीं खो गई तो सबकी खैर नहीं!

सोचिए, अगर आपकी मेहनत के बावजूद, किसी रिश्तेदार को आपकी जगह दी जाए, तो आपको कैसा लगेगा? शायद आप भी इस कहानी के नायक की तरह मौका देखकर ‘चाबी’ से अपनी बात कह दें।

निष्कर्ष – आपकी राय क्या है?

तो दोस्तों, क्या आपने भी कभी ऑफिस या दुकान में ऐसी पक्षपात या राजनीति देखी है? क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ कि मेहनत के बाद भी किसी ‘खास’ को तवज्जो मिली? और अगर बदला लेने का मौका मिले तो आप क्या करेंगे—सीधा सामना या ऐसा ही कोई ‘प्यारा’ बदला?

नीचे कमेंट में अपनी कहानी जरूर साझा करें। क्या पता, अगली बार आपकी कहानी भी सबको गुदगुदा दे!

आपकी राय का इंतजार रहेगा। और हां, अगली बार चाबी हमेशा जिम्मेदारी से संभालें—क्योंकि कभी-कभी एक छोटी सी चूक बड़ी कहानी बना सकती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Key? What key?