क्रिकेट की टनटनाहट: जब हॉस्टल के झगड़े में निकला बदला अनोखा
कॉलेज की ज़िंदगी में दोस्ती, मस्ती और थोड़ी बहुत तकरार तो आम बात है। हॉस्टल के कमरे अक्सर किसी रणभूमि से कम नहीं होते — कभी पढ़ाई को लेकर बहस, तो कभी सफाई, और कभी-कभी तो पार्टी को लेकर पूरा महाभारत छिड़ जाता है! आज मैं आपके लिए लाया हूँ एक ऐसी कहानी, जिसमें दोस्ती की जगह ले ली क्रिकेट की टनटनाहट ने।
यह कहानी है एक ऐसे छात्र की, जो अपने 10 साथियों के साथ एक घर में रहता था। घर के लड़कों के दो गुट बन गए — एक था मस्तमौला, पार्टी करने वाला, दूसरा पढ़ाई-लिखाई में जुटा, थोड़ा शांत और अनुशासनप्रिय। अब जब दो अलग-अलग सोच के लोग एक ही छत के नीचे रहें, तो टकराव होना स्वाभाविक है।
समस्या तब बढ़ी जब किराए का समझौता (लीज़) नए सिरे से करना था। मस्तमौला लड़कों का गुट थोड़ा कमज़ोर पड़ गया, और पढ़ाकू गुट ने अपने नए दोस्तों को बुला लिया। अब पुराने पार्टीबाज़ों को घर छोड़ना पड़ा। दिल में थोड़ी कड़वाहट थी, लेकिन असली ट्विस्ट तो अब आया!
हमारे नायक ने बदला लेने की ठान ली — लेकिन आम हिंदुस्तानी फ़िल्मों की तरह सीधा-सपाट नहीं, बल्कि जुगाड़ और शरारत भरी स्टाइल में। उसने eBay से 'क्रिकेट चिर्प नॉइज़ मेकर' मंगवाए — यानी नकली झींगुरों की आवाज़ निकालने वाले छोटे-छोटे उपकरण। सोचिए, हमारे यहाँ तो असली झींगुरों की आवाज़ गाँव-देहात में हर रात सुनाई देती है, लेकिन जब वही आवाज़ शहर के फ्लैट में, वो भी बेवजह, लगातार सुनाई दे, तो इंसान परेशान हो ही जाता है!
उसने ये नॉइज़ मेकर घर के हर कोने में छुपा दिए — गैस के पीछे, रेडिएटर में, सीढ़ियों के नीचे की दरार में। हर नॉइज़ मेकर की आवाज़ अलग थी और वो भी 10-20 मिनट के अंतराल पर बेतरतीब बजती थी। यानी कोई चाहे जितना ध्यान लगाए, आवाज़ का स्रोत पकड़ ही न पाए!
यहाँ तक कि पढ़ाकू गुट को शायद महीनों तक समझ ही नहीं आया होगा कि ये रहस्यमयी झींगुर कहाँ से आ रहे हैं। और जब तक बैटरी खत्म न हो जाए, उनकी नींद हराम!
अब Reddit की जनता ने इस कहानी को पढ़कर खूब राय दी। एक पाठक ने लिखा, "दूसरे गुट की कहानी शायद इससे बिलकुल अलग होगी!" सच पूछिए तो हमारे यहाँ भी अक्सर दो पक्षों की कहानियाँ बिलकुल उलट होती हैं — जैसे किसी मोहल्ले में पानी की लाइन को लेकर झगड़ा हो जाए, तो दोनों पड़ोसी अपनी-अपनी कहानी लेकर पंचायत पहुँच जाते हैं।
कई लोगों ने कहा कि 11 बजे तक पार्टी करना भले ही कुछ के लिए मामूली बात हो, लेकिन जब कोई सुबह की क्लास के लिए पढ़ रहा हो, तो ये बहुत परेशान करने वाला होता है। एक ने तो यहाँ तक कह दिया, "भैया, सच्चाई यही है कि कभी-कभी हमारी 'मस्ती' दूसरों के लिए सिरदर्द बन जाती है।"
एक और मज़ेदार कमेंट आया — "हम हर हफ्ते लिविंग रूम साफ करते थे, यानी हर हफ्ते इतना गंदा कर देते थे कि सफाई करनी ही पड़ती थी!" सोचिए, जैसे हमारे यहाँ हर रविवार को घर की बड़े साफ-सफाई होती है, लेकिन अगर रोज़ ही पार्टी हो रही हो, तो हर दिन ही सफाई करनी पड़ेगी!
कुछ लोगों को ये बदला बड़ा बचकाना और तंग करने वाला लगा। किसी ने टिप्पणी की — "ये तो बदला नहीं, सिरफिरापन है! न तो इससे सामने वाले को कोई सीख मिलेगी, न ही ये कोई समझदारी भरा कदम है।" एक ने तो यहाँ तक कह दिया, "अगर उतनी ही मेहनत अच्छे रूममेट बनने में लगाई होती, तो ये नौबत ही न आती!"
लेकिन, कुछ लोगों ने इसे शैतानी मज़ाक मानकर हँसी में भी लिया — जैसे हमारे यहाँ गाँव में कोई किसी की चारपाई में चुपके से झिंगुर डाल दे, ताकि पूरी रात चैन की नींद न आए! फर्क बस इतना है, वहाँ असली झिंगुर होते हैं, यहाँ नकली।
इस कहानी में छुपा है एक बड़ा सबक — कभी-कभी हमारी छोटी-छोटी शरारतें दूसरों के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती हैं। हॉस्टल या पीजी में रहने वाले हर छात्र को ये समझना चाहिए कि सबकी आदतें, प्राथमिकताएँ और ज़रूरतें अलग होती हैं। मस्ती अपनी जगह है, लेकिन दूसरों के आराम और शांति का भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए।
अंत में, आपसे यही पूछना चाहूँगा — अगर आपके साथ ऐसा होता, तो आप क्या करते? क्या कभी आपने भी किसी रूममेट या पड़ोसी को ऐसी कोई चालाकी दिखाई है? या आपके साथ किसी ने की है? अपनी कहानी कमेंट में ज़रूर साझा करें!
कहानी चाहे क्रिकेट की टनटनाहट की हो या किसी और शरारत की, कॉलेज के ये किस्से ही तो बाद में याद बनकर हँसी ले आते हैं। पर याद रहे, शरारतें भी तभी मज़ेदार लगती हैं, जब किसी की नींद और सुकून बर्बाद न हो!
अब अगली बार जब हॉस्टल या पीजी में कोई झींगुर की आवाज़ सुनें, तो एक बार इस कहानी को ज़रूर याद कर लीजिएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Cricket chirps