ऑफिस में नए हो? सहकर्मियों से बदतमीज़ी का ऐसा मिला जवाब कि हिल गया पूरा माहौल!
कार्यालय की दुनिया में अक्सर हम सुनते हैं – "ऑफिस को परिवार मत समझो, पर व्यवहार में मिठास ज़रूर रखो।" लेकिन अगर कोई नया-नया कर्मचारी आते ही सबको नीचा दिखाने लगे, तो क्या हो? आज की कहानी बिलकुल ऐसी ही एक मजेदार और दिलचस्प घटना है, जिसमें एक सहकर्मी ने चुपचाप ऐसा दांव चला कि पूरे ऑफिस का माहौल ही बदल गया।
जब 'रिश्तेदारी' बन गई सिरदर्द
मान लीजिए, आपकी टीम बिल्कुल परिवार की तरह है – हँसी-मज़ाक, इज्ज़त, और एक-दूसरे का ख्याल... लेकिन अचानक एक दिन, मैनेजर की बहू (डॉट-इन-लॉ यानी DIL) ऑफिस में आ धमकती है। नाम है 'सूज़ी' (Suzy)। पहले से ही सख्त स्वभाव वाली सुपरवाइज़र 'मैरी' (Mary) की बहू, और स्वभाव में तो जैसे दादी अम्मा से भी दो कदम आगे! न कोई लिहाज़, न कोई तहज़ीब। सबका कहना – "सूज़ी, मैरी का सुपर-पावर्स वर्जन है – बिल्कुल बिन बुलाए मेहमान जैसी!"
जैसा हमारे देश में भी होता है, ऑफिस में अगर बॉस की रिश्तेदार आ जाए, तो माहौल थोड़ा अलग हो ही जाता है। लेकिन यहाँ तो सूज़ी ने सबकी नाक में दम कर दिया – रूखा व्यवहार, दूसरों पर हुक्म चलाना, और ज़रा भी मदद का इरादा नहीं।
सब्र का बाँध टूटता है, तो चालाकी से आती है 'प्यारी' बदला
अब सोचिए, कोई नया-नया कर्मचारी, ऊपर से रिश्तेदार, और सबको परेशान भी करे, तो सहकर्मियों का गुस्सा जायज़ है। मगर हमारे नायक (OP) ने कोई बड़ा हंगामा नहीं किया। बस, कंपनी की एम्प्लॉयी हेल्पलाइन पर फोन घुमा दी और भोलेपन से पूछा – "ओरिएंटेशन में सुना था कि रिश्तेदार साथ में काम नहीं कर सकते, ऊपर से एक सुपरवाइज़र हो तो बिलकुल नहीं।"
बस, क्या था! जैसे ही ये बात ऊपर तक पहुँची, सूज़ी का ट्रांसफर/निकालना तय हो गया। ऑफिस में सबने चैन की साँस ली। OP खुद भी कहते हैं, "ये जीत छोटी थी, मगर दिल को बहुत सुकून मिला। आज भी उस दिन को याद कर मुस्कुरा लेता हूँ।"
कम्युनिटी के तड़केदार तज़ुर्बे
रेडिट कम्युनिटी ने इस कहानी पर जबरदस्त प्रतिक्रियाएँ दीं। किसी ने बड़े ही मज़ेदार अंदाज़ में कहा, "नया हो, तो आदर से पेश आओ, वरना छोटे-छोटे बदले बड़े रंग दिखा सकते हैं।" एक और सदस्य ने लिखा – "ओपी ने तो जैसे बिना शोर किए बम फोड़ दिया।"
भारतीय दफ्तरों में भी अक्सर देखा जाता है कि 'जान-पहचान' वाले लोग नियम ताक पर रख देते हैं। एक कमेंट में किसी ने लिखा – "हमारे यहाँ तो कई बार मैनेजर अपने रिश्तेदारों को ला ही बैठते हैं, लेकिन अगर वो इंसान अच्छा है, तो किसी को फर्क नहीं पड़ता। दिक्कत तब आती है जब वो 'आका' बनने लगे।"
एक और मजेदार कमेंट था – "कभी-कभी ऑफिस में नियम तभी लागू होते हैं, जब कोई शिकायत कर दे। वरना सब आँख मूँद लेते हैं! यही तो असली भारत है भैया!"
