कॉलेज पार्किंग की जंग: जब एक छोटी सी शरारत ने सबक सिखा दिया
कॉलेज लाइफ में अगर किसी चीज़ की सबसे ज़्यादा किल्लत होती है, तो वो है – पार्किंग स्पॉट! सुबह जल्दी आने वाले हमेशा अपने मनपसंद जगह पर गाड़ी लगा लेते हैं, लेकिन जो ज़रा सा भी लेट हो जाए, उसके लिए ये जंग किसी रणभूमि से कम नहीं। अब सोचिए, आप क्लास के बाद थककर आ रहे हैं और कोई आपकी बम्पर के पीछे-पीछे ऐसे चिपक जाए जैसे मुफ्त की मिठाई मिल रही हो!
आज की कहानी कुछ ऐसी ही कॉलेज पार्किंग की है, जिसमें थोड़ा सा ‘पेटी’ (petty) बदला, चुटकी भर मस्ती और ढेर सारी हँसी मिलती है। Reddit यूज़र u/xPearlRosie (जिन्हें हम ‘रोज़ी’ कहेंगे) ने अपनी जिंदगी की ये मज़ेदार घटना शेयर की, जिसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया – 'क्या सही में कभी-कभी छोटी शरारत भी ज़रूरी है?'
पार्किंग का महायुद्ध: जगह की जंग और ‘बम्पर’ वाली भाभी
कहानी शुरू होती है रोज़ी और उनके दोस्त के साथ, जो क्लास के बाद अपनी गाड़ियों की ओर जा रहे थे। तभी एक नई नवेली कारवाली भाभी उनके पीछे-पीछे ऐसे चल रही थीं, जैसे ऑटोवाले मेट्रो से उतरते ही सवारी पकड़ते हैं। वो इतने उतावले थे कि दोनों के बम्पर से चिपक कर बस इंतज़ार कर रहे थे कि कब ये लोग अपनी गाड़ी छोड़ें और वो झपट्टा मारें।
अब आमतौर पर रोज़ी ‘सब चलता है’ वाले मिज़ाज के हैं, लेकिन उस दिन भाभी की हरकतें कुछ ज़्यादा ही चिढ़ाने वाली थीं। तभी दोस्त की गाड़ी भी पास में खड़ी दिखी तो दोनों ने एक नयी चाल चली – “कहीं जाना है?” “नहीं, तुम्हें?” “मुझे भी नहीं!” और फिर क्या था, दोनों ने बैग गाड़ी में डाला और वहीं खड़े-खड़े लंबी गप्पें मारनी शुरू कर दीं।
आधे घंटे की मिठास: बदले का स्वाद और डोनट्स का तड़का
आधे घंटे तक वो भाभी अपनी गाड़ी में बैठी गुस्से में फुँकती रहीं, कभी हॉर्न मारती, कभी घूरती, लेकिन रोज़ी और उनके दोस्त को कोई फर्क नहीं पड़ा। जब भाभी ने आखिरकार हार मान ली और वहाँ से निकल गईं, तब दोनों ने चैन की सांस ली – जैसे भारत-पाकिस्तान मैच में आखिरी ओवर जीत लिया हो!
और हाँ, इस जीत की खुशी में डोनट्स भी खाए गए! अब भई, हर जीत की मिठास ज़रूरी है, चाहे वो पार्किंग की हो या ज़िंदगी की।
क्या ये सच में बदला था या सिर्फ शरारत? कम्युनिटी की राय
अब Reddit की दुनिया में इस पर खूब चर्चा हुई। एक यूज़र ने लिखा, “अरे भई, कभी-कभी ऐसे गाड़ी का पीछा करने वाले इतने परेशान कर देते हैं कि मन करता है वहीं गाड़ी में बैठकर लंच ही खा लूँ!” (कुछ-कुछ वैसे ही जैसे भारत में बस स्टैंड पर सीट के लिए लोग दूसरे की पीठ से चिपक जाते हैं।)
एक और मज़ेदार कमेंट था – “अगर कोई पीछा कर रहा है, तो मैं गलियों में घूमकर उन्हें उलझा देता हूँ!” यानी, पार्किंग की ये समस्या सिर्फ अमेरिका ही नहीं, हमारे यहाँ भी मोहल्लों की गलियों में खूब देखने को मिलती है।
हालाँकि, कुछ लोगों को ये शरारत अच्छी नहीं लगी। एक ने कहा, “भई, पार्किंग मिलना सबका हक है – किसी को बेवजह परेशान करना सही नहीं।” वहीं, एक और का कहना था – “कभी-कभी दूसरों को तकलीफ देने में हमें ‘मज़ा’ आता है, लेकिन ये सही नहीं।”
लेकिन वहीं, कई लोगों ने इस हरकत को ‘छोटी सी जीत’ का नाम दिया। उनका कहना था – “कभी-कभी सिस्टम से परेशान होकर हमें छोटी-छोटी खुशियाँ खुद ही ढूँढनी पड़ती हैं।”
भारतीय नजरिए से: क्या हमारे यहाँ भी होती है ऐसी शरारतें?
अगर आप सोच रहे हैं कि ये सिर्फ विदेशों में होता है, तो ज़रा अपने कॉलेज या ऑफिस पार्किंग का हाल याद करिए। सुबह-सुबह रिक्शावाले से लेकर कारवाले तक सब ‘पहले मैं’ के चक्कर में रहते हैं। और अगर कोई आपकी गाड़ी के पास मंडराने लगे, तो मन में यही आता है – “अरे भाई, मैं तो अभी जाऊँगा ही नहीं!”
हमारे यहाँ भी कई बार लोग सिर्फ दूसरों को चिढ़ाने के लिए पार्किंग में गाड़ी खड़ी छोड़कर चाय पीने चले जाते हैं, या फिर गाड़ी की खिड़की खोलकर अखबार पढ़ने लगते हैं। और सच कहें तो, कभी-कभी ये ‘पेटी’ बदला भी दिल को बड़ी राहत देता है – जैसे गर्मी में ठंडी छाँव मिल जाए!
निष्कर्ष: पार्किंग की जंग में जीत किसकी?
तो साथियों, पार्किंग की ये जंग हर कॉलेज, हर मोहल्ले और हर ऑफिस की हकीकत है। कभी कोई जल्दी में होता है, तो कोई बस दूसरों को तंग करने के मूड में। लेकिन याद रखिए – छोटी-छोटी शरारतों में भी कभी-कभी बड़ी खुशियाँ छुपी होती हैं।
अब बताइए, आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है क्या? क्या आपने भी कभी किसी को पार्किंग के लिए परेशान किया है, या खुद परेशान हुए हैं? अपने मज़ेदार किस्से नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें, और हाँ – अगली बार पार्किंग की जंग में डोनट्स न भूलें!
मूल रेडिट पोस्ट: You're going to be a jerk over a parking spot?