ऑफिस की राजनीति: जब 'टीम लीड' अकेले रह गया
कार्यालयों की राजनीति के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे, लेकिन आज की कहानी में मज़ा और सीख दोनों है। सोचिए, आपकी टीम में कोई नया-नवेला, अनुभवहीन और चापलूस व्यक्ति अचानक बॉस बन जाए, वो भी नियमों को ताक पर रखकर! अब ऐसे में टीम का माहौल क्या होगा – थोड़ा सोचिए, थोड़ा मुस्कुराइए।
जब चमचागिरी ने दिलाई प्रमोशन, पर नहीं मिला सम्मान
हमारे नायक (या यूं कहिए, असली हीरो) एक ऐसी कंपनी में काम करते थे जहां नियम-कायदे सब दिखावे के थे और असली खेल चलता था चमचागिरी का। एक अज्ञानी, अनुभवहीन व्यक्ति जो अभी साल भर भी कंपनी में नहीं था, उसे नियमों की अनदेखी कर टीम लीड बना दिया गया। बाकी सब योग्य, अनुभवी लोग बस देखते रह गए, और HR ने तो जैसे शिकायतों पर मिट्टी डाल दी।
अब ये जनाब पहले भी ज्यादा पसंद नहीं किए जाते थे, लेकिन प्रमोशन के बाद तो पूरी टीम की आँखों का कांटा बन गए। सिवाय दो-चार खास चमचों के, जिन्हें "कुछ भी करके बॉस की नज़रों में रहना है" का मंत्र जपना आता था। वैसे, हमारे समाज में भी तो ऐसे कई 'सरकारी दफ्तरों' के किस्से हैं – जहां काम से ज्यादा बॉस के आगे-पीछे रहने वालों की चलती है।
'मज़बूरी' में बुलाई गई पार्टी, लेकिन चालाकी ने पलट दिया खेल
टीम लीड को जब अहसास हुआ कि पूरी टीम उनसे चिढ़ती है, तो उन्होंने नया तरीका निकाला – हर महीने 'हैप्पी आवर' यानी ऑफ़िस के बाद की पार्टी, जो "ऐच्छिक" थी, पर असल में सबको मजबूरी में आना पड़ता। कई लोग तो घंटों का सफर तय कर, बच्चों के लिए सिट्टर ढूंढकर बस इसलिए आ रहे थे कि कहीं नौकरी पर आंच न आ जाए।
पर हमारे हीरो ने दिमाग लगाया – "मुझे तो नियम पता हैं, जब तक ऑफिस टाइम में बुलाओगे, आ जाऊँगा, वरना फालतू में अपनी शाम खराब नहीं करूँगा!"
टीम लीड ने मनाने की कोशिश की, दबाव भी डाला, लेकिन हीरो टस से मस नहीं हुए। अगली सुबह, टीम लीड ने सबके सामने हीरो को 'एंटी-सोशल' कहकर ताना मारा – "प्रबंधन देखता है कि कौन टीम प्लेयर है, जरूरी इवेंट मिस मत किया करो।"
जवाब आया, लेकिन बड़े ही शालीन अंदाज में – पूरे टीम को एक प्यारा सा मेल: "दोस्तों, हमारे राज्य के नियम कहते हैं कि अगर हम जैसे घंटे के हिसाब से वेतन पाने वाले कर्मचारियों से कोई ऑफिस के बाद पार्टी अटेंड करवाना चाहे तो उसकी तनख्वाह देनी होगी। तो अगर आप नहीं आ सकते, चिंता मत कीजिए।"
बस, फिर क्या था! अगले दो हैप्पी आवर में टीम लीड अकेले बार में बैठे रह गए। लोग अब अपनी शाम अपने परिवार, दोस्तों या खुद के लिए बिताने लगे।
कमेंट्स की महफिल: जनता जनार्दन का ज्ञान
Reddit पर लोगों ने इस किस्से को खूब सराहा। एक ने तो मज़े में लिखा, "म्याऊ! बॉस ने खुद ही तुम्हें कुल्हाड़ी थमा दी थी," तो दूसरे ने चुटकी ली, "किसी को पसंद करवाने का सबसे आसान तरीका है, खुद अच्छा बन जाओ – बॉस बनने से नहीं, इंसान बनने से लोग साथ आते हैं।"
दूसरे ने अपने अनुभव साझा किए – "मैं जब मैनेजर था, कभी ऑफ़-टाइम पार्टी नहीं रखी। सबका वक्त कीमती है, अपनी मर्जी से आएं तो ही असली खुशी है।" एक और टिप आई – "अगर पार्टी करनी ही है, तो ऑफिस टाइम में, सबको वेतन देकर, और बिना दबाव के।"
किसी ने व्यंग्य किया, "क्या बॉस खुद ड्रिंक के पैसे दे रहा था? अगर नहीं, तो और भी गलत!" तो एक सज्जन ने कहा, "अगर कंपनी बाहर पार्टी को जरूरी बनाए और कोई हादसा हो जाए, तो कंपनी की जवाबदेही बनती है – HR को यह सब पसंद नहीं आएगा।"
कई ने इस बात की तारीफ की कि हीरो ने अपने अधिकारों को जाना और बाकी टीम को भी जागरूक किया। एक टिप्पणीकार ने लिखा, "आपने न सिर्फ खुद पर दबाव नहीं बनने दिया, बल्कि पूरी टीम को इस बेमतलब के दबाव से बचा लिया – ऐसे ही लोग असली हीरो होते हैं।"
भारतीय संदर्भ: 'ऑफिस के बाहर भी बॉस?'
हमारे देश में भी ऐसे किस्से आम हैं – कभी बॉस शादी में बुला ले, कभी छुट्टी के दिन 'फैमिली गेट-टुगेदर' जरूरी बना दे, और कभी वॉट्सऐप ग्रुप में रात 10 बजे तक एक्टिव रहने का अलिखित नियम थमा दे! कई बार लोग डर के मारे हां में हां मिलाते हैं, लेकिन कभी-कभी कोई साहसी व्यक्ति नियम-कायदों का सहारा लेता है और बाकी सबको राहत दिला देता है।
ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि अधिकारों की जानकारी और थोड़ा सा आत्मविश्वास पूरे माहौल को बदल सकता है। और हाँ, 'मजबूरी में मस्ती' का कोई मतलब नहीं – असली खुशी तो वहीं है, जहां दिल से लोग जुड़ते हैं, न कि बॉस के दबाव में।
निष्कर्ष: आपका वक्त, आपकी मर्जी
तो अगली बार अगर आपसे कोई 'जरूरी' पार्टी, मीटिंग या इवेंट ऑफिस टाइम के बाहर करवाने की जिद करे, तो अपने अधिकार जानिए, और डटकर कहिए – "बॉस, ये मेरा वक्त है!"
क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे वाकये हुए हैं? अपनी राय और अनुभव नीचे कॉमेंट में जरूर बताइए। किस्सा पसंद आए तो शेयर करना न भूलें – हो सकता है, किसी और की शाम भी बच जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Dressed down so I stood up