नेपोटिज़्म, नियम और शिष्टाचार: सीखने लायक बातें
इस कहानी से कई बातें निकलकर आती हैं – सबसे बड़ी, 'नेपोटिज़्म' यानी रिश्तेदारी का गलत फायदा उठाना। भारत में भी यह आम समस्या है; हर दूसरा कर्मचारी कभी-न-कभी इसका शिकार हुआ है। लेकिन यहाँ एक पाठक ने सही लिखा, "अगर सूज़ी का व्यवहार अच्छा होता, तो शायद किसी को फर्क ही न पड़ता। नियमों की सख्ती तब ही दिखती है, जब आप सबका जीना हराम कर दें!"
एक और पाठक ने कहा, "ऑफिस में मुस्कुराना, नम्रता दिखाना बिल्कुल मुफ़्त है। फिर भी कुछ लोग खुद को राजा समझ लेते हैं।" इसी से जुड़ा एक और अनुभव साझा किया गया – "मैंने कभी एक बुजुर्ग महिला की मदद की थी, बाद में उनके बेटे ने मेरी गाड़ी की मरम्मत मुफ्त में कर दी। अच्छाई लौटकर जरूर आती है!"
जैसा हिन्दी कहावत है – "जैसी करनी, वैसी भरनी।" सूज़ी के मामले में भी यही हुआ। नियम तोड़े, सबको तंग किया, तो किस्मत ने उनकी छुट्टी करवा दी।
ऑफिस की राजनीति पर थोड़ी हँसी, थोड़ी सीख
जिस तरह चर्च, शादी-ब्याह या मोहल्ले में 'अपनी-अपनी जगह' होती है, वैसे ही दफ्तरों में भी 'अपनी-अपनी पहचान' होती है। कोई नया आए और सीधे हुक्म चलाने लगे, तो लोग उसे दिल से कभी स्वीकार नहीं करते। एक पाठक ने लिखा – "ऑफिस में तो इतना वक्त साथ बिताते हैं कि कम से कम विनम्रता तो बनती है।"
हर किसी के पास कोई न कोई 'सूज़ी' कहानी होती है – कभी कोई सीट छीनने वाला, कभी अपनी जान-पहचान का रौब दिखाने वाला। लेकिन, जैसा एक पाठक ने लिखा – "6 से 4 बजे तक सबका दोस्त बनकर रहो, फिर घर जाकर सारा गुस्सा निकाल लेना!"
निष्कर्ष: विनम्रता का फल हमेशा मीठा
इस कहानी ने एक बार फिर साबित कर दिया – ऑफिस हो या जीवन, शिष्टाचार और विनम्रता से ही माहौल बनता है। अगर आप नए हैं, तो सिखने की कोशिश करें, दूसरों का सम्मान करें। रिश्तेदारी का फायदा उठाने से पहले सोच लें – कहीं कोई चुपचाप आपके खिलाफ 'कंपनी हेल्पलाइन' तो नहीं घुमा देगा!
तो, अगली बार जब आपका कोई सहकर्मी आपको परेशान करे, याद रखिए – कभी-कभी सबसे मीठा बदला सबसे शांत तरीके से लिया जाता है। और हाँ, थोड़ी-सी भलमनसाहत और एक मुस्कान ज़िंदगी बहुत आसान बना सकती है।
आपका क्या अनुभव रहा है ऑफिस की ऐसी राजनीति में? कमेंट में ज़रूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: If you're brand new at work... don't be nasty to your coworkers.