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क्या आपने कभी ऐसे मोटेल में काम किया है? ग्राहक, खतरे और कम वेतन की दास्तान

कैलिफोर्निया में नौकरी चाहने वालों के लिए स्वागतयोग्य माहौल वाले एक विस्तारित ठहराव मोटल का बाहरी दृश्य।
एक फोटोरियलिस्टिक चित्रण, जहां नौकरी चाहने वाले जैसे हम नए अवसरों की तलाश में बदलती परिस्थितियों के बीच खोज करते हैं।

भाई साहब, नौकरी की तलाश में कौन-कौन नहीं भटका! लेकिन जब आप सोचते हैं कि चलो एक आसान-सी नौकरी मिल जाए, तो किस्मत आपको ऐसी जगह ले जाती है, जहाँ हर रोज़ ज़िंदगी की फिल्म का नया सीन चलता है। आज की कहानी है एक ऐसे मोटेल के फ्रंट डेस्क पर काम करने वाले कर्मचारी की, जहाँ मेहमान कम और परेशानियाँ ज़्यादा हैं। और ऊपर से वेतन – बस न्यूनतम, जितना सरकार कहे उतना!

मोटेल की नौकरी: सपनों की ज़मीन या तनाव का अड्डा?

तो जनाब, बात शुरू होती है कैलिफोर्निया के एक छोटे से मोटेल से, जहाँ लेखक (मान लीजिए नाम है अजय) दूसरी नौकरी की तलाश में पहुँचे। पहली नौकरी में टिप्स मिलती थी, लेकिन अब वहाँ नियम बदल गए, पैसे घट गए। अजय को उम्मीद थी कि मोटेल की नौकरी शांति से कटेगी, मगर यहाँ तो रोज़ नया तमाशा!

यह मोटेल वैसे तो "एक्सटेंडेड स्टे" है, मतलब लोग हफ्तों-हफ्तों तक वहाँ रहते हैं। प्रबंधक जी बड़ी ही भली थीं, इंटरव्यू में तुरंत ही हाँ कह दी। अजय और दो और लोगों को तुरंत नौकरी पर रख लिया गया। लेकिन यहाँ हर शिफ्ट अकेले करनी पड़ती है – शाम 3 से रात 11:30 तक। न कोई सुरक्षा, न कैमरा, न ही कोई गार्ड। सब कुछ भगवान भरोसे!

ग्राहक या किरदार? हर दिन एक नई कहानी

मोटेल में आने वाले मेहमानों के बारे में क्या ही कहें! कई लोग सरकारी योजनाओं के तहत आते हैं, कुछ मानसिक परेशानी से ग्रस्त, कुछ तो ऐसे जिनका मकसद ही मुफ्तखोरी है। कोई आता है – कमरा लेकर बिना पैसे दिए निकल जाता है, कोई कहता है “कमरे में कीड़े थे, पैसे वापस करो!” एक दिन एक महिला आई – कहती है उसका बॉयफ्रेंड उसके आईडी के बिना ही कमरा बुक कर चुका है। आईडी चाहिए, तो बोली – “मेरे बॉयफ्रेंड के पास है!” ऊपर से फोन भी डिस्चार्ज! अजय भले आदमी, फोन चार्ज करने दिया, लेकिन दो घंटे तक वो वहीं बैठकर अपने बड़े पद और 35 डॉलर प्रतिघंटा वाली नौकरी की बातें करती रही। आखिरकार, बिना धन्यवाद बोले निकल गई!

एक अन्य कर्मचारी ने कमेंट किया – “हमारे होटल में भी जब तक कैमरे नहीं लगे थे, ऐसा ही हाल था। कई बार पुलिस बुलानी पड़ी, कभी झगड़ा, कभी मिर्ची स्प्रे, कभी कोई मेंटल केस।” एक और ने सुझाया – “कम से कम लॉबी में कैमरे लगवाओ, और 10 बजे के बाद गेट लॉक करने की व्यवस्था करो। पुलिस वालों को कॉफी पिलाओ, ड्यूटी पर आते रहें तो अराजक लोग खुद-ब-खुद दूर रहेंगे!”

