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ऑफिस छोड़ते वक्त जब सेल्समैन ने छोड़ी अपनी पहचान – 700 विजिटिंग कार्डों की अनोखी विदाई

ऑफिस में अपने अंतिम दिन एक आदमी द्वारा सामान पैक करते हुए, उसकी बिक्री यात्रा पर विचार करते हुए।
ऑफिस में अपने अंतिम दिन का सूर्यास्त होते ही, मैं बिक्री में चार वर्षों की चुनौतियों और सफलताओं पर विचार करता हूँ। यह सिनेमाई क्षण उन यादों और पाठों से भरे अध्याय को विदाई देने का bittersweet अनुभव है।

कहते हैं, “जाते-जाते भी कुछ लोग अपनी छाप छोड़ जाते हैं।” ऑफिस के आखिरी दिन आमतौर पर लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं, पुराने दोस्तों के साथ फोटो खिंचवाते हैं या बस जल्दी-जल्दी फॉर्मेलिटी पूरी कर निकल लेते हैं। लेकिन सोचिए, अगर कोई कर्मचारी जाते-जाते ऐसी शरारत कर जाए कि बॉस और सहकर्मी सालों तक उसे याद करें, तो क्या होगा? आज की कहानी है एक ऐसे सेल्समैन की, जिसने अपने ‘पेटी रिवेंज’ से पूरे ऑफिस को हिला दिया!

"जाते-जाते छाप छोड़ जाऊँगा" – सेल्समैन की योजना

ये किस्सा Reddit की एक मशहूर पोस्ट से लिया गया है। 29 साल के एक सेल्समैन साहब, जिन्होंने चार साल एक छोटी सी कंपनी में जमकर खटमल काटी। जितनी मेहनत, उतनी ही कम होती सैलरी – ऑफिस के ‘रिस्ट्रक्चरिंग’ का शिकार। बॉस से भी खूब ठनी रहती थी, लेकिन जाने क्यों नौकरी से निकाला नहीं गया! आखिरकार, जब खुद ही इस्तीफा देने का मन बना लिया, तो आखिरी दिन और भी यादगार बन गया।

सुबह ऑफिस पहुँचे तो सभी क्लाइंट्स और अकाउंट्स उनसे छीन लिए गए। अब बस दोपहर 3 बजे तक बोरियत झेलनी थी, क्योंकि 'एग्जिट इंटरव्यू' बाकी था। डेस्क पहले ही साफ, काम कोई बचा नहीं। इतने में नज़र पड़ी – डेढ़ डिब्बा विजिटिंग कार्ड! करीब 700 कार्ड।

अब शुरू हुई असली मस्ती। ये जनाब हर कार्ड को ऐसे छुपाने लगे जैसे कोई बच्चों की ‘खो-खो’ या ‘चोर-सिपाही’ चल रही हो। बॉस की खिड़की के पर्दों के बीच 50 कार्ड, कुर्सियों के नीचे, लोगों के प्लास्टिक मैट्स के नीचे, टिशू रोल्स के अंदर, फर्स्ट एड किट, मीटिंग रूम के पर्दों में, warehouse के हर खुले डिब्बे में... कहने का मतलब, जहाँ भी जरा सी जगह दिखी, वहीं कार्ड की घुसपैठ!

ऑफिस की ‘खो-खो’ – सहकर्मियों की वर्षों की खोज

अब आप सोच रहे होंगे, क्या फायदा ऐसी शरारत का? Reddit पर एक कमेंट में किसी ने खूब लिखा, “भई, ये तो है कि इस कर्मचारी को अब कभी कोई भूल नहीं पाएगा!” सोचिए, जब भी कोई सहकर्मी नई फाइल निकाले, टिशू रोल बदले, या बॉस खिड़की का पर्दा हटाए – अचानक से एक विजिटिंग कार्ड झर-झर कर गिर पड़े! जैसे बरसात में मेंढकों की बाढ़, वैसे कार्डों की बौछार!

