ऑफिस में बिल्लियों पर 45 मिनट की मीटिंग – ये किस्सा सुनकर हँसी छूट जाएगी!
कभी सोचा है, आपके ऑफिस में आपकी बिल्लियों की फोटो दिखाने पर आप पर सवाल-जवाब की बौछार हो सकती है? जी हाँ, ऐसा ही हुआ एक होटल मैनेजर के साथ, जब उसके प्यारे पालतू जानवर – खासकर बिल्लियाँ – दफ्तर की राजनीति का मुद्दा बन गए! कहानी में ट्विस्ट, ह्यूमर और वो देसी तड़का है, जिससे आप खुद को रोक नहीं पाएँगे।
जब बिल्लियाँ बन गईं "कार्पोरेट अपराध"
हमारे नायक (फ्रंट ऑफिस मैनेजर) ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बिल्लियों की फोटो ऑफिस डेस्क पर रखने से आफत आ जाएगी। वैसे तो ऑफिस में सभी अपने-अपने बच्चों, परिवार या पालतू जानवरों की फोटो लगाते हैं – जैसे हमारे यहाँ लोग भगवान की फोटो या परिवार की तस्वीर रखते हैं। लेकिन यहाँ मामला कुछ अलग था।
एक होटल से दूसरे होटल में ड्यूटी लगाने भेजा गया, जहाँ यूनियन का राज था। वहाँ के नियम-कायदे बिल्कुल अलग थे – कह सकते हैं जैसे सरकारी दफ्तर और प्राइवेट दफ्तर में फर्क होता है। नायक नए माहौल में थोड़ा घबराए, लेकिन सबके साथ विनम्रता से पेश आए। एक दिन ब्रेक के वक्त एक सहकर्मी ने पूछा – "शादी हुई?" फिर आगे – "कोई पालतू है?" बस, नायक ने अपने डॉग और दो बिल्लियों की एक प्यारी सी फोटो दिखा दी।
मीटिंग का ड्रामा: "बिल्लियाँ तो बताई क्यों?"
एक महीने बाद जब नायक अपने असली ऑफिस लौटे, तो HR और GM ने बुला लिया – और शुरू हुई 45 मिनट की मीटिंग! मुद्दा ये था कि यूनियन होटल के लोग उनकी बिल्लियों के बारे में क्यों जानते हैं। जैसे बिल्लियाँ कोई राष्ट्रीय गुप्त रहस्य हों! GM ने तो यहाँ तक कह दिया – "मेरे डॉग्स की फोटो ऑफिस में लगी है, सबको पता है, लेकिन मेरी बिल्लियों के बारे में लगभग कोई नहीं जानता!"
यहाँ किसी कमेंटेटर की बात याद आती है – "अगर आप अपने पालतू की फोटो राह चलते अनजान को नहीं दिखाते, तो क्या आप सच्चे पेट लवर हैं?"
मज़े की बात – ऑफिस की HR मैडम के पास भी खुद की बिल्ली की फोटो थी। लेकिन जब नायक ने ये बात बताई, तो सब बोले – "वो अलग है!" अब समझ नहीं आया, बिल्लियों में ऐसा क्या गुप्त है जो डॉग्स में नहीं?
यूनियन और ऑफिस पॉलिटिक्स: क्या था असली खेल?
कई कमेंट्स में लोगों ने इस बात पर चर्चा की कि असली परेशानी ये थी कि नायक यूनियन वाले होटल में ‘बाहर’ के आदमी थे। जैसे हमारे यहाँ सरकारी विभाग में बाहर से किसी को कंट्रोल करने भेज दिया जाए – कर्मचारी संदेह की नज़र से देखने लगते हैं।
एक यूज़र ने लिखा – "शायद उन्हें डर था कि आप यूनियन का माहौल देखकर 'संक्रमित' (influence) हो जाएँगे!" यानी, यूनियन कर्मचारियों के साथ दोस्ती कंपनी वालों को हजम नहीं हुई। वहीं दूसरे ने कहा – "यूनियन वाले जॉब में बाहरवाले को काम नहीं करना चाहिए, ये नियमों के खिलाफ है।"
नायक को मीटिंग में 'इनीशिएटिव' की कमी के लिए डाँटा गया – जबकि सारा काम, लॉगिन, ईमेल सब उन्होंने खुद ही किया। बहुतों ने लिखा – "अगर आप यूनियन में होते, तो कभी इतनी बेतुकी डाँट नहीं मिलती।" यानि यूनियन कर्मचारियों को सुरक्षा मिलती है, लेकिन मैनेजर या बाहर से आए व्यक्ति को नहीं।
बिल्लियाँ, डॉग्स और दफ्तर की राजनीति
सोचिए, हमारी संस्कृति में भी ऑफिस में चाय पर गपशप, बच्चों या पालतू की बातें आम हैं। कोई अपने कुत्ते की फोटो दिखाए तो सब हँसते हैं, कोई बिल्ली की बात करे तो कोई फर्क नहीं। लेकिन यहाँ तो जैसे बिल्ली का नाम लेना ही अपराध हो गया!
एक कमेंट में किसी ने कहा – "क्या ऑफिस में बिल्ली की चर्चा कोई गंदी बात है?" सच कहें तो, भारतीय दफ्तरों में तो लोग अपने घर के तोते, गधे, गाय, सबकी बातें करते हैं। यहाँ पर तो बस, पालतू जानवरों से बात आगे बढ़ गई थी।
कहानी का सार: बिल्लियाँ तो बहाना है, असली मुद्दा है राजनीति
कहानी के अंत में नायक ने लिखा – "शायद ऑफिस वाले ये चाहते थे कि यूनियन होटल के लोग मुझसे न घुल-मिल जाएँ, इसलिए बिल्लियों का मुद्दा बनाकर मुझसे पीछा छुड़ाने का प्लान था।" यानी, असली मुद्दा बिल्लियाँ नहीं, बल्कि अंदरूनी राजनीति और मनमुटाव था।
निष्कर्ष: आपकी बिल्लियाँ या कुत्ते, ऑफिस में चर्चा करे या न करे – असली सावधानी तो राजनीति से है!
दोस्तों, इस किस्से से एक बात तो साफ है – कभी-कभी ऑफिस में मुद्दा वही बन जाता है, जिसकी कोई उम्मीद नहीं करता। बिल्लियाँ तो महज एक बहाना थीं, असली खेल था 'किसको ऑफिस में अपनाया जाए, किसको नहीं'।
आपका क्या अनुभव है? क्या आपके ऑफिस में कभी किसी छोटी-सी बात पर बड़ा हंगामा हुआ? या आपके पालतू की फोटो पर किसी ने नोटिस किया? कमेंट में जरूर बताइए, और अगली बार ऑफिस में बिल्लियों की फोटो दिखाने से पहले दो बार सोचिएगा – क्या पता अगली मीटिंग का एजेंडा वही बन जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: The 45 Minute Meeting About My Cats