कंपनी की ओवरटाइम नीति ने खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारी: कर्मचारियों की चालाकी का कमाल
अरे भई, ऑफिस की राजनीति और कंपनियों की अजीबोगरीब नीतियाँ तो आपने सुनी ही होंगी, लेकिन आज जो किस्सा सुनाने जा रहे हैं, उसमें कर्मचारियों ने कंपनी के कायदे-कानून को ही उल्टा कर दिया। ज़रा सोचिए, अगर आपकी कंपनी ओवरटाइम के नाम पर नियम तो बहुत बनाती है, लेकिन असल में जुगाड़ू कर्मचारी उसकी नाक में दम कर दें, तो क्या होगा?
जब नियम बन गया गले की फांस
अब कहानी शुरू होती है एक कंपनी से, जहाँ एक विभाग को 'ऑन कॉल' रखा जाता है। यानी कभी भी, कहीं भी—अगर इमरजेंसी हुई, तो फोन घनघना सकता है। लेकिन मज़े की बात यह कि 'ऑन कॉल' रहने के पैसे नहीं मिलते, बस थोड़ी-बहुत दूसरी सुविधाएँ मिल जाती हैं। अब हमारे देश में तो "ऑन कॉल" का मतलब है—बॉस का फोन आया, तो चाहे शादी हो या चूल्हा जल रहा हो, पहुँचना ही पड़े! लेकिन यहाँ मामला थोड़ा जुदा था।
कंपनी ने सोचा, ओवरटाइम देने का तरीका थोड़ा न्यायपूर्ण बनाते हैं। जिनके हिस्से सबसे कम ओवरटाइम आया है, पहले उन्हें फोन करेंगे, ताकि सबको बराबर मौका मिले। लेकिन इसमें एक मजेदार ट्विस्ट था—अगर किसी कर्मचारी को फोन किया जाता है, वो फोन उठाता है और मना कर देता है, तो भी उसके खाते में ओवरटाइम के घंटे जुड़ जाते हैं, जैसे उसने काम किया हो! यानी आपको काम पर बुलाया गया, आपने मना किया, फिर भी आप लाइन से नीचे चले गए, अगली बार देर से बुलाया जाएगा।
अब ज़रा सोचिए, भारतीय दिमाग़ क्या करेगा? जवाब है—फोन ही मत उठाओ! और हुआ भी यही। आधा विभाग अब इमरजेंसी कॉल्स उठाने ही बंद कर चुका है। कंपनी का सिस्टम ठप, और कोई समझ नहीं पा रहा, आखिर ये सब अचानक क्यों हो रहा है।
कर्मचारियों की चालाकी: 'नो रिप्लाई' है असली बहादुरी!
रेडिट पर इस कहानी के पोस्टर (u/ZumboPrime) ने बताया कि कर्मचारी ये समझ गए कि अगर फोन उठाकर मना कर देंगे, तो भविष्य में ओवरटाइम का मौका कम हो जाएगा। लेकिन अगर फोन ही न उठाएँ, तो ओवरटाइम की कतार में वही ऊपर बने रहेंगे! यानी 'मौका भी, दस्तूर भी'—जब सच में ओवरटाइम करना होगा, तब ही फोन उठाएँगे, वरना मिस्ड कॉल।
एक कमेंट करने वाले (u/ShadowDragon8685) ने ऐसे समझाया, जैसे क्रिकेट की बैटिंग ऑर्डर हो—जिसने सबसे कम ओवरटाइम लिया है, उसे पहले मौका मिलेगा। अगर आपने फोन उठाकर “ना” बोल दिया, तो भी उस मौके को आपके खाते में जोड़ दिया जाता है, और आप पीछे खिसक जाते हैं। लेकिन अगर फोन ही न उठाएँ, तो आप आगे ही बने रहते हैं। यानी अगली बार वही पहला मौका।
एक और कमेंट में (u/Shadow_Shrugged) ने खूब कहा—ये असली 'ऑन कॉल' तो है ही नहीं, क्योंकि असली ऑन कॉल में तो आपको हर हाल में पहुँचना ही पड़ता है और उसका पैसा भी मिलता है। यहाँ तो कंपनी बिना पैसा दिए, कर्मचारियों को झाँसा दे रही है।
कंपनी की दुविधा और कर्मचारियों की जीत
अब कंपनी वाले परेशान—आधे लोग फोन क्यों नहीं उठा रहे? लेकिन कॉर्पोरेट तो कॉर्पोरेट! सीधा कर्मचारियों से पूछने की बजाय, कंसल्टेंट्स की फौज बुला ली गई, मीटिंग्स पर मीटिंग्स, कमेटी पर कमेटी, और सब एक-दूसरे की टांग खींच रहे हैं। जैसे हमारे सरकारी दफ्तरों में हर छोटी बात के लिए फाइल आगे बढ़ती रहती है, वैसे ही यहाँ भी समाधान नहीं, बस चर्चा होती रही।
एक और मजेदार कमेंट (u/InterruptingChicken1) ने पुराने ज़माने का किस्सा सुनाया—कैसे यूनियन वाले स्टाफ ने कंपनी की नीतियों का फायदा उठाकर रातभर फायर अलार्म बंद कर, डबल-ट्रिपल ओवरटाइम कमा लिया। यानी जहाँ भी सिस्टम में छेद हो, भारतीय हो या विदेशी, कर्मचारी अपना फायदा निकाल ही लेते हैं!
सीख: जब नियम उल्टा पड़ जाए
इस पूरी कहानी से एक बात साफ है—कंपनी के बड़े-बड़े अफसर जब भी मानव स्वभाव को नजरअंदाज कर सिर्फ कागज़ी नियम बनाते हैं, तो कर्मचारी अपनी जुगाड़ निकाल ही लेते हैं। यहाँ भी, ओवरटाइम पाने की चाह रखने वालों ने सिस्टम की चालाकी से ऐसी तोड़ निकाली कि कंपनी खुद उलझ गई।
कुछ कमेंट्स में ये भी कहा गया कि कंपनी चाहती तो सबको ग्रुप मैसेज भेजकर “पहले आओ, पहले पाओ” कर सकती थी, लेकिन फिर जिनके पास फोन नहीं होता, वो पीछे रह जाते। यानी "सबको बराबर मौका" देना भी टेढ़ी खीर है!
अंत में: आपकी कंपनी में भी ऐसा कुछ हुआ है क्या?
तो दोस्तों, ये थी एक कंपनी की नीति और कर्मचारियों की चालाकी की कहानी। आपके ऑफिस में भी ऐसे नियम या जुगाड़ू किस्से हुए हैं क्या? या कभी आपने भी नियमों का फायदा उठाया है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए, और अपने दोस्तों के साथ ये मजेदार किस्सा शेयर करना न भूलें! ऑफिस की दुनिया में नियम तोड़ना भी एक कला है—और सच्चे कलाकार तो हम सब हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: Corporate overtime policy leads to less coverage