ऑफिस की 'लोरी' और उसकी चालाकी पर हुई छोटी-सी लेकिन मजेदार बदला-कहानी
ऑफिस का माहौल कई बार घर जैसा हो जाता है – दोस्ती, गपशप, कभी-कभी थोड़ी राजनीति और अक्सर कुछ ऐसे लोग, जिनकी बातें सुनकर दिमाग घूम जाए! ऐसे ही एक ऑफिस की कहानी है, जिसमें एक चालाक सहकर्मी को उसकी ही चाल में उलझाकर बड़ी ही दिलचस्प सजा दी गई।
ऑफिस में ‘लोरी’ जैसी चालाक सहकर्मी से पाला पड़ा है कभी?
अब मान लीजिए कि आप अपने ऑफिस में नए-नए आए हैं, और आपके पास बैठती हैं लोरी जैसी कोई सहकर्मी – जिनकी आवाज़ पूरे फ्लोर पर गूंजती है, हर किसी के मामले में टांग अड़ाती हैं और दोस्ती के नाम पर हर किसी से काम निकालना जानती हैं। ऐसे लोग हमारे देश के दफ्तरों में भी खूब मिलते हैं – कभी कोई 'ऋतु जी' हर किसी से 'घर के लिए थोड़ा सब्जी का पैसा' मांग लेती हैं, तो कभी 'शर्मा अंकल' ऑफिस कैंटीन में 'आज पैसे भूल गया, कल दे दूँगा' कहकर चाय-कॉफी पी जाते हैं।
इस कहानी में लोरी भी कुछ वैसी ही थीं – सबके पैसों पर नज़र, और वापस करने का कोई इरादा नहीं। एक हफ्ते में ही कहानी की नायिका यानी पोस्ट की लेखक को समझ आ गया कि लोरी से बचना ही भला। लेकिन भला हो उनके मैनेजर का, जिन्होंने उनकी सीट बदलवा दी। पर लोरी कहाँ मानने वाली थीं! दिन में दो बार आकर गपशप जमाने जरूर आतीं।
चालबाजियों की दुकान – लोरी की स्कीमें और ऑफिस की सच्चाई
ऑफिस की एक महिला सहकर्मी ने नायिका को समय रहते आगाह कर दिया – “देखो, लोरी से कभी पैसे मत लेना-देना, बहुत बड़ी उधारबाज है। न खुद देती है, न लौटाती है।” यहाँ तक कि उसपर कोर्ट में भी केस चल चुका था! सोचिए, कितना बड़ा खेल चलता होगा – बॉक्स लंच बेचने की झूठी कहानियाँ, नए कर्मचारियों को फँसाना, और हर किसी के पैसे डकार जाना। हमारे दफ्तरों में भी ऐसे 'घाघ' लोग खूब होते हैं, जो 'बर्थडे पार्टी का शेयर', 'टीम लंच का हिस्सा', या 'ऑफिस फंड' के नाम पर पैसा इकट्ठा कर, फिर भूल जाते हैं।
एक पाठक ने बहुत ही मजेदार कमेंट किया – "आपने उसकी चाल को पहचान लिया, तो निपटना आसान था।" दूसरी पाठिका ने सलाह दी कि सहकर्मी को धन्यवाद जरूर कहना चाहिए, जिसने समय रहते चेताया।
लोरी की आखिरी चाल और नायिका की ‘छोटी मगर तगड़ी’ बदला कहानी
अब असली मज़ा आया, जब लोरी ने अपनी सबसे फेवरेट स्कीम चलाई – 'शॉपिंग में साझेदारी'। नायिका किसी शादी में पहनने के लिए ऑनलाइन ड्रेस देख रही थीं। लोरी ने मौके का फायदा उठाया – बोली, “अगर हम दोनों ड्रेस साथ में ऑर्डर करें तो डिलिवरी फ्री हो जाएगी। तुम दोनों के पैसे अभी दे दो, मेरी सैलरी आने ही वाली है, फिर लौटा दूँगी।”
यहाँ कोई भी शरीफ़ आदमी फँस सकता था, लेकिन नायिका ने दिमाग चलाया – ड्रेस ऑर्डर ही नहीं की! दो हफ्ते बाद बोलीं, "ड्रेस इस हफ्ते मेरे घर डिलिवर होगी, तुम्हारे पैसे चाहिए।" लोरी ने फिर अपने पुराने बहाने – “अभी तो जरूरी काम है, बाद में दूँगी, प्लीज पहले ड्रेस दे दो।” लेकिन नायिका ने पूरी फिल्मी स्टाइल में जवाब दिया, “मैंने तो दोनों ड्रेस वापस भेज दी, मॉल में सस्ती मिल गई।” लोरी की बोलती बंद!
एक पाठक ने तो कमेंट किया – "वाह, आपने उसे अच्छे से सबक सिखाया, ड्रेसिंग डाउन कर दी!" एक और ने चुटकी ली – "अब वो किसी और को स्कार्फ बेचने की कोशिश करेगी!"
ऑफिस की सीख – ऐसे लोगों से कैसे बचें?
हमारे समाज में भी ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो हमेशा दूसरों की मेहनत का फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। चाहे ऑफिस का माहौल हो या पड़ोस की किटी पार्टी, ‘आज दे दो, कल लौटा दूँगी’ कहने वाले खूब मिलेंगे। ऐसे में जरूरी है कि समय रहते उनकी असली मंशा पहचान लें।
कुछ पाठकों ने बड़े काम की बातें कहीं – "अगर कोई बार-बार पैसे मांगता है, तो उसे साफ मना करना सीखिए।" एक अनुभवी पाठक ने लिखा, “मैंने भी एक सहकर्मी को उसकी सैलरी के दिन ही सबका पैसा वसूला, फिर बॉस ने उसे निकाल दिया।”
लोरी जैसी चालबाजों से बचने का सबसे अच्छा तरीका है – सीधे-साफ बात करना, और जरूरत पड़े तो उनकी चालाकी को उन्हीं की भाषा में जवाब देना। जैसा कि कहानी की नायिका ने किया – न कोई बहस, न कोई लड़ाई, बस शांति से, दिमाग से स्कैम को नाकाम कर दिया।
निष्कर्ष: दफ्तर में दोस्ती भी जरूरी, पर समझदारी और सतर्कता सबसे ऊपर
दोस्तों, ऑफिस का माहौल अच्छा हो, तो काम में भी मजा आता है। लेकिन लोरी जैसे लोग अगर आसपास हों, तो सतर्क रहना जरूरी है। कहानी की नायिका ने जिस तरह समझदारी से लोरी की चालाकी को नाकाम किया, वह हम सबके लिए एक बढ़िया सीख है।
क्या आपके ऑफिस में भी कोई 'लोरी' है? या ऐसे किसी अनुभव से आप गुज़रे हैं? कमेंट में ज़रूर बताइए, आपके अनुभव और सुझाव बाकी पाठकों के लिए भी काफी मददगार साबित हो सकते हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: I’ll pay you Tuesday for a dress I want to wear today