ऑफिस में सहकर्मियों की बदतमीज़ी पर एक मज़ेदार बदला – जब डेस्क बनी रणभूमि!
ऑफिस में काम करना वैसे ही किसी रणभूमि से कम नहीं होता, लेकिन जब आपके सहकर्मी आपकी मेहनत और जगह की कद्र न करें तो मामला और भी दिलचस्प हो जाता है। सोचिए, आप अपना काम कर रहे हों और बार-बार कोई अपनी चाय, कॉफी या पानी की बोतल आपके डेस्क पर रख दे, जैसे आपकी टेबल कोई रेलवे स्टेशन की प्रतीक्षालय हो! ऐसी ही एक कहानी Reddit पर एक यूज़र ने शेयर की, जिसने सबको हँसा-हँसा कर लोटपोट कर दिया।
ऑफिस का कोना, सबका कबाड़खाना!
हमारे नायक की कहानी शुरू होती है एक कोने वाले डेस्क से, जो ऑफिस के दरवाज़े के पास था। अब भारतीय दफ्तरों में भी ऐसा अक्सर देखने को मिलता है – जो भी रास्ता पास वाला हो, लोग वही पकड़ लेते हैं चाहे किसी की जगह में घुसना पड़े या नहीं। यहाँ भी वही हाल था; उनके कुछ कॉलिग्स जाते-जाते अपनी ड्रिंक उनके डेस्क पर रख देते और टॉयलेट से लौटकर उठा लेते।
शुरुआत में तो उन्होंने विनम्रता से समझाया, “भैया, ज़रा अपनी ड्रिंक अपने पास ही रखो, मेरी टेबल पर नहीं।” लेकिन भारतीयों की तरह, यहाँ भी लोगों ने बात को हवा में उड़ा दिया। आखिरकार, उन्होंने भी देसी जुगाड़ अपनाया – टेबल के कोने पर एक अतिरिक्त कूड़ादान रख दिया और जो भी वस्तु वहाँ मिली, सीधा उसी में फेंक दी! फिर क्या था, लौटे सहकर्मी और उनकी ड्रिंक गायब।
अद्भुत बदले की शुरुआत – “मुझे नहीं पता किसने छोड़ा, पर ये तो कूड़ा था!”
जब लोग वापस लौटकर अपनी ड्रिंक ढूंढते, तो बड़े मासूम बनकर कहते, “माफ़ कीजिए, मुझे नहीं पता ये किसका था, लेकिन मेरी डेस्क पर तो कूड़ा था, मुझे तो जगह चाहिए थी काम करने के लिए।” अब सोचिए, अगर इंडिया में किसी ने किसी और की चाय कूड़ेदान में डाल दी, तो क्या हंगामा हो जाता! पर यहाँ तो सबका जवाब – ‘अरे, कोई बात नहीं, अगली बार ध्यान रखेंगे।’
एक Reddit यूज़र ने शानदार कमेंट किया – “कुछ लोगों को समझाने के लिए हल्की हिंसा ही कारगर होती है!” यानी जब तक चोट न लगे, बात समझ नहीं आती। ये बात ऑफिस की राजनीति में खूब फिट बैठती है। एक और ने लिखा, “जो पहिया चरमराता है, उसी पर तेल डाला जाता है।” यानी जब तक आप अपनी परेशानी खुलकर नहीं दिखाएंगे, कोई आपकी मदद नहीं करेगा।
डेस्क की सुरक्षा – चेयर का जादू
अब डेस्क पर तो कब्जा छूटा, लेकिन लोग अब भी उनकी कुर्सी के पीछे से आते-जाते टकरा जाते थे। भारतीय दफ्तरों में भी ये आम बात है – तंग गलियों में लोग ऐसे निकलते हैं जैसे वो ही मालिक हों। हमारे नायक ने भी जबरदस्त उपाय निकाला – जब भी कोई पास से निकलता, वो ‘संयोगवश’ अपनी चेयर पीछे घुमा देते! कभी फाइल निकालने के बहाने, कभी बस यूँ ही। नतीजा – लोगों के पैरों में हल्की चोट, गुस्से में बड़बड़ाहट, पर बहाना तैयार – “माफ़ कीजिए, आपको चोट तो नहीं लगी? चाहें तो मैं रिपोर्ट भी लिख दूं।”
एक कमेंट में किसी ने लिखा, “आपने तो पासिव-अग्रेसिव बैटरिंग राम की तरह सबक सिखाया!” और सच में, ये तरीका बड़ा देसी और असरदार था। भारत में भी ऐसे मुँहतोड़ जवाब कई बार देखने को मिलते हैं – जब विनम्रता काम न आए, तो हल्की सख्ती चलती है।
ऑफिस की राजनीति, कब बदलें लोग?
इस पोस्ट पर ढेरों लोगों ने अपनी-अपनी कहानियाँ भी सुनाईं। किसी ने बताया कि उनके ऑफिस में भी लोग उनके टूलबॉक्स पर खाने-पीने का सामान छोड़ जाते थे, तो उन्होंने सबका सामान सीधा गंदे फर्श पर रख दिया। एक ने तो यहां तक कह दिया – “ओपन ऑफिस एक बहुत बड़ी गलती है, तभी तो सबका जीना हराम है!”
एक यूज़र ने बड़ा मज़ेदार उदाहरण दिया – “मेरा पड़ोसी अपने कुत्ते को खुले में छोड़ देता था, बार-बार समझाया, नहीं माना। आखिरकार, नगरपालिका में शिकायत की, तब जाके चैन मिला।” यानी भारत हो या विदेश, जब तक आप ज़ोर से अपनी बात नहीं बताएंगे, लोग अपनी आदतें नहीं छोड़ते।
एक और कमेंट ने बड़ी सच्चाई बयां की – “कुछ लोग तब तक नहीं सुधरते जब तक उन्हें दर्द न हो।” यानी ‘डंडा’ ही सबसे कारगर उपाय है, चाहे ऑफिस हो या मोहल्ला।
निष्कर्ष – अपनी जगह की इज़्ज़त खुद कराओ!
कहानी का सार यही है – ऑफिस हो या घर, अपनी जगह की इज़्ज़त खुद करनी पड़ती है। जब तक आप अपनी परेशानी नहीं बताएंगे (या दिखाएंगे), लोग आपकी जगह पर कब्जा जमाते रहेंगे। कभी-कभी हल्की सी ‘पेटी रिवेंज’ (छोटी बदला लेने की तकनीक) भी ज़रूरी है, ताकि लोग समझें कि हर किसी की सहनशीलता की सीमा होती है।
तो अगली बार जब कोई आपके डेस्क पर चाय का कप रखे, या बार-बार आपकी पीठ से टकराए, तो सोचिए – क्या आप भी ऐसा जुगाड़ अपनाएंगे?
क्या आपके साथ भी ऑफिस में ऐसे मजेदार या चिढ़ाने वाले किस्से हुए हैं? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं! और अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें – क्या पता उन्हें भी कोई नया ‘बदला’ आइडिया मिल जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Stopped co-workers from leaving their trash on my desk