क्या होटल की नौकरी सच में इतनी भारी हो सकती है? एक रिसेप्शनिस्ट की दिलचस्प आपबीती
क्या आपने कभी सोचा है कि फाइव-स्टार या फोर-स्टार होटल में रिसेप्शन पर बैठे लोग कितने मज़े में रहते होंगे? बड़ी सी मुस्कान, चमचमाता काउंटर और हर बात का जवाब। पर जनाब, परदे के पीछे की हकीकत कुछ और ही है! आज हम आपको एक ऐसे रिसेप्शनिस्ट की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसकी नौकरी सुनकर आप कहेंगे – "भैया, इतना काम तो पूरे मोहल्ले में मिलकर भी नहीं होता!"
तो लीजिए, पेश है "रिसेप्शन" की कुर्सी पर बैठे उस जुझारू कर्मचारी की दास्तान, जिसने Reddit पर अपनी पीड़ा साझा की और सैकड़ों लोगों का दिल जीत लिया।
जिम्मेदारियों का पहाड़ और तनख्वाह की चूहेदौड़
भाई साहब, एक चार सितारा होटल में कुल 37 कमरे, लेकिन काम ऐसा कि जैसे कोई शादी-ब्याह का घर हो। रिसेप्शनिस्ट महोदय का कहना है – "पहले तीन-स्टार होटल में 50 कमरे थे, लेकिन इतनी थकावट और तनाव कभी नहीं हुआ।" अब जिस होटल में हर कमरे में "स्पेशल एक्सपीरियंस" का जुगाड़ हो और रोज़ कुछ ना कुछ बिगड़ जाए, तो समझ जाइए – रिसेप्शनिस्ट का असली काम है 'सबका जुगाड़ू' बनना!
तकनीकी गड़बड़ियों से लेकर कमरे में नाश्ता पहुँचाने तक, यहाँ रिसेप्शनिस्ट को हर काम खुद ही करना पड़ता है। ऊपर से कराओके नाइट, इवेंट्स, डिलीवरी, मेहमानों की शिकायतें – मतलब, एक इंसान से पाँच लोगों का काम! और हद तो तब हो जाती है जब 12-12 घंटे की शिफ्ट में अकेले रिसेप्शन पर बैठकर सब संभालना पड़े। न मैनेजर, न सहायक, बस खुद ही खुद!
"काम बताओ या सुपरहीरो बना दो!" – पाठकों की मज़ेदार प्रतिक्रियाएँ
Reddit पर इस पोस्ट ने जैसे भूचाल ला दिया। एक पाठक ने तो साफ लिखा – "भैया, आपके ऊपर पाँच लोगों का काम डाला जा रहा है। ये होटलवाले पैसा बचाने के चक्कर में आपको सुपरमैन बना रहे हैं।"
दूसरे ने चुटकी लेते हुए कहा, "ये पढ़कर ही थकान हो गई! लगता है होटल वाले आपको रिसेप्शनिस्ट से लेकर मिस्त्री, रूम सर्विस, इवेंट मैनेजर, सब कुछ बना चुके हैं।"
एक सज्जन ने बड़ा तगड़ा सुझाव दिया – "सबसे पहले अपनी जॉब डेस्क्रिप्शन लिखवाओ। जितना जॉब ऑफर में लिखा है, उतना ही करो। बाकी के लिए मैनेजर को बोलो – या तो और लोग रखो या फिर मैं सिर्फ अपना काम करूंगा।"
कुछ लोगों ने सलाह दी, "अगर होटल वाले नहीं मानते, तो नई नौकरी ढूंढो। यहाँ तो सिर्फ आपका शरीर और दिमाग थक रहा है, मालिक तो मज़े में बैठा है।"
एक पाठक ने बड़ा बढ़िया तर्क दिया – "रिसेप्शनिस्ट का काम सिर्फ रिसेप्शन देखना है, न कि हर छोटी-बड़ी चीज़ का हल निकालना। अगर कोई मेहमान तौलिया या रिमोट मांगता है, तो बोल दो – 'माफ़ कीजिए, मैं रिसेप्शन छोड़कर नहीं जा सकता, आपको नीचे आना पड़ेगा।'"
भारतीय कार्यस्थल और 'सबका काम, सबका बोझ' की परंपरा
अगर हम अपने देश की बात करें, तो छोटे होटल या कंपनियों में ऐसा ही हाल मिलता है। 'एक आदमी, सौ काम' – ये तो यहाँ का अलिखित नियम है। कभी-कभी तो लगता है, जैसे ऑफिस में हर कोई 'जुगाड़ स्पेशलिस्ट' है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सही है?
पश्चिमी देशों में, काम का बँटवारा साफ-साफ होता है। हर कर्मचारी को उसकी भूमिका पता होती है। लेकिन हमारे यहाँ अक्सर मालिक सोचते हैं – "चलो, थोड़ा बोझ और डाल दो, काम निकलवा लो।" पर इसका नतीजा? कर्मचारी का मनोबल टूट जाता है, काम में मन नहीं लगता, और आखिरकार टैलेंटेड लोग कहीं और चले जाते हैं।
समाधान: कब कहें "बस, अब और नहीं!"
इस Reddit पोस्ट से हमें ये सिखने को मिलता है कि कब अपनी सीमाएँ तय करनी चाहिए। अगर आपके ऊपर लगातार अतिरिक्त काम डाला जा रहा है, तो सबसे पहले – अपने जॉब प्रोफाइल की कॉपी माँगिए। जितना लिखा है, उतना कीजिए। बाकी काम के लिए साफ कहिए – "ये मेरी जिम्मेदारी नहीं है।"
अगर मैनेजर बहाने बनाते हैं – "टीमवर्क है, थोड़ा-बहुत तो करना ही पड़ेगा" – तो आप भी सोचिए, क्या ये नौकरी आपके लायक है? जहाँ आपकी मेहनत की कद्र नहीं हो रही, वहाँ रुकना बेकार है।
एक पाठक ने सही लिखा – "कम में संतोष मिले या ज्यादा पैसे में तनाव? ये आपको तय करना है।"
अंत में – आपकी राय क्या है?
जैसा कि हमारे रिसेप्शनिस्ट दोस्त ने झेला, वैसा अनुभव शायद भारत के लाखों कर्मचारियों को कभी न कभी हुआ हो। क्या आप भी कभी ऐसी स्थिति में फँसे हैं? क्या आपने कभी बॉस को 'ना' बोलने की हिम्मत दिखाई है?
अपने अनुभव और राय नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए। और हाँ, अगली बार जब आप किसी होटल में रिसेप्शन पर जाएँ, तो मुस्कराते चेहरे के पीछे की ये कहानी जरूर याद रखिएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Am I overreacting or is my job actually too much?