कागज़ी घोड़े और कोड की जंग: जब सॉफ्टवेयर माइग्रेशन बना नौकरशाही का ड्रामा
ऑफिस की ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसा लगता है मानो काम करने से ज़्यादा वक़्त काम समझाने और कागज़ी कार्रवाई में निकल जाता है। ख़ासकर जब आप किसी बड़ी कंपनी में हों, जहाँ हर चीज़ के लिए एक-एक परत मैनेजमेंट, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और आर्किटेक्ट्स की होती है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है—मजे़दार, चुटीली और हर उस शख्स के दिल के क़रीब जो कभी ‘कारपोरेट रेड टेप’ से गुज़रा है।
जब 'क्लाउड' बना नया फैशन और मैनेजमेंट की फौज उतरी
कुछ साल पहले, जब 'क्लाउड' टेक्नोलॉजी IT सेक्टर का नया ताज था, बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने सॉफ्टवेयर Amazon Web Services (AWS) पर शिफ्ट करने का आदेश जारी कर दिया। अब ज़रा सोचिए, एक छोटी सी टीम—सिर्फ चार डिवेलपर्स—जिसे कंपनी में कोई खास पूछ नहीं, उन्हें सबसे पहले ये जिम्मेदारी मिल गई! क्यों? क्योंकि बड़े लोगों के लिए तो 'ट्रायल' छोटे लोगों पर ही होता है।
हमने AWS पर नई इंफ्रास्ट्रक्चर सेट की, कुछ दिनों तक पुराने डेटा सेंटर और AWS दोनों पर सर्विस चलाई, ताकि सब कुछ ठीक से समझ लें। जब सब सेट हो गया, हमने मैनेजमेंट को बोल दिया, "भैया, अब कब कटओवर करना है, बता दो।"
कागज़ी कार्रवाई: असली रणभूमि तो यहीं थी!
अब असली खेल शुरू हुआ—कागज़ी कार्रवाई का। ऊपर से एक प्रोजेक्ट मैनेजर (PM) प्रकट हुए, हाथ में मोटा सा फॉर्म और सवालों की लंबी लिस्ट लेकर। "डिप्लॉयमेंट प्रोसेस डाक्यूमेंट करो"—हमारा जवाब: "बिल्ड सर्वर पर 'Deploy' बटन दबा दो, हो गया!" "रोलबैक प्रोसेस बताओ"—हमारे यहाँ रोलबैक नाम की कोई चीज़ नहीं थी, जब कुछ गड़बड़ हो जाए तो फटाफट कोड बदलो और फिर से डिप्लॉय कर दो।
जैसे हमारे देश में कोई अफसर काग़ज में कोई भी 'खाली बॉक्स' देख ले, वैसे ही PM बुरी तरह भड़क गईं—"हर बॉक्स में सही जवाब चाहिए!" बिज़नेस कांटेक्ट, टेक्निकल कांटेक्ट, आर्किटेक्ट, चेंज रिक्वेस्ट—हर चीज़ का नाम चाहिए, और वो भी ढंग से, जैसे कोई सरकारी दफ्तर में RTI लगा रहा हो।
कॉरपोरेट और स्टार्टअप: दो दुनियाएँ, एक जंग
हमें समझ आया कि बड़ा कॉरपोरेट और हमारी 'जुगाड़ू' टीम, दोनों की सोच में जमीन-आसमान का फर्क था। हम तो वही 'भाई, काम करो, जब गड़बड़ हो तो फटाफट सुधारो' वाले लोग थे। उधर, नियम-कायदे इतने कि जैसे शादी के कार्ड में पंडितजी मंत्र भूल जाएँ—हर चीज़ पर दस्तखत, हर कदम पर अप्रूवल!
