कमीशन नहीं, तो मुनाफा भी नहीं! – एक सेल्समैन की छोटी सी बदला-कहानी

न्यूयॉर्क का एक यादगार कंप्यूटर स्टोर, कमीशन-आधारित बिक्री और लाभ चुनौतियों को दर्शाता है।
न्यूयॉर्क के एक व्यस्त कंप्यूटर स्टोर का फोटो यथार्थवादी चित्रण, उस जीवंत युग की याद दिलाता है जब कमीशन-आधारित बिक्री करियर को आकार देती थी। यह छवि बुनियादी वेतन और लाभ के बीच संघर्ष को दर्शाती है, जो प्रतिस्पर्धी बाजार में बिक्रीकर्मियों द्वारा सामना की गई चुनौतियों को उजागर करती है।

भाई साहब, ऑफिस का माहौल हो या दुकान का, बॉस लोग अगर एक बार तानाशाही पर उतर आएं तो खुदा ही मालिक है। लेकिन कहते हैं न – हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। आज की कहानी है एक ऐसे सेल्समैन की, जिसने अपने मालिक को ऐसा सबक सिखाया कि दुकान की नीतियाँ ही बदलवा दीं। और मज़े की बात ये कि ये किस्सा न्यूयॉर्क की एक कंप्यूटर दुकान का है, लेकिन हर उस बंदे को अपना सा लगेगा जिसने कभी 'कमीशन' के चक्कर में पसीना बहाया हो!

तो जनाब, बात कुछ साल पुरानी है। न्यूयॉर्क के ब्रायंट पार्क के पास एक बड़ी कंप्यूटर दुकान थी – नाम था DataVision (हां, कुछ लोगों को याद भी आ गया होगा!)। यहाँ सेल्समैन को हफ्ते का बेसिक वेतन मिलता था 300 डॉलर, लेकिन असली कमाई थी 'कमीशन' में। नियम ये था कि आप जितना मुनाफा कंपनी के लिए कमाएं, उसका 10% आपका – लेकिन ध्यान रहे, जब तक आप 300 डॉलर से ज्यादा कमीशन नहीं कमाते, तब तक फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी!

अब दुकान में सौदेबाज़ी भी चलती थी। कस्टमर मोलभाव करता, सेल्समैन कंप्यूटर में कोड डालता – जैसे H45S99 मतलब कंपनी ने ये सामान 45.99 डॉलर में खरीदा है। कस्टमर को तो बस डिस्काउंट चाहिए, पर सेल्समैन की नज़र तो कमीशन पर रहती थी!

हमारे नायक पहले सॉफ्टवेयर सेक्शन में थे – वहाँ मुनाफा ही इतना पतला कि कमीशन का नाम लेना भी गुनाह! लेकिन एक दिन उनका ट्रांसफर नीचे बड़े सेक्शन में हो गया – कंप्यूटर, कैमरा और महंगे सामान। यहाँ तो कमीशन का असली खेल था।

एक हफ्ते में जनाब ने डिटेल में अपनी सारी सेल्स नोट कीं। हिसाब लगाया तो करीब 630 डॉलर का कमीशन बनता था – यानी बोनस की उम्मीद! लेकिन तनख्वाह आई तो वही 300 डॉलर, टैक्स कटने के बाद और भी कम। पूछने गए तो ऑफिस वालों ने कहा – "भाई, एक दिन 3 मिनट लेट आ गए थे, नियम के मुताबिक सारा कमीशन जब्त!"

अब बताइए, 3 मिनट की देरी की इतनी बड़ी सज़ा? 'नियम' के नाम पर तानाशाही! बस, यहीं से हमारे नायक का दिमाग घूम गया। उन्होंने ठान लिया – "अगर मुझे कमीशन नहीं मिलेगा, तो कंपनी को भी मुनाफा नहीं मिलेगा!"

अगले दो हफ्तों तक जनाब ने गजब कर डाला। हर सामान कस्टमर को 'एट-कॉस्ट' यानी कंपनी के खरीदी रेट पर बेचा। पुराने कस्टमर भी लाइन लगा के आए, बोले – "भाई, आपके जैसी डील कोई देता ही नहीं!" कंपनी का मुनाफा? पूरे दो हफ्ते में कुल 32 सेंट (लगभग 25 रुपये)!

