क्रिसमस पर पापा की छोटी सी मीठी बदला : गायन करने वाले कुत्तों की कहानी
क्रिसमस का त्योहार वैसे तो खुशियों और मिलन का मौका होता है, लेकिन कभी-कभी इसमें छोटी-छोटी नोकझोंक और शरारतें भी छुपी होती हैं। ऐसे ही एक मजेदार किस्से से आज आपको रूबरू कराते हैं, जिसमें एक भारतीय परिवार जैसा ही अपनापन, तकरार और हंसी-ठिठोली छुपी है। ये कहानी है एक पिता की, जिन्होंने अपनी अमीर बहन को क्रिसमस पर ऐसा तोहफा दिया कि सब हँसते-हँसते लोटपोट हो गए।
क्रिसमस और उपहारों की जंग: अमीरी-गरीबी की दीवार
हर भारतीय परिवार में अक्सर ऐसा कोई रिश्तेदार जरूर होता है जो थोड़ा अमीर, थोड़ा अकड़ू और उपहारों को लेकर बड़ा गंभीर रहता है। हमारे आज के नायक यानी "पापा" भी कुछ ऐसे ही माहौल में थे — बहन (बुआ) और जीजा जी (मामा) पैसे से मालामाल, वहीं पापा तंगी में भी मुस्कुराते और जीना जानते थे। बुआ को हमेशा शिकायत रहती थी कि पापा उनके जैसे महंगे तोहफे नहीं दे सकते। अब भला, 'दिल से बड़ा कौन सा तोहफा होता है', ये बात हर कोई कहां समझ पाता है!
जब गायन करने वाले कुत्ते बने साल का सबसे मजेदार तोहफा
एक साल पापा ने क्रिसमस पर बुआ-जीजा के लिए पुरानी चीज़ों की दुकान (समझिए हमारे यंहा के कबाड़ी बाजार जैसा) से दो एनिमेट्रॉनिक सिंगिंग डॉग्स (गाने वाले खिलौना कुत्ते) खरीदे। ये तोहफा एकदम अनोखा और मजेदार था। पापा, बहन और बेटी सब मिलकर उनकी हरकतों पर खूब हंसे। पापा को लगा जीजा जी को भी ये जरूर पसंद आएंगे, क्योंकि उनका सेंस ऑफ ह्यूमर भी कुछ वैसा ही था।
क्रिसमस के दिन पापा अपने पूरे परिवार के साथ बुआ के आलीशान घर (छह बाथरूम और स्विमिंग पूल सहित — जरा सोचिए, हमारे यहां तो पूरा मोहल्ला उसमें समा जाए!) गए। जैसे ही उन कुत्तों का डिब्बा खोला गया, जीजा जी तो हंस-हंसकर लोटपोट हो गए, बुआ की बिल्ली ने उन खिलौनों पर हमला कर दिया — घर में ठहाकों की गूंज थी।
लेकिन बुआ? उनका चेहरा ऐसा जैसे खट्टा नींबू चूस लिया हो! मुस्कुराहट तो थी, पर जबरन, और बड़बड़ा रहीं थीं कि "कहां रखें इतने बड़े खिलौने?" — अरे बुआ, इतने बड़े घर में जगह नहीं मिली तो क्या छोटा घर ढूंढना पड़ेगा?
चोरी-छुपे वापसी, और फिर दिमाग़ी चाल!
असली मसाला तो तब आया जब वापस लौटने लगे। बुआ ने चुपके से वो कुत्ते पापा की गाड़ी में रख दिए, बिना बताए। घर लौटकर जब पता चला, तो सबका मूड थोड़ा खराब हो गया। पर पापा? वो तो ठहरे शरारती राजा! बोले, "अरे, ये तो और भी मजेदार हो गया।"
अब पापा ने क्या किया? एक महंगे ब्रांड के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का खाली डिब्बा लिया (हमारे यहां जैसे शादी-ब्याह में गिफ्ट के डिब्बे संभालकर रखते हैं, वैसे), उसमें दोनों कुत्ते और एक हाथ से लिखा नोट रखा — "A dog is for life, not just for Christmas." (कुत्ता जिंदगीभर का साथ होता है, सिर्फ क्रिसमस का नहीं!)
डिब्बा पैक करके, बुआ के पते पर डाक से भेज दिया गया। न तो कभी बुआ की प्रतिक्रिया मिली, न वो कुत्ते दोबारा दिखे। लेकिन परिवार में जब-जब ये किस्सा याद आता है, सब हँसी से लोटपोट हो जाते हैं।
कम्युनिटी की राय: हंसी, बदला और अपनेपन की परंपरा
रेडिट पर इस कहानी को पढ़कर कई लोगों को अपने परिवारों की याद आ गई। एक पाठक ने बताया, "हमने भी अपनी पत्नी के साथ परदे की शरारती अदला-बदली सालों तक चलायी। एक बार मैंने उसे क्रिसमस पर वही पुराना पर्दा गिफ्ट कर दिया, फिर वो मुझे अगले साल।" — ये तो हूबहू हमारे यहां के "पलंग के नीचे छुपाकर गिफ्ट देने" जैसी परंपरा है!
एक और मजेदार कमेंट में किसी ने लिखा, "हमारे परिवार में भी एक आयरन (इस्त्री) को सालों तक एक-दूसरे को गिफ्ट करते रहे। यहां तक कि बाद में वो योडा के हाथों में न्यू ईयर पार्टी में पहुंच गई!" — यानी गिफ्ट का खेल कभी-कभी आत्मीयता और हंसी-ठिठोली का सबसे अच्छा जरिया बन जाता है।
एक पाठक ने बड़ी कमाल की बात कही, "महंगा गिफ्ट देने का दिखावा कोई मायने नहीं रखता, असली खुशी तो दिल से दिए गए अनोखे तोहफे में है।" — यही तो हमारी संस्कृति भी सिखाती है, "भावना में बंधा तोहफा, कीमती गिफ्ट से कहीं ऊपर है।"
निष्कर्ष: छोटे-छोटे किस्सों में छुपा है परिवार का असली रंग
तो दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार में कभी-कभी हलकी-फुलकी शरारतें, छोटी-मोटी नोकझोंक, और मजेदार 'बदला' भी रिश्तों को और भी मजबूत बना देता है। जरूरी नहीं कि हर तोहफा महंगा हो, या सामने वाला उसे पसंद करे — असली जादू है उस तोहफे के पीछे छुपे प्यार, मजाक और अपनापन में।
अब आपकी बारी! क्या आपके परिवार में भी ऐसा कोई अनोखा गिफ्ट, शरारत या परंपरा है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए — कौन जाने, अगला मजेदार किस्सा आपके घर से ही निकले!
शुभ क्रिसमस, और रिश्तों में हमेशा बनी रहे ऐसी ही मिठास और हंसी!
मूल रेडिट पोस्ट: My Dad's Petty Christmas Revenge