कब्र के पत्थर पर बदला: जब बेटियों ने माँ को 'बस नाम' तक सीमित कर दिया
कहते हैं, बड़ों का सम्मान करना हमारे संस्कारों में है। लेकिन क्या हो जब वो बड़े, खासकर माँ, अपने ही बच्चों के लिए हमेशा ताने कसने वाली, पक्षपाती और कटु हो? ऐसी स्थिति में बदला भी कभी-कभी कब्र के पत्थर तक पहुँच जाता है! आज की कहानी Reddit पर वायरल हुई एक घटना की है, जिसमें बेटियों ने अपनी माँ के साथ ऐसा 'न्याय' किया कि पढ़कर आप भी सोच में पड़ जाएंगे – ये मज़ाक है, या कटाक्ष की पराकाष्ठा?
दो चेहरे, एक परिवार: प्यार और कटुता की जंग
इस परिवार में पिता थे – बेहद दयालु, हंसमुख और सबके चहेते। वहीँ माँ – हमेशा कठोर शब्दों, पक्षपात और विशेष रूप से बेटियों के प्रति बेरुख़ी के लिए मशहूर। बेटियाँ माँ के तानों का शिकार रहीं, जिससे उन पर आजीवन असर पड़ा। उधर, बेटों के साथ ऐसा कुछ नहीं। ऐसे माहौल में बड़ा होना, किसी हिंदी धारावाहिक की सास-बहू वाली कहानी से कम नहीं था।
पिता के निधन के बाद, बच्चों ने उनकी कब्र पर प्यार भरे शब्दों से सुसज्जित शिलालेख बनवाया – "स्नेही पति, समर्पित पिता, दयालु भाई, सच्चे मित्र..." यानी, जितनी तारीफें हो सकती थीं, सब लिख डालीं। पर जब माँ की बारी आई, और बेटियाँ ज़िम्मेदार बनीं, तो उन्होंने सिर्फ़ दो शब्द जोड़ दिए: "और मैरी।" (यहाँ 'मैरी' माँ का बदला हुआ नाम है)। न तारीफ, न गिला, न गुणगान – बस नाम!
कब्रस्तान में हंसी का फव्वारा
सोचिए, कोई कब्रिस्तान में घूमते हुए ये पढ़े – "यहाँ जो ब्लॉग्स (पिता) की मृत देह है... और मैरी।" एक Reddit यूज़र ने तो लिखा, "अगर मैं ऐसा पत्थर देखता, कुछ देर तो सन्न रह जाता, फिर हँसी रोकना मुश्किल हो जाता!" यह वही मज़ा है, जैसा गाँव की चौपाल पर कोई चुटकुला सुनकर आता है।
एक और कमेंट ने तो इस 'मौन बदले' को 'कला' बताया – "कोई सीधा अपमान नहीं, पर संदेश साफ़ है!" वहीं, एक यूज़र ने कहा – "और मैरी, अपने बच्चों की पहली और सबसे बड़ी बुली।" यानी, माँ ही बच्चों की सबसे पहली 'धौंसिया' थीं!
समाज, संस्कार और सास-बहू के ताने
हमारे यहाँ तो अक्सर सास-बहू के किस्से चलते हैं, पर माँ-बेटी के रिश्ते में भी कड़वाहट हो सकती है, इसका उदाहरण ये कहानी बन गई। कई पाठकों ने अपने अनुभव भी साझा किए – "मेरी सास भी ऐसी ही है, भगवान करे हमें भी ऐसा मौका मिले!" कोई बोला, "माँ की रेसिपी कब्र पर लिखवा दो, जैसे वो कहती थी – मेरी लाश के बाद ही दूँगी!"
एक और कमेंट में तो मज़ाकिया अंदाज़ में लिखा गया, "अच्छे लोग जल्दी चले जाते हैं, शायद इसलिए पिता पहले गए, वरना माँ की कटुता और झेलना पड़ता।"
कब्र के पत्थर पर बदला: खट्टे-मीठे भाव
यह घटना सिर्फ़ कटाक्ष नहीं, एक गहरी सामाजिक टिप्पणी भी है। हमारे समाज में माँ को देवी का दर्जा मिलता है, लेकिन हर माँ आदर्श नहीं होती। कभी-कभी, बच्चों को जीवनभर के घाव मिलते हैं, जो मरने के बाद भी नहीं भरते।
इसीलिए, बेटियों ने अपने तरीके से संदेश दिया – न शिकायत, न तारीफ, बस नाम! यही है 'बदला', जो न सिर्फ़ परिवार के लिए, बल्कि पढ़ने वालों के लिए भी सोचने वाली बात है।
एक पाठक ने बड़ी सुंदर बात कही, "कब्र के पत्थर पर लिखा गया सच, आने वाली पीढ़ियों के लिए चुपचाप सन्देश छोड़ जाता है।"
आपके विचार?
क्या आप मानते हैं कि ऐसे मौन बदले वाजिब हैं? या फिर संस्कारों के नाम पर सबकुछ सहना चाहिए? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, अगर आपके पास भी कोई ऐसा चुटीला या अनोखा पारिवारिक किस्सा है, तो शेयर करना न भूलें – क्या पता अगली बार आपकी कहानी पर भी चर्चा हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Family got revenge posthumously