फिर बुलावा आया – "ये क्या कर दिया?" जनाब ने सीधा जवाब दिया – "आपने मेरे 3 मिनट लेट आने पर सारा कमीशन काट लिया था, अब मैं भी कंपनी के लिए कुछ नहीं कमा रहा।" डर था कि नौकरी जाएगी, पर पहली बार सिर्फ समझाया – "आइंदा ऐसा मत करना।" लेकिन अगले हफ्ते फिर वही खेल! आखिरकार नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन जनाब को कोई मलाल नहीं – नौकरी से वैसे ही उकता चुके थे।

मजेदार बात ये रही कि उनके जाने के बाद बाकी सेल्समैन भी यही करने लगे – 'नो कमीशन, नो प्रॉफिट'! आखिरकार कंपनी को अपनी नीति बदलनी पड़ी। और कुछ सालों बाद वही दुकान बंद हो गई, अब कहीं कोने में छोटी सी दुकान बची है – नाम तो है, पर रुतबा नहीं!

अब ज़रा Reddit की जनता के मज़ेदार कमेंट्स भी सुनिए। एक महाशय ने लिखा – "कंपनी को काम के बदले पैसा नहीं दोगे, तो सेल्समैन भी चालाकी दिखाएगा।" किसी ने कहा – "बहुत बढ़िया बदला लिया, सीधा वहीं चोट मारी जहाँ सबसे ज्यादा दर्द होता है – मुनाफे पर!"

एक और कमेंट में तो भारतीय दफ्तरों का हाल नज़र आ गया – "नौजवानों को नियम-कानून की जानकारी नहीं होती, मालिक लोग इसी का फायदा उठाते हैं।" सोचिए, हमारे यहाँ भी ऐसे कितने सेल्समैन होंगे जो 'पॉलिसी' के नाम पर हज़ारों गंवा देते हैं!

एक और साहब ने मज़ेदार किस्सा सुनाया – "हमारे ऑफिस में भी ऐसा ही हुआ था, सीनियर लोगों ने नया-नया नियम बनाया, पर जब कर्मचारी एकजुट होकर डटे रहे तो कंपनी को झुकना ही पड़ा।" ये बात बिलकुल सही है – कभी-कभी छोटा सा विरोध भी बड़ा असर करता है।

अब इस कहानी में दो बातें सीखने लायक हैं – पहली, अगर कंपनी अपने कर्मचारियों की मेहनत का सम्मान नहीं करेगी, तो खुद नुकसान उठाएगी। और दूसरी, अपने हक के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी है – चाहे 3 मिनट लेट ही क्यों न आए हों!

तो दोस्तों, कभी आपके साथ ऑफिस या दुकान में ऐसी नाइंसाफी हुई है? आपने या आपके किसी दोस्त ने कभी ऐसा जुगाड़ लगाया हो? कमेंट में ज़रूर बताइए। और हाँ, अगली बार जब सेल्समैन आपको बढ़िया डील दे, तो उसके पीछे की कहानी समझने की कोशिश कीजिएगा – शायद वो भी DataVision वाले भाई की तरह किसी 'बॉस' को सबक सिखा रहा हो!

चलते-चलते, एक देसी कहावत – "जिस थाली में छेद करोगे, वहीं से रोटी गिर जाएगी!" कंपनी वालों ने भी यही किया, और अपना ही नुकसान कर बैठे।

अंत में – मेहनत की इज्जत करो, और दूसरों की मजबूरी का फायदा मत उठाओ। नहीं तो, एक दिन 'नो कमीशन, नो प्रॉफिट' वाला जुगाड़ आपके यहाँ भी लग सकता है!

आपकी राय में ऐसे हालात में कर्मचारी को क्या करना चाहिए? कमेंट में अपने अनुभव और विचार ज़रूर साझा करें!


मूल रेडिट पोस्ट: No commission? Well, no profit!