ऑफिस की राजनीति में 'सीक्रेट फोल्डर' का खेल: जब जूनियर बना खुद की चाल का शिकार
ऑफिस की दुनिया भी अपने आप में एक अलग ही जंगल है, जहां हर कोई अपनी जगह बनाने के लिए तरह-तरह की चालें चलता है। कभी बॉस की मीठी-मीठी बातों से, तो कभी सहकर्मियों के साथ तालमेल बैठाकर। लेकिन जब कोई जूनियर अपने ही सीनियर को फँसाने की साजिश रचने लगे, तब क्या होता है? आज की कहानी कुछ ऐसी ही है, जिसमें ऑफिस का एक अनुभवी कर्मचारी अपने जूनियर की 'छुपी' चाल को उसी के अंदाज में मात देता है।
जब जूनियर की 'सीक्रेट फोल्डर' वाली साजिश खुली
आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी — "अपना खुद का गड्ढा खुद खोदना"। एक नामी कंपनी में पिछले 16 महीनों से एक जूनियर टेक्निकल स्टाफ था, जिसका शुरुआती बर्ताव बिलकुल दूध से धुला हुआ लगता था। ट्रेनी पीरियड में तो "जी सर, हां सर" की रट लगी रहती थी। probation period खत्म होते ही जनाब ने असली रूप दिखाना शुरू कर दिया — सीधे-सीधे तंज कसना, जरा-जरा सी बात पर गुस्सा दिखाना, और अपने ही सीनियर को उल्टा दोषी ठहराने की कोशिश।
मामला यहीं तक नहीं रुका। जनाब ने ऑफिस के शेयर ड्राइव में एक गुप्त फोल्डर बना दिया, जिसमें हमारे सीनियर की 'गलतियाँ' (मतलब सिर्फ वहीं ईमेल्स जो उनके पक्ष में थीं) इकट्ठा करनी शुरू कर दी। लेकिन ऑफिस का शेयर ड्राइव कोई गुप्त तिजोरी थोड़े है! वहाँ तो जिसे काम हो, वो कहीं भी झांक सकता है। हमारे सीनियर ने, जिनका काम ही उस जूनियर के काम की निगरानी करना है, बड़ी आसानी से उस 'सीक्रेट' फोल्डर का पता लगा लिया।
'प्याज के छिलकों' की तरह खुलती परतें: असली खेल शुरू
अब असली मज़ा तो तब आया, जब सीनियर ने भी वही दांव चला। उन्होंने उस फोल्डर में खुद के भेजे सारे ईमेल नहीं, बल्कि उस जूनियर के भेजे गए गुस्से वाले, अभद्र और असभ्य मेल्स को PDF बनाकर उसी फोल्डर में डाल दिया। साथ ही, जिन ईमेल चेन को जूनियर ने तोड़-मरोड़कर रखा था, उनकी पूरी असल चेन भी डाल दी। यानी अब वो फोल्डर किसी 'सीक्रेट हथियार' की बजाय एक आईना बन गया, जिसमें असलियत झलक रही थी।
अब जिसे भी वो फोल्डर दिखाना था, उसे पूरा सच नज़र आने लगा। "दूध का दूध, पानी का पानी" हो गया!
कम्युनिटी की चटपटी टिप्पणियाँ: सलाह, चेतावनी और मज़ाक
रेडिट की दुनिया में इस किस्से ने गजब की चर्चा बटोरी। एक यूज़र ने बिलकुल भारतीय अंदाज में चेतावनी दी — "भैया, वो कुछ बड़ा करने की तैयारी में है। अपनी सारी फाइलें प्राइवेट फोल्डर में रखो, ऑफिस से बाहर की कॉपी भी बनाओ। कभी ऑफिस में सस्पेंशन हो गया तो सबूत हाथ से न निकल जाए!" और ये बात भारतीय ऑफिसों में भी खूब लागू होती है — जहां 'अपना काम, अपनी फाइल' वाली सोच हमेशा फायदेमंद रहती है।
दूसरे ने सलाह दी, "अगर गलती से वो फोल्डर CEO के फोल्डर में पहुँच जाए तो? सोचो, जूनियर की हालत क्या होगी!" ऐसे मज़ाकिया कमेंट्स पढ़कर तो किसी का भी मूड हल्का हो जाए।
कुछ लोगों ने सलाह दी कि HR (Human Resource department) को पहले ही सबूत के साथ संपर्क किया जाए — क्योंकि अगर जूनियर पहले पहुँच गया तो सीनियर फँस सकते हैं। भारत में भी अक्सर ऐसे केस देखने को मिलते हैं, जहाँ HR के पास पहले पहुँचने वाला ही जीत जाता है।
एक और दिलचस्प कमेंट आया — "अगर ऑफिस का शेयर ड्राइव है, तो वहाँ किस-किस को एक्सेस है ये भी देख लो। कई बार लोग सोचते हैं कि उनकी फाइलें छुपी हैं, लेकिन असल में पूरी ऑफिस में दिख रही होती हैं!"
ऑफिस की राजनीति: सीख और सावधानी
इस कहानी से एक गहरा सबक मिलता है — ऑफिस में चाहे जितना भी गुप्त खेल खेलो, डिजिटल दुनिया में हर चीज़ का रिकॉर्ड रहता है। और जब मामला निकला 'सीक्रेट फोल्डर' का, तो असली 'रिवेंज' उसी शांति और समझदारी से मिला, जैसे पुराने जमाने में कोई बुजुर्ग रिश्तेदार परिवार के जलते मुद्दों को ठंडे दिमाग से सुलझा देते थे।
भारत के ऑफिसों में भी, जहाँ कभी-कभी 'चाय वाला ग्रुप' और 'बॉस का चमचा' जैसी राजनीति चलती है, वहाँ ऐसी चालाकी और सतर्कता बहुत जरूरी है। अपना सबूत हमेशा संभाल कर रखो — और जरूरत पड़े तो सही समय पर सही कदम उठाओ। आखिरकार, "सावधानी हटी, दुर्घटना घटी" का मूलमंत्र ऑफिस की राजनीति में भी उतना ही सही बैठता है।
निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?
तो दोस्तों, इस ऑफिस के 'सीक्रेट फोल्डर' वाले किस्से ने तो बता दिया कि चालाकी में भी अक्ल जरूरी है। आप क्या करते अगर आपके ऑफिस में ऐसी कोई राजनीति चल रही हो? क्या आपने भी कभी किसी को उसी की चाल में फँसाया है? अपने अनुभव और राय कमेंट में जरूर साझा करें। और हाँ, अगली बार ऑफिस के शेयर ड्राइव में फोल्डर छुपाते समय दो बार जरूर सोचिएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Adding emails to the 'secret' share folder