एक यूज़र ने मज़ाकिया अंदाज में कहा, “वाह, अब तो ऑफिस में सालों तक ‘कार्ड छुपा-छुपाई’ खेली जाएगी!” कोई बोला, “अब तो बॉस भी हर बार नया डिब्बा खोलते वक़्त दुआ करेंगे, कहीं फिर से वही नाम न निकल आए।”

यह भारतीय ऑफिसों में भी खूब relatable है। यहाँ भी लोग जाते-जाते कंप्यूटर में ‘फनी वॉलपेपर’ छोड़ जाते हैं, या ‘माउस’ के नीचे पेपर चिपका जाते हैं – ताकि अगला बंदा घंटों सिर खुजाता रहे कि माउस क्यों नहीं चल रहा! एक यूज़र ने तो यहाँ तक लिखा कि उनके ऑफिस में किसी ने अपनी पहचान छोड़ने के लिए हर जगह छोटे-छोटे देशी झंडे छुपा दिए थे, और सालों तक नए लोग ढूँढ़ते रहे।

‘पेटी रिवेंज’ का जादू – क्यों यादगार बन जाते हैं ऐसे पल?

इस किस्से की सबसे खास बात है – बदला भी ऐसा कि नुकसान नहीं, बस थोड़ी सी शरारती मुस्कान छोड़ दे। Reddit पर कई लोगों ने इसे ‘पेटी रिवेंज सोसाइटी’ की मेंबरशिप देने लायक बताया! कोई बोला, “भई, ये तो ऑफिस की आत्मा बन गए – सालों तक जब भी कोई कार्ड मिले, लोग इन्हें याद करेंगे।”

यहाँ तक कि एक ने मज़ेदार किस्सा सुनाया – उसके दोस्त ने बैचलर पार्टी में बचे कार्ड्स अपने दोस्त के घर में छुपा दिए थे। 15 साल बाद भी एक कार्ड नहीं मिला, और जब मिला तो उसकी दादी की रेसिपी बुक में! सोचिए, ऐसी शरारतों की मिठास कितनी देर तक कायम रहती है।

भारतीय संस्कारों में भी ‘मजाक में बदला’ या ‘शरारती विदाई’ खूब पुरानी परंपरा है। गाँव के मेलों में, या स्कूल-कॉलेज में, जब कोई दोस्त ग्रुप छोड़ता है तो बाकी लोग उसकी याद में कुछ ऐसा जरूर करते हैं कि नई पीढ़ी तक चर्चा चले! यही वजह है, ऐसे किस्से पढ़कर हर कोई मुस्कुरा उठता है।

सबक – अंतिम दिन को यादगार बनाना या शरारत करना?

इस कहानी से क्या सीखें? कई यूज़र्स ने लिखा, “काम छोड़ते वक्त ऐसा काम करो कि लोग याद करें, मगर किसी को असली नुकसान न हो।” किसी ने सलाह दी, “जॉब छोड़ने से पहले नई नौकरी पक्की कर लो, वरना पेटी रिवेंज भी काम नहीं आएगी!” खुद लेखक ने भी मज़ाकिया अंदाज में कहा, “भला, ऐसे बॉस से कौन रेफ्रेंस माँगेगा?”

तो अगली बार, जब आप ऑफिस छोड़ें – चाहे मिठाई बाँटें, चाहे ‘पनीर’ की पार्टी दें, या फिर विजिटिंग कार्ड छुपाएँ – बस इतना ध्यान रखें, आपकी यादें लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाएँ, सिरदर्द नहीं!

निष्कर्ष – आपकी विदाई कैसी थी?

तो पाठकों, आपकी सबसे मजेदार या अनोखी विदाई कौन सी रही? क्या आपने या किसी मित्र ने ऑफिस या स्कूल में जाते-जाते कोई अनोखी शरारत की है? नीचे कमेंट में जरूर बताएं – क्या पता, आपकी कहानी अगली पोस्ट की ‘हीरो’ बन जाए!

आप भी अगर कभी ऑफिस छोड़ें, तो ऐसी शरारती विदाई के बारे में सोच सकते हैं – आखिर, “जाते-जाते अपना नाम छोड़ जाना भी एक कला है!”


मूल रेडिट पोस्ट: Last Day In The Office.