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केविना : चूहे से डरती कैंसर रिसर्चर की अनोखी कहानी

केविना, एक कैंसर शोधकर्ता, एक सिनेमाई जैव विज्ञान प्रयोगशाला में प्रयोगशाला चूहों का अवलोकन करती हैं।
इस सिनेमाई चित्रण में, केविना, कैंसर शोधकर्ता, विशेष रूप से पाले गए चूहों का बारीकी से अध्ययन करती हैं, जो चिकित्सा अनुसंधान की लगन और जटिलता को उजागर करता है। आइए हम उनकी यात्रा और पशु अनुसंधान में नियमों की महत्वपूर्ण भूमिका का पता लगाएं।

कभी सोचा है कि किसी डॉक्टरनुमा रिसर्चर को चूहों से इतना डर लग सकता है कि वो अपनी पूरी टीम की मुसीबत बन जाए? जी हां, आज की कहानी है “केविना” की, जिसने कैंसर रिसर्च के नाम पर ऐसी अद्भुत मिसाल पेश की, जिसे सुनकर आप हँसी भी रोक नहीं पाएंगे और सिर भी पकड़ लेंगे।

हमारे देश में अक्सर लोग सोचते हैं कि विज्ञान और डॉक्टरों के काम में सब बड़े ही तेज, समझदार और बहादुर होते हैं। लेकिन जनाब, हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती — कई बार डिग्री की अलमारी में भी कोई “केविन/केविना” छुपा बैठा होता है!

चूहों का डर और रिसर्च लैब का महौल

ये किस्सा एक बायोलॉजी लैब का है, जहाँ खास किस्म के चूहों पर कैंसर रिसर्च होती थी। वैसे तो ऐसे लैब्स में बिना परमिशन और ट्रेनिंग के कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पर जब नई ग्रेजुएट स्टूडेंट यानी केविना आई, तो सबको लगा – अब रिसर्च में चार चाँद लगेंगे।

लेकिन असली तमाशा तो तब शुरू हुआ, जब केविना को पहली बार चूहों के कमरे में ले जाया गया। उस समय वो इतनी घबराई कि मानो उसे किसी भूतिया हवेली में छोड़ दिया गया हो! एक कमेंट करने वाले ने बड़े मज़ेदार अंदाज में कहा – 'मेरी बहन को भी चूहों से ऐसा ही डर लगता है, उसने तो मेरे कमरे में साल भर कदम ही नहीं रखा, डर के मारे!' (TIL Musophobia - चूहों का डर)

एक्सपोज़र थेरेपी या टीम की मुसीबत?

केविना ने खुद स्वीकार किया कि उसे चूहों से डर लगता है, लेकिन सोचा कि काम करते-करते डर अपने आप चला जाएगा। अरे भई, ये तो वही बात हुई जैसे कोई सांप से डरने वाला नागपंचमी पर सपेरे की नौकरी पकड़ ले! टीम ने उसे समझाने, सिखाने और हिम्मत दिलाने की लाख कोशिश की – पर हर बार वही हाल, चूहा हिले तो केविना दो कदम पीछे!

लैब टेक्नीशियन ने सोचा कि चलो, उसे डाटा कलेक्शन दिखाते हैं, ताकी धीरे-धीरे डर निकल जाए। लेकिन नतीजा? 15 मिनट में केविना वर्कबेंच से कई फीट दूर जा खड़ी हुई। आखिरकार पता चला, उसका ये डर 'मुसोफोबिया' है – यानी चूहों से डरने की बीमारी। कोई कमेंट करता है, 'एक जानकार लिखते हैं कि एक्सपोज़र थेरेपी भी तभी काम करती है जब आपके पास खुद को सुरक्षित बाहर निकालने का विकल्प हो – यहाँ तो केविना के पास वो भी नहीं था!'

टीम वर्क का चक्का जाम

केविना की वजह से न सिर्फ उसकी खुद की रिसर्च फेल हुई, बल्कि जिन चूहों के लिए परमिशन, पैसा और मेहनत पहले ही लग चुकी थी, उनका प्रोजेक्ट भी बीच मंझधार में फंस गया। बाकी टीम वालों को नयी रिसर्च के लिए फंडिंग, अनुमति और टाइम निकालना पड़ा — और लैब टेक्नीशियन के सिर पर नया बोझ चढ़ गया।

एक कमेंट में किसी ने लिखा, 'अरे भई, कितने ऐसे लोग देखे हैं जिन्होंने साइंस में डिग्री तो ले ली, पर अक्ल औसत से भी कम। किताबें पढ़कर डिग्री मिल जाए, पर कॉमन सेंस कहाँ से लाएँ?' एक और कमेंट में एक दिलचस्प घटना थी – 'मेरे साथ वाली एक लड़की खुद प्रेग्नेंट थी, पर फर्जी टेस्ट देकर रिसर्च लैब में काम पकड़ लिया, जहाँ रेडिएशन और केमिकल्स से बच्चे को खतरा था। ऐसा भी कॉमन सेंस कौन छोड़ता है!'

भारतीय संदर्भ : ऐसे 'केविन/केविना' हर जगह मिलते हैं

हमारे देश में भी आपने देखा होगा – कोई इंजीनियर बनने चला, पर गणित से डरता है; कोई डॉक्टर बना, पर खून देखकर बेहोश हो जाता है। ऐसे किस्से अक्सर मेडिकल, इंजीनियरिंग और सरकारी दफ्तरों में भी सुनने को मिल जाते हैं।

कभी-कभी लोग सोचते हैं, बस डिग्री मिल जाए, बाकी सब अपने आप हो जाएगा। पर सच्चाई यही है – अगर काम की बुनियादी जरूरत ही पूरी नहीं कर सकते, तो न टीम का भला होता है, न खुद का। ऊपर से बाकी लोगों पर भी बिना वजह का बोझ पड़ता है।

पाठकों के लिए सवाल

तो दोस्तों, क्या आपके ऑफिस, कॉलेज या मोहल्ले में भी कोई 'केविन/केविना' है, जिसके कारनामे सुनकर सबका सिर चकरा जाए? या फिर कभी खुद ऐसी अजीबो-गरीब गलती कर बैठे हों? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, अगली बार अगर किसी को चूहे या छिपकली से डर लगता हो, तो उससे रिसर्च लैब या बायोलॉजी प्रैक्टिकल में हाथ आजमाने से पहले सौ बार सोचने को कहिएगा!

अंत में, यही कहेंगे – "डर के आगे रिसर्च कभी नहीं होती!"

आपकी ऐसी ही मजेदार कहानियों का इंतजार रहेगा — पढ़ते रहिए, हँसते रहिए, और सीखते रहिए!


मूल रेडिट पोस्ट: Kevina the cancer researcher