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ऑफिस की राजनीति का बदला: जब बदतमीज़ सहकर्मी को मिला उसका जवाब

एक निराश कर्मचारी, जो एक पूर्व सहकर्मी से मदद को ठुकरा रहा है, का कार्टून-3D चित्रण।
इस रंगीन कार्टून-3D दृश्य में, हमारे नायक एक कठिन स्थिति का सामना कर रहे हैं: एक पूर्व सहकर्मी की मदद करना, जो विषाक्त व्यवहार के लिए जाना जाता है। क्या वे अपने निर्णय पर अडिग रहेंगे? इस क्षण की कहानी जानने के लिए ब्लॉग पढ़ें!

ऑफिस की दुनिया भी किसी टीवी सीरियल से कम नहीं होती। यहां हर रोज़ नए किरदार, नई चालें और कभी-कभी ऐसे ट्विस्ट आते हैं कि लोगों की असली पहचान सामने आ जाती है। आज मैं आपको ऐसी ही एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसमें एक बदतमीज़ सहकर्मी को अपनी करनी का फल आखिरकार मिल ही गया।

अब आप सोच रहे होंगे – अरे भैया, बदला-वदला लेना तो फिल्मों में ही अच्छा लगता है, असल ज़िंदगी में क्या ये वाकई होता है? तो जनाब, ये किस्सा पढ़कर आप कहेंगे – “सही किया!”

जब सहकर्मी बना सिरदर्द – पहली नौकरी की यादें

हर किसी की पहली या दूसरी नौकरी में कोई न कोई ऐसा मिल ही जाता है, जो बिना वजह आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है। हमारे कहानी के नायक (चलो, इन्हें ‘राज’ कह लेते हैं) की भी किस्मत कुछ ऐसी ही थी।

राज एक बड़े नामी-गिरामी संस्थान में काम करते थे। वहां उनका एक सहकर्मी था, जिसे हम ‘शर्मा जी’ कह लेते हैं। शर्मा जी वो किस्म के इंसान थे, जो रात के दो बजे ईमेल भेजने का शौक रखते थे – ताकि बॉस को लगे कि ये आदमी कितनी मेहनत करता है! सच्चाई ये थी कि साहब दिन में मटरगश्ती और रात में शेख़ी बघारना ही जानते थे। टीम में किसी की मदद तो दूर, खुद का काम भी धक्का देकर करवाते थे।

राज के लिए तो हर दिन आफ़त था। शर्मा जी की वजह से ऑफिस का माहौल भी बिगड़ जाता था। लेकिन राज ने कभी पलटकर कुछ कहा नहीं, मन ही मन सोचा – “आज नहीं तो कल समय ज़रूर बदलता है।”

किस्मत का पहिया घूमा – लिंक्डइन पर आई सेंध

कुछ सालों बाद, राज की ज़िंदगी आगे बढ़ गई। नई कंपनी, अच्छे लोग, और पुरानी परेशानियाँ छू-मंतर। तभी एक दिन राज को वर्कडे (ऑफिस का HR पोर्टल) से नोटिफिकेशन आता है – “क्या आप शर्मा जी को इस जॉब के लिए रेफर करना चाहेंगे?”

राज हैरान! शर्मा जी ने बिना पूछे, बिना इजाज़त, राज का नाम रेफरेंस में डाल दिया! वो भी ऐसे जॉब के लिए, जिसके लिए शर्मा जी मुश्किल से ही काबिल थे।

यहाँ कई पाठक सोचेंगे – “अरे, किसी को रेफरेंस में डालने से पहले पूछना तो चाहिए ना?” एक कमेंट में किसी ने खूब लिखा – “भई, ये तो बुनियादी तमीज़ है! बिना पूछे किसी का नाम डालना, मतलब सामने वाले की इज़्ज़त की कोई कदर ही नहीं।” सच भी है, हमारे यहाँ तो मोहल्ले में भी अगर किसी का नाम उधार लेने के लिए देना हो, पहले दस बार पूछ लेते हैं!

बदले की ‘माइक्रोवेव’ रेसिपी – समाज की सीख

राज के सामने सवाल था – क्या वो शर्मा जी को हां कहें? क्या ऐसे इंसान को अपनी नई टीम पर थोप दें, जिसने उनकी ज़िंदगी पहले ही मुश्किल कर दी थी?

राज ने बिना झिझक “ना” का बटन दबा दिया और आगे बढ़ गए। इसे पढ़कर कुछ लोग सोच सकते हैं – “ये तो छोटी सोच है, पेट्टी रिवेंज!” लेकिन Reddit कम्युनिटी का क्या कहना था? एक ने लिखा, “ये बदला नहीं, ईमानदारी है।” दूसरे ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “बदला ठंडा परोसा जाता है, लेकिन ऑफिस के माइक्रोवेव में फिर से गरम भी किया जा सकता है!”

किसी ने बढ़िया सलाह दी – “अगर रेफरेंस देना ही है, तो ये पूछ लो – क्या आप मेरे बारे में अच्छा बोल सकते हैं? नहीं तो किसी और को ढूंढो।” ये बात हमारे देश में भी लागू होती है – शादी-ब्याह हो या जॉब रेफरेंस, नाम देने से पहले इज़ाज़त ज़रूरी है।

रिश्तों की राजनीति – ऑफिस हो या समाज

इस किस्से की असली सीख है – रिश्तों को संभालकर रखना। ऑफिस की दुनिया बहुत छोटी होती है। जिसे आज आप तंग कर रहे हैं, कल वही आपके रास्ते में खड़ा मिल सकता है। एक कमेंट में किसी ने लिखा, “कभी किसी का दिल मत दुखाओ, ज़रूरत कब पड़ जाए पता नहीं।”

हमारे यहाँ तो कहते हैं – “जैसी करनी, वैसी भरनी।” शर्मा जी ने कभी टीम की नहीं सोची, दूसरों को नीचा दिखाया, तो जब ज़रूरत पड़ी, किसी ने उनकी मदद नहीं की। ये कहानी सिर्फ ऑफिस की नहीं, हमारे समाज के हर रिश्ते में लागू होती है।

निष्कर्ष: क्या आप ऐसे किसी ‘शर्मा जी’ को जानते हैं?

तो दोस्तों, अगली बार जब ऑफिस में किसी नए या जूनियर को तंग करने का मन करे, एक बार सोच लीजिए – कल को वही आपके लिए बड़ा काम कर सकता है। और अगर कभी कोई बिना पूछे आपका नाम रेफरेंस में डाल दे, तो शर्माइए मत – सच बोलिए, क्योंकि टीम और कंपनी का माहौल सबसे ज़रूरी है।

क्या आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें। और हाँ, “कभी किसी का दिल न दुखाइए, क्या पता कब ज़रूरत पड़ जाए!”


मूल रेडिट पोस्ट: Asshole former coworker now needs my help… nope.