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ऑफिस में गैसलाइटिंग का बदला: जब कर्म ने अपना काम दिखाया

कहते हैं, "जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।" लेकिन क्या हो जब बोया हुआ बीज सालों बाद किसी और खेत में उगे? आज की कहानी एक ऐसे ही कर्मचारी की है, जिसे उसके गैर-लाभकारी (Nonprofit) ऑफिस में बेमतलब की साजिशों का शिकार बनाया गया — और फिर किस्मत ने ऐसा पलटा मारा कि खुद ऑफिस वाले ही पछता गए।

हमारे देश में भी, ऑफिस की राजनीति और 'मुँह पे कुछ, पीठ पीछे कुछ और' वाली संस्कृति खूब देखने को मिलती है। कभी बॉस 'सब ठीक है' कहकर मुस्कुराता है, तो अगले ही पल आपकी जिम्मेदारियाँ किसी और को थमा देता है। आज हम जानेंगे, कैसे एक 'सीधा-सादा' बदला, सालों बाद एक बड़े मौके की तरह सामने आया।

जब ऑफिस बना 'सांप-सीढ़ी' का खेल

कहानी की शुरुआत होती है एक छोटे से गैर-लाभकारी संस्थान से, जहाँ लेखक (चलो, इन्हें 'सुमन' कहकर बुलाते हैं) ने काम शुरू किया। संस्थान का काम तो बड़ा नेक था, लोगों की मदद करना, लेकिन अंदर का माहौल— भाई साहब, बिलकुल 'साँप वाला लड्डू'! छह महीने तक सुमन ने जैसे-तैसे काम किया, लेकिन रोज़ाना छोटी-छोटी 'खिचड़ी' पकती रहती थी।

एक दिन सुमन से एक सार्वजनिक गलती हो गई। सुमन ने पूरी ईमानदारी से अपनी भूल मानी, माफी मांगी और आगे सावधान रहने का वादा किया। ऑफिस वाले बोले, "कोई बात नहीं, सब माफ़।" सुमन को भी लगा, चलो, छूटा। लेकिन अगले ही दिन सुमन की मुख्य जिम्मेदारी किसी और को दे दी गई। जब पूछा, तो वही पुराना जवाब— "सब नार्मल है! क्या बात कर रहे हो? बस, जो कर रहे थे, वही करो।" यानी, अब आधा ही काम रह गया!

त्योहार की पार्टी और 'काटा गया' आमंत्रण

अब आती है 'पेटी' राजनीति की असली बारी। सुमन से एक सहकर्मी ने पूछा, "पार्टी में आ रहे हो?" सुमन ने बताया, "मुझे तो मैनेजर ने मना कर दिया, कि ये सिर्फ स्थायी कर्मचारियों के लिए है।" दो दिन बाद, CEO की असिस्टेंट का मेल— "आपका RSVP नहीं मिला पार्टी के लिए!" अरे! तो मैनेजर ने झूठ बोला था? सुमन को गुस्सा तो आया, लेकिन अब मन भी नहीं था जाने का।

इसी दौरान ऑफिस छुट्टी पर चला गया। नए साल के पहले दिन सुमन को बुलाकर कहा, "बजट कम है, तुम्हारी पोस्ट खत्म करनी पड़ेगी।" सुमन ने भी सोचा— "ठीक है, और क्या कह सकते हैं!" जाते-जाते ऑफिस का दिया मग, हथौड़े से तोड़कर मन की भड़ास भी निकाल ली।

'कर्म' का कमाल: सालों बाद आई असली जीत

छह हफ्ते बाद, जब सुमन ने ऑफिस की वेबसाइट देखी, तो पता चला कि वही नौकरी, नए नाम से, नए चेहरे को दे दी गई है। लेकिन तब तक सुमन को फर्क भी नहीं पड़ता था— नई नौकरी, अच्छे लोग, शानदार माहौल!

फिर आया असली ट्विस्ट। सुमन की नई कंपनी में, सुमन ने एक कमिटी में दोस्त 'माइकल' के साथ काम शुरू किया, जो HR में बहुत ऊँचे पद पर था। कंपनी सामाजिक काम के लिए पुराने संस्थान (जहाँ सुमन काम करता था) के साथ साझेदारी करने वाली थी। अब सुमन ने माइकल को पूरी कहानी सुनाई— कैसे वहां गैसलाइटिंग, झूठ, और गोलमाल हुआ था। माइकल ने सारी बातें ध्यान से सुनीं, और तुरंत उस पुराने संस्थान को काली सूची (Blacklist) में डाल दिया।

अब न संस्थान को पता चला, न सुमन का नाम सामने आया। लेकिन उनकी गलतियों की सजा उन्हें मिल गई। सुमन कहती हैं, "अब वे संस्थान डूब रहा है, और मैं प्रमोशन की कतार में हूं— सच्ची खुशी तो यही है!"

कम्युनिटी की चटपटी बातें: सवाल, तंज़ और सीख

रेडिट कम्युनिटी ने भी खूब मजे लिए! एक ने लिखा, "मग तोड़ना तो वाकई पेटी (petty) बदला है, बाकी तो आपने तो सीधा न्याय कर दिया!"
दूसरा बोला, "सोचो, केवल एक कर्मचारी को इंसान समझने में असफल रहने के कारण, कितनी बड़ी डील हाथ से निकल गई— मैनेजमेंट का कमाल!"
किसी ने मजाक में लिखा, "अरे, ये नॉन-प्रॉफिट्स तो 'परिवार' समझ कर ही बर्ताव करते हैं— मतलब, घर की राजनीति!"
किसी और ने बताया, "मेरी पत्नी के साथ भी ऐसा ही हुआ था, उन्हें काम ही देना बंद कर दिया, और 18 महीने बाद पूछा— 'अब आओगी?' बिना माफी, बिना हालचाल!"

खुद सुमन (OP) ने भी कमेंट में सफाई दी— "गलती मेरी थी, मुझे फायर करना चाहिए था। लेकिन उन्होंने 'माफ़ किया, चिंता मत करो' बोलकर हफ़्तों तक मानसिक खेल खेला, जिससे मुझे समय बर्बाद हुआ और जीवन नरक बन गया।"

कुछ लोगों ने तंज़ भी कसे— "कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अच्छा परफॉर्म नहीं कर रहे थे?" तो जवाब आया, "अगर ईमानदारी से फीडबैक देते, तो मैं समझ जाता। लेकिन मुँह पर सब ठीक, और पीठ पीछे नौकरी छिनना— ये तो गलत है!"

अंत में – कर्म का न्याय और सीख

इस कहानी से जो सीख मिलती है, वह हर भारतीय कर्मचारी के दिल को छू जाएगी— ऑफिस में ईमानदारी और इंसानियत कभी न भूलें। छोटी-छोटी साजिशों और राजनीति से शायद कुछ समय के लिए जीत मिल जाए, लेकिन जब वक्त पलटता है, तो वही कर्म अपना हिसाब बराबर कर देता है।

तो, अगली बार जब ऑफिस में कोई 'सब ठीक है' कहकर पीठ पीछे चाल चले, तो याद रखिए— ज़िंदगी लंबी है, और कर्म का चक्र भी!

आपका क्या अनुभव रहा है ऑफिस की राजनीति या बदला लेने के मामलों में? अपने किस्से जरूर साझा करें— कौन जाने, अगली कहानी आपकी हो!


मूल रेडिट पोस्ट: Gaslight me at my job? Ok well I won't always work here...