ऑफिस में व्यस्त दिखने की कला: जब काम से ज्यादा नाटक काम आता है!
क्या आपने कभी ऑफिस में वो लोग देखे हैं जो हमेशा घबराए-से, फाइलों में उलझे, या कंप्यूटर स्क्रीन पर आँखें गड़ाए दिखते हैं? आप सोचते हैं, "वाह, कितना मेहनती इंसान है!" लेकिन अगर सच्चाई जान लें तो हँसी रोकना मुश्किल हो जाएगा। आज हम ऐसी ही एक कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें मेहनत कम, एक्टिंग ज्यादा थी – और मज़े की बात, इसी एक्टिंग से प्रमोशन तक मिल गया!
जब मेहनत जल्दी खत्म हो जाए, तो क्या करें?
कहानी शुरू होती है एक प्रोडक्शन कंपनी में, जहाँ हमारे नायक बड़ी लगन से अपना 8-5 वाला काम अक्सर दोपहर से पहले ही खत्म कर देते थे। कुछ महीनों तक सब बढ़िया चला, लेकिन फिर एक दिन सुपरवाइजर ने बुलाया और बोला, "तुम्हें थोड़ा और व्यस्त दिखना चाहिए, लोग कह रहे हैं कि तुम जल्दी फ्री हो जाते हो।"
भले ही हमारे नायक ने पूछा, "मैं दूसरों की मदद करूं या कुछ और काम ले लूं?" जवाब मिला – "नहीं-नहीं, बस माउस क्लिक करो, कागज इधर-उधर करो और गंभीर चेहरा बनाओ।"
बस फिर क्या था, शुरू हुआ 'मालिशियस कम्प्लायंस' का असली तमाशा!
ऑफिस में व्यस्त दिखने के देसी जुगाड़
अब शुरू हुआ असली नाटक। अगले दो हफ्ते तक, हमारे नायक ने "ऑफिस स्पेस" फिल्म की तर्ज़ पर पूरा ऑफिस छका दिया। कभी क्लिपबोर्ड लेकर इधर-उधर टहलना, कभी स्क्रीन पर आँखें सिकोड़कर एक्सेल खोलना, तो कभी प्रिंटर से खाली पन्ने निकालकर ऐसे निकलना जैसे कोई बहुत बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा हो।
एक मजेदार ट्रिक थी – डबल मॉनिटर लगाकर उस पर ऐसे ग्राफ्स दिखाना जिनका कोई मतलब ही नहीं! और फर्जी मीटिंग्स शेड्यूल करना, जैसे "Q4 स्ट्रेटेजी अलाइन्मेंट" – मानो कोई बहुत ऊँचे लेवल की मीटिंग हो।
इसी बीच, ऊपर के मैनेजमेंट ने उनके 'वर्क एथिक्स' की खूब तारीफ की। इतना ही नहीं, एक दिन प्रमोशन भी मिल गया – उनसे भी ज्यादा मेहनती साथी को पीछे छोड़कर!
कॉमेंट्स की महफ़िल: देसी-विदेशी जुगाड़ और किस्से
Reddit के कमेंट्स में तो जैसे अनुभवों की बारिश हो गई! एक ने लिखा, "क्लिपबोर्ड की ताकत मैंने भी सीखी है। गोदाम में जब काम नहीं होता था, तो क्लिपबोर्ड लेकर यूँ ही घूमना, सबको लगता था कोई खास असाइनमेंट है।"
एक और ने तो सीधा तरीका बताया – "अगर कोई बॉस पास आए तो माथा सिकोड़ो, कोई नंबर काटो और नया लिखो। कोई पास भी नहीं फटकेगा, समझेंगे बहुत जरूरी काम चल रहा है।"
एक मजेदार देसी टिप आई – "कुछ मत करो, बस स्क्रूड्राइवर या कोई औजार लेकर घूमो। पूछें तो बोलो – अभी-अभी कुछ ठीक किया है। कोई प्रूफ थोड़े ही चाहिए!"
किसी ने मासूमियत से बताया, "हमारी टीम तो 10-11 बजे तक सारा काम खत्म कर लेती थी, फिर बास्केटबॉल खेलते थे – लेकिन नजर रखते थे कि नया काम आ जाए तो तुरंत लग जाएं।"
कुछ तो इतने प्रो हो गए कि 'शेमिंग' (यानी दिखावे के लिए व्यस्त दिखना) को ही सबसे बड़ा हुनर बता दिया – "आर्मी में सीखा, खाली नजर आओगे तो पत्थर रंगने या मैदान झाड़ने का काम दे देंगे!"
भारतीय नजरिए से: दिखावे का खेल और दफ्तर की राजनीति
हमारे देश में भी कुछ ऐसा ही माहौल है। ऑफिसों में कई बार देखा गया है कि जो सबसे ज्यादा व्यस्त दिखता है, वही सबसे 'मेहनती' समझा जाता है। चाहे वो सच में काम कर रहा हो या सिर्फ स्क्रीन पर डेटा घुमा रहा हो।
किताबों में तो लिखा है – "कर्म करो, फल की चिंता मत करो" – लेकिन ऑफिस में तो लगता है, "दिखावा करो, प्रमोशन की चिंता मत करो!"
कई पाठकों ने यही सलाह दी – "अगर अपना काम जल्दी पूरा कर लो, तो बस दिखावे में लग जाओ। ज्यादा मेहनत करोगे तो वही नया स्टैंडर्ड बन जाएगा, और उम्मीदें बढ़ जाएंगी।"
एक कमेंट में तो यहां तक कहा गया, "हमारे ऑफिस में अगर कोई खाली दिख गया तो उसे बेकार के काम में लगा देते – इसलिए हमेशा फाइल या कोई सामान लेकर तेज़-तेज़ चलो, कोई परेशान नहीं करेगा!"
निष्कर्ष: असली मेहनत या सिर्फ दिखावा – क्या है कामयाबी का राज़?
कहानी से एक बात तो साफ है – कई बार दफ्तर का खेल मेहनत से ज्यादा इमेज का होता है। दिखावे की एक्टिंग, सही टाइम पर माथा सिकोड़ना, फाइलें उलट-पलट करना – ये सब भी एक तरह की 'ऑफिस स्किल' हो गई है।
तो अगली बार जब कोई सहकर्मी आपको क्लिपबोर्ड लेकर गंभीर चेहरा बनाकर घूमता दिखे, तो समझ जाइए – शायद वो भी "द आर्ट ऑफ लुकिंग बिजी" का उस्ताद है!
आपका क्या अनुभव रहा है ऑफिस के इस नाटक में? क्या आपने कभी खुद ऐसा किया है या किसी को रंगे हाथों पकड़ा है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगर कहानी पसंद आई हो तो अपने साथियों के साथ शेयर करें – ताकि अगली बार प्रमोशन की रेस में आप भी पीछे न रहें!
मूल रेडिट पोस्ट: The art of looking busy.