कम वेतन, ज़िम्मेदारी बड़ी

अजय को सबसे बड़ी शिकायत वेतन से है – सिर्फ 17 डॉलर प्रतिघंटा (जो वहाँ के हिसाब से बहुत कम है)। एक कमेंट में किसी ने लिखा, “इतनी जिम्मेदारी, और वेतन इतना कम? होटल मालिकों की तो मौज है! असली परेशानियों से तो कर्मचारी जूझ रहे हैं, मालिक तो बस पैसे गिनते हैं।”

कुछ ने सलाह दी – “इतनी मेहनत, इतना खतरा, और इतना स्ट्रेस – क्यों अपनी पढ़ाई और ज़िंदगी खराब कर रहे हो? और भी होटल्स हैं जहाँ पैसे ज़्यादा मिलते हैं, वहीं कोशिश करो।” लेकिन अजय का जवाब भी शानदार था – “मैं कॉलेज में पढ़ाई कर रहा हूँ, इसलिए ऐसी नौकरी चाहिए थी जहाँ पढ़ाई का वक्त भी मिल सके। लेकिन यहाँ तो दिन-रात मेहमानों की फरमाइशें पूरी करते रहो।”

काम का माहौल: एक तरफ शांति, दूसरी तरफ ड्रामा

मोटेल की नौकरी में अजय के सहकर्मी तो ठीक हैं, कोई ऑफिस पॉलिटिक्स नहीं, जो शिफ्ट माँगी, वो मिल जाती है। लेकिन पुराने होटल में तो जैसे ‘सास-बहू’ का सीरियल चल रहा था – झूठ, चुगली, खींचतान! एक सहकर्मी ने तो अजय से ज़्यादा शिफ्ट पाने के लिए उसकी बुराई प्रबंधन तक कर दी। अजय ने सोचा – “चलो, कम से कम मोटेल में ये सब नहीं है!” लेकिन यहाँ भी “मेहमानों” की नाटकबाज़ी कम नहीं।

एक कमेंट में किसी ने चुटकी ली – “अगर किसी जगह पर एक साथ तीन-तीन लोगों को तुरंत नौकरी मिल जाए, तो समझ लो वहाँ कोई टिकता नहीं!” और सच यही है – अजय भी मानते हैं कि यहाँ जिम्मेदारी बड़ी, वेतन छोटा, और काम खत्म ही नहीं होता।

सुरक्षा और सीख: कुछ सुझाव और भारतीय नजरिया

मोटेल जैसे स्थानों में सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता है। कई लोगों ने सलाह दी – मिर्ची स्प्रे या टेज़र साथ रखो, शिफ्ट के समय रिकॉर्डिंग ऑन रखो, और सबसे ज़रूरी – किसी भी मेहमान की जानकारी बिना पुष्टि के किसी को मत दो। भारतीय परिवेश में भी, ऐसे गेस्ट हाउस या धर्मशाला में काम करते समय ये बातें ध्यान रखनी चाहिए – कभी भी अकेले दरवाजा मत खोलो, और सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस से संपर्क में रहो।

एक और टिप्पणी शानदार थी – “हॉस्पिटैलिटी लाइन में लोग अपनी पूरी ज़िंदगी लेकर आ जाते हैं, कर्मचारियों पर अपना सारा बोझ डाल देते हैं – चाहे वह निजी परेशानी हो, धोखा, बिज़नेस, यहां तक कि कानून से भागना भी!” जो सच भी है – फ्रंट डेस्क पर हर रोज़ नया ड्रामा चलता है।

निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?

तो भैया, मोटेल की फ्रंट डेस्क पर काम करना जितना आसान दिखता है, असल में उतना ही चुनौतीपूर्ण है। कभी-कभी तो लगता है, 'रामजी, यहाँ कौन फँस गया!' लेकिन हिम्मत रखने वालों के लिए हर अनुभव एक सीख है।

क्या आपने भी कभी गेस्ट हाउस, लॉज या होटल में ऐसी घटनाएँ देखी हैं? या आपकी नौकरी में भी ऐसे फिल्मी किस्से चलते हैं? कमेंट में अपनी कहानी ज़रूर सुनाएँ – पढ़ेंगे, हँसेंगे और शायद कुछ सीख भी लेंगे!

अंत में बस यही कहेंगे – चाहे नौकरी कैसी भी हो, सुरक्षा और सम्मान सबसे ज़रूरी है। और हाँ, ग्राहक राजा जरूर है, लेकिन कभी-कभी तो राजा भी बड़ा नखरीला हो जाता है!


मूल रेडिट पोस्ट: Has anyone worked at a motel place like this?