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ऑफिस में 'केविन' टाइप लोगों से दो-चार होना – जब लोग आपको पारदर्शी समझ लें!

एक सिनेमा दृश्य जिसमें एक व्यक्ति ट्रैफिक को नियंत्रित कर रहा है, और कन्फ्यूज लोग उनके बीच से गुजरने की कोशिश कर रहे हैं।
इस सिनेमा चित्रण में दूसरों को मार्गदर्शन करने की चुनौतियाँ जीवंत होती हैं। देखें कैसे नायक लोगों के दैनिक अव्यवस्था को संभालता है, जिनमें ऐसे लोग भी हैं जैसे केविन, जो पूरी बात को समझने में चूक जाते हैं!

सोचिए, आप अपने ऑफिस या किसी बड़े मॉल में काम कर रहे हैं। आपकी जिम्मेदारी है लोगों को रास्ता दिखाना – बताना कि किस ओर जाना है, कहां मुड़ना है। इसके लिए आप बोलकर, इशारे से, और मुस्कुराकर सबकुछ समझा भी देते हैं। लेकिन अचानक कुछ लोग आपको ऐसा इग्नोर करते हैं जैसे आप कोई भूतिया छाया हों! सामने से आते-आते सीधे टकरा ही जाते हैं, मानो आप हवा में बने कोई होलोग्राम हों, जिसे पार किया जा सकता है।

'केविन' टाइप लोग – हर जगह मिलेंगे

हमारे देश में भी "केविन" जैसे लोग खूब मिल जाते हैं! Reddit पर एक मजेदार किस्सा पढ़ने को मिला – एक व्यक्ति की नौकरी है लोगों को रास्ता बताने की। वो न सिर्फ बोलकर बल्कि इशारे से भी बताता है, ताकि भाषा न समझने वाले या जिनकी नजर कमजोर हो, वे भी सही दिशा पकड़ सकें। लेकिन कुछ 'केविन' ऐसे कि सीधा उसी के ऊपर चढ़ जाते हैं!

अब सोचिए, ये तो वही बात हुई जैसे रेलवे स्टेशन पर रुकने के लिए लाल झंडी दिखा दी जाए, और फिर भी कोई ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल जाए – "झंडी दिखा दी, अब क्या हुआ!"

"भैया, हम तो पार निकलेंगे!" – जब लोग दीवार समझ लें इंसान को

इस पोस्ट के नीचे एक यूजर ने लिखा – "कभी लोगों की बेवकूफी को कम मत समझो, वे हर बार उम्मीद से ज्यादा नया कारनामा कर जाते हैं।"

सच है! हमारे देश में भी अगर आप मेट्रो स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर खड़े हो जाएं, तो कोई न कोई आपको धक्का दे ही जाएगा। जैसे, "भाई साहब, आप तो दिखाई ही नहीं दिए!"

एक और कमेंट था – "सड़क पर टहलते हुए लोग मुझसे टकरा जाते हैं और फिर खुद ही हैरान हो जाते हैं कि मैं पार क्यों नहीं हुआ।" ऐसी घटनाएं दिल्ली के बाजारों, मुंबई की लोकल ट्रेन या किसी भीड़-भाड़ वाले इलाके में रोज होती हैं।

एक सज्जन ने तो सलाह दी – "भालू से बचने वाले सूट पहन लो, जिसमें कांटे लगे होते हैं, ताकि कोई टकराए तो खुद ही दूर भागे!" सोचिए, अगर दिल्ली मेट्रो में सब ऐसे सूट पहन लें, तो क्या नजारा होगा!

'रास्ता बताने' का दर्द – समझे कौन?

एक कमेंट में किसी ने लिखा – "मैं कॉलेज के दिनों में सड़क निर्माण वाली टीम में था। मुझे 'रुकिए' और 'धीरे चलिए' का बोर्ड पकड़ा दिया गया। उस दिन मुझे मानवता पर से विश्वास उठ गया। लोग इतनी सीधी बात भी नहीं समझते!"

हमारे यहां भी ट्रैफिक पुलिस के सिपाही जब हाथ से 'रुकिए' इशारा करते हैं, तो कई लोग गाड़ी और तेज कर देते हैं, जैसे कोई गेम जीत रहे हों।

वहीं, एक और मजेदार टिप्पणी आई – "अगर लोग ट्रैफिक का लाल सिग्नल नहीं समझते, तो इंसान के बोलने या इशारा करने को क्या ही समझेंगे! हमारे यहां तो नेता जी भी कई बार भाषण में पढ़ने की जगह उल्टा-पुल्टा बोल जाते हैं।"

'केविन' क्यों होते हैं – क्या है इसका राज?

असल में, हर समाज में ऐसे लोग होते हैं जिनकी 'लापरवाही' और 'ध्यान न देना' एक अलग ही स्तर पर होती है। कुछ लोग इतने खोए रहते हैं कि सामने खड़ा इंसान भी उन्हें दीवार जैसा लगता है। या फिर, शायद वे सोचते हैं कि "ये तो हट ही जाएगा, मुझे क्या देखना!"

ऐसे लोग हर जगह मिलेंगे – ऑफिस में, मेट्रो में, शादी-ब्याह में, मंदिर के लाइन में, यहां तक कि स्कूल के हेडमास्टर के सामने भी!

कई बार ये घटनाएं हंसाने वाली होती हैं, तो कई बार चिढ़ भी दिला देती हैं। खुद पोस्ट लिखने वाले ने भी लिखा – "मुझे हैरानी है कि अभी तक ज्यादा चोट नहीं लगी, इतने केविन मिल चुके हैं!"

क्या करना चाहिए?

अब सवाल ये है कि ऐसे 'केविन' टाइप लोगों से कैसे निपटा जाए? एक तो धैर्य रखिए, और दूसरा, हो सके तो थोड़ा किनारे हो जाइए! कभी-कभी तो मामला इतना अजीब होता है कि आपको खुद अपनी मौजूदगी पर शक होने लगता है – "क्या मैं सच में यहां खड़ा हूं या कोई होलोग्राम हूं?"

कुछ लोग हंसी में कह देते हैं – "भैया, अगर कभी रास्ता बताना पड़े, तो ढोल लेकर खड़े हो जाइए, हो सकता है तब लोग देख लें!"

निष्कर्ष – आपकी कहानियां क्या हैं?

हर ऑफिस, हर गली-मोहल्ले में ऐसे 'केविन' जरूर मिलेंगे, जो आपकी मौजूदगी को नजरअंदाज करके सीधा टकरा जाते हैं। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? अगर हां, तो हमें जरूर बताएं – आपकी कहानी भी सुनने का बहुत मन है!

तो अगली बार जब कोई 'केविन' टाइप इंसान आपको भूत समझकर पार करने की कोशिश करे, तो मुस्कुरा दीजिए – दुनिया में ऐसे लोग ही तो जिंदगी में हंसी और मसाला भरते हैं!


मूल रेडिट पोस्ट: Kevin keeps trying to walk through me