एक कमेंट करने वाले ने मज़े लेते हुए कहा, "अरे भाई, रोलबैक तो 'git revert' है, वही रोलबैक प्रोसेस लिख दो!" किसी और ने याद दिलाया कि सॉफ्टवेयर तो ठीक है, पर अगर आपके नए बिल्ड ने डाटाबेस का ढांचा बदल दिया तो 'git revert' भी काम नहीं आएगा—जैसे बिरयानी में नमक भूल गए और अब सिर्फ चावल बदल रहे हैं।
दूसरे कमेंट में किसी ने तो ये भी लिखा, "इतने आर्किटेक्ट चाहिए, जिनके टाइटल में 'आर्किटेक्ट' लिखा हो।" भाई, हमारे यहाँ तो ये भी मुश्किल था कि चार लोगों की टीम में सबको अलग-अलग रोल दे दें—आर्किटेक्ट, टेक्निकल कांटेक्ट, बिज़नेस ओनर, सब कुछ!
जब डिप्लॉयमेंट से ज़्यादा वक़्त कागज़ों पर गया
आखिरकार, घंटों की माथापच्ची के बाद, PM और दो-तीन मिडिल मैनेजर्स के साथ कॉल लगी। "क्या बिज़नेस ओनर का अप्रूवल है?"—"हाँ, है।" "क्या टेक्निकल ओनर का अप्रूवल है?"—"हाँ, है।" "अब डिप्लॉयमेंट शुरू करो।"
नब्बे सेकंड की चुप्पी, सब साँसें रोककर बैठे, जैसे किसी शादी में दूल्हा-दुल्हन के फेरे पूरे होने वाले हों। और... डिप्लॉयमेंट हो गया, बिना किसी 'धमाका' या 'क्लाइमेक्स' के। बस, काम हो गया। सबको लगा, "अरे, इतना सारा ड्रामा था, और असली काम तो मिनटों में हो गया!"
एक कमेंट में किसी ने लिखा, "ये नौकरशाही तो 5 मिनट के काम को पूरे दिन का झंझट बना देती है। असली मुश्किल तो कागज़ी काम है, कोडिंग तो बाद में आती है।"
ITIL, SOP और बेमतलब की मीटिंग्स: क्या वाकई ज़रूरी हैं?
कुछ अनुभवी लोगों ने कमेंट में ITIL (Information Technology Infrastructure Library) और SOP (Standard Operating Procedure) की चर्चा की। एक साहब ने बताया कि कैसे ITIL ने उनके ऑफिस में ज़रूरी अनुशासन लाया, तो किसी ने कहा कि ये सब 'प्रक्रिया' कभी-कभी इतनी जटिल हो जाती है कि असली जिम्मेदारी कहीं खो जाती है। किसी ने मज़ाक में सुझाव दिया—"अगली बार पांच और लोगों को भर्ती कर लो—प्रोसेस आर्किटेक्ट, डेवऑप्स आर्किटेक्ट, क्लाउड सॉल्यूशन आर्किटेक्ट और दो QA—ताकि फॉर्म अच्छे से भर सको!"
निष्कर्ष: 'रेड टेप' से लड़ना, हर टेक्नोलॉजी वर्कर की किस्मत
तो साथियों, ये थी कहानी एक सॉफ्टवेयर माइग्रेशन की, जो असल में कागज़ों, अप्रूवल्स और फॉर्म में उलझ गई। भारत में भी अक्सर ऐसा ही होता है—कभी PF ट्रांसफर करना हो, कभी बैंक में खाता खोलना, हर जगह फॉर्म, दस्तावेज़, अप्रूवल और मीटिंग्स की भरमार।
अगर आप भी कभी 'रेड टेप' के चक्कर में फंसे हों, तो अपनी कहानी ज़रूर शेयर करें! क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे मज़ेदार कागज़ी घोड़े दौड़ते हैं? या आपका बॉस भी हर फॉर्म पर दस लोगों के साइन मांगता है? नीचे कमेंट में बताइए, ताकि हम सब मिलकर इस नौकरशाही पर हँस सकें—क्योंकि, आखिर में, हँसी ही तो सबसे बड़ी राहत है!
मूल रेडिट पोस्ट: Red tape: Software cutover edition