केविन और चावल का रहस्य: जब ऑफिस में शुरू हुआ 'चिल्लाना प्रयोग
ऑफिस की दुनिया में हर कोई ऐसे किसी न किसी 'ज्ञान के सागर' से जरूर टकराता है, जो वक्त-वक्त पर अपने अनोखे प्रयोगों से सबको हैरान कर देता है। हमारे देश में ऐसे लोग अक्सर 'ज्ञानचंद', 'फुलझड़ी', या 'विज्ञान के मामा' के नाम से मशहूर होते हैं। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक केविन नामक सज्जन ने पूरे ऑफिस में तहलका मचा दिया – वो भी चावल के डिब्बों पर चिल्ला-चिल्लाकर!
केविन का चावल प्रयोग: 'वाइब्स' का विज्ञान या बेवकूफी का महासागर?
केविन कोई साधारण इंसान नहीं था। दिमाग तेज़ था, हाथों में हुनर भी था, पर सोच ऐसी कि कभी-कभी समझ नहीं आता था कि इन्हें दिमाग कहाँ और कब लगाना है। कभी LED लाइट्स से घर को सजाने लग जाते, तो कभी रसोई में नई-नई रेसिपी ट्राई करते। लेकिन जब इनका 'प्यारा' माइंड पगला जाता, तो सीधे 'जुगाड़ू विज्ञान' की दुनिया में कूद पड़ते।
इसी सिलसिले में एक दिन केविन ऑफिस में तीन कांच के डिब्बे लेकर आए - सभी में चावल भरे हुए। बड़े गर्व से बोले, "दोस्तों, एक जापानी वैज्ञानिक ने साबित किया है कि अगर आप किसी चीज़ को प्यार से देखें, तो वो प्यारी बन जाती है, और गुस्से से देखें, तो सड़ जाती है। हमें ये ऑफिस में ट्राई करना चाहिए।"
सुनकर सबकी आँखें फटी की फटी। हमारे देश में तो लोग तुलसी या मनीप्लांट को दुलारते हैं, पर चावल के डिब्बे पर चिल्लाना? भाई, ये तो 'नया जमाना, नया फसाना' वाला मामला हो गया।
ऑफिस का माहौल और 'पॉजिटिव वाइब्स' की तलवार
केविन ने समझाया - एक डिब्बे को रोज़ 'आई लव यू' कहना है, दूसरे पर 'आई हेट यू' चिल्लाना है, और तीसरे को अनदेखा करना है। एक महीना बाद देखेंगे कि कौन सा चावल सड़ता है, कौन चमकता है।
हमारे बॉस, जो खुद भी 'हवा महल' के राजा थे, थोड़ा चौंके, पर उत्सुक भी हो गए। पूछने लगे, "क्या वाकई ऐसा होता है? ये कौन सा साइंस है?" केविन तपाक से बोले, "अरे, इंटरनेट के 'वैज्ञानिक' ने बताया है! आप भी ट्राई कीजिए।"
हमारे एक सहकर्मी ने तो साफ कह दिया, "भाई, मैं महीनेभर चावल पर चिल्लाने नहीं वाला। ये तो बिलकुल बे-सिर-पैर की बात है।" इस पर केविन नाराज़ हो गए, बोले, "जब तक खुद ट्राई नहीं करोगे, कैसे मानोगे? ये विज्ञान है!"
चावल पर चिल्लाना: विज्ञान, भ्रम या मनोरंजन?
यहां बात सिर्फ एक अजीब प्रयोग की नहीं थी। ऑनलाइन कम्युनिटी में भी इस किस्से ने तहलका मचा दिया। एक यूज़र ने लिखा, "कोई रास्ता नहीं जिससे मैं महीनेभर चावल पर चिल्लाऊं!" कुछ ने मज़ाक उड़ाया, "क्या चावल पकाया जाता है या कच्चा ही रह जाता है?" एक कमेंट तो कमाल का था, "मैं रोज़ अच्छे चावल को प्यार से देखता हूं, बुरा मुझे खाना भी नहीं अच्छा लगता!"
भारत में भी कई लोग पौधों से बातें करने या तुलसी को प्रणाम करने में विश्वास करते हैं। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि पौधों को दुलारने से उनका विकास बेहतर होता है। मगर चावल, वो भी पके नहीं, सूखे चावल के डिब्बे? भाई, ये तो 'केविन का विज्ञान' ही हो सकता है!
एक और कमेंट में किसी ने मसालेदार बात कही, "यह प्रयोग तो पौधों के साथ होना चाहिए था, न कि सूखे चावल के साथ।" और किसी ने तो 'घोस्टबस्टर्स 2' फिल्म की याद दिला दी, जहाँ लोग एक कंटेनर में पड़े स्लीम पर गुस्सा निकालते हैं। कुछ ने तो इसे 'पॉजिटिव वाइब्स' का नया जुमला बना दिया।
क्या सच में भावनाएँ चीजों को बदलती हैं?
हमारे समाज में भी कई बार सुनने को मिलता है – 'घर में पॉजिटिविटी रखो', 'पानी को मंत्र पढ़कर दो', 'खाने में माँ का प्यार होता है' वगैरह। सच है कि माहौल और ऊर्जा का असर इंसानों पर पड़ता है – लेकिन क्या सूखे चावल के डिब्बे पर गुस्सा निकालने से वो काला पड़ जाएगा?
वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि भावनाएँ निर्जीव चीज़ों को बदल देती हैं। हाँ, मनोवैज्ञानिक जरूर कहते हैं, 'पॉजिटिव सोच' अपने आप में अच्छी बात है, लेकिन बिना वजह चिल्लाने या गालियाँ देने से न चावल सड़ता है, न आपके ऑफिस का माहौल सुधरता है। उल्टा, लोग आपको 'फेंकू' या 'पगला' समझने लगते हैं।
इस पूरे किस्से में जो सबसे मज़ेदार बात रही, वो थी ऑफिस की प्रतिक्रिया – कोई हँसा, कोई हैरान हुआ, और बॉस बेचारे सोच में पड़ गए कि क्या वाकई जापान और इंटरनेट के वैज्ञानिक मिलकर ऑफिस का माहौल सुधार सकते हैं।
निष्कर्ष: 'चावल पर चिल्लाना' - विज्ञान या टाइमपास?
केविन ने चाहे जितनी मेहनत कर ली, लेकिन ऑफिस का कोई दूसरा सदस्य इस प्रयोग में शामिल नहीं हुआ। असल में, ये पूरा मामला हमें यही सिखाता है कि हर बात, जो इंटरनेट पर दिख जाए, वो विज्ञान नहीं होती। न ही हर जापानी नाम वाला इंसान वैज्ञानिक होता है।
अगर ऑफिस का माहौल खराब है, तो बेहतर संवाद, समझदारी और सहयोग से माहौल सुधरता है – न कि चावल पर चिल्लाने या प्यार जताने से। और अगर आपको कोई 'केविन' मिले, तो प्यार से समझाइए, वरना हँसी मज़ाक में ही छोड़ दीजिए।
आपका क्या ख्याल है – क्या आप कभी ऐसे अजीब प्रयोग का हिस्सा बनना चाहेंगे? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर साझा करें। और हाँ, अगली बार किसी ने आपको 'चावल पर चिल्लाने' को कहा, तो बस मुस्कुरा दीजिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Kevin Screams at Rice