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ऑफिस के जीएम ने मेरे महंगे कोट का सत्यानाश कर डाला! अब क्या करूँ?

धोबीघर की फर्श पर बिछा कोट, खराब कपड़े की निराशा को दर्शाता है।
इस दृश्य में, एक समय में बेदाग कोट अस्त-व्यस्त पड़ा है, जो दैनिक जीवन में होने वाली अनपेक्षित घटनाओं का प्रतीक है। यह पल हमें हमारी वस्तुओं के प्रति लगाव और एक लापरवाह गलती के भावनात्मक पहलुओं की याद दिलाता है।

“कपड़े तो नसीब से मिलते हैं, वरना यहाँ तो लोग इज़्ज़त भी उधार की पहनते हैं!” यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। पर कभी सोचा है, अगर आपकी सबसे प्यारी चीज़, वो भी ऑफिस में, किसी और की लापरवाही से बर्बाद हो जाए तो दिल पर क्या बीतेगी? आज की कहानी एक ऐसे ही महंगे और प्यारे विंटर कोट की है, जिसे ऑफिस के जनरल मैनेजर यानी जीएम ने एक ही झटके में तबाह कर डाला!

जब कोट की किस्मत में बर्बादी लिखी थी

यह कहानी है एक छोटे से टाउन की, जहाँ सिर्फ़ छह लोगों की टीम मिलकर एक होटल चलाती है। हमारी नायिका, 42 वर्षीया असिस्टेंट, हमेशा अपना पर्स और कोट होटल की लॉन्ड्री में रखती थीं—बिल्कुल वैसे, जैसे भारतीय ऑफिसों में लोग अपना टिफिन और छाता किसी कोने में रखते हैं। एक दिन, जीएम साहब (27 वर्ष के युवा और बड़े अफसर) अचानक उन पर हाथ रखते हैं और डरते-डरते कहते हैं, “प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत होना…”

अब भला, ऑफिस में बॉस अगर कुछ ऐसी बात बोले तो किसी के भी कान खड़े हो जाएँ! उन्होंने देखा कि जीएम साब ने सफाई के नाम पर ब्लीच (वो भी तरल वाला) कपड़ों पर ऐसे फेंका, जैसे गाँव में लोग गेंहू बीनते समय भूसी उड़ाते हैं। नतीजा? 250 डॉलर का महंगा कोट (जिसकी कीमत भारतीय हिसाब से 20 हजार रुपये से भी ज़्यादा!) ब्लीच से पूरी तरह बर्बाद!

समझदारी या बेवकूफी? कर्मचारी की विनम्रता पर सवाल

अब यहाँ मजेदार बात ये रही कि नायिका ने गुस्सा नहीं किया, न कोई हंगामा। बस शांति से बोलीं, “मुझे पता है गलती से हुआ है, पर मुझे भरोसा है कि आप नया कोट दिलवाएँगे।” जीएम साहब ने भी बड़ी इज्ज़त से वादा किया।

लेकिन वादा निभाना तो दूर, कुछ दिनों बाद वो अपने घर से दो सस्ते पुलओवर ले आए—कुछ वैसे ही जैसे भारतीय मेले में तीन सौ रुपए में दो स्वेटर मिलते हैं और पहनने में शर्म भी आती है। हमारी नायिका ने हँसते हुए साफ़ मना कर दिया, और कोट की असली कीमत और क्वालिटी का हवाला दे डाला।

कम्युनिटी की राय: “बॉस का फर्ज़ बनता है!”

रेडिट के कमेंट्स में तो जैसे भंडाफोड़ हो गया। एक यूज़र ने लिखा, “अगर मालिक से शिकायत करो और कोट मिल जाए, तो फिर इस्तीफा दे दो!”—यहाँ की भाषा में, “मुँह दिखाई के बाद विदाई!”

दूसरे ने कहा, “किसी कर्मचारी का नुकसान ऑफिस की गलती से हो, तो ये खर्च कंपनी को उठाना चाहिए।” एक और ने तो सलाह दी—हर किसी को बताओ कि जीएम ने कोट कैसे खराब किया, ताकि उसकी इज्ज़त का झाग उड़ जाए।

कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया, “अगर जीएम तुम्हारी जगह अपनी गर्लफ्रेंड (जो हाउसकीपर भी है) के लिए पैसे उड़ा सकता है, तो तुम्हारे कोट के लिए क्यों नहीं?”

एक ने कटाक्ष में सलाह दी, “वो कोट पहनकर सबको बताओ, ‘ये डिजाइनर है, मिलान से मँगवाया है!’ और शान से घूमो।”

भारतीय कामकाजी संस्कृति में सीख

हमारे यहाँ भी ऑफिसों में कई बार ऐसी घटनाएँ होती हैं—कभी किसी की बाइक को कोई अफसर ठोक जाता है, कभी किसी की कुर्सी पर कोई बैठ जाता है और तोड़ देता है। लेकिन ज्यादातर लोग “चलो छोड़ो, नौकरी बची रहे” वाले भाव में रह जाते हैं।

पर क्या ये सही है? क्या बॉस की लापरवाही आपकी मेहनत की कमाई पर भारी पड़नी चाहिए? कमेंट्स में कई लोगों ने लिखा—“ऐसे मामलों में चुप मत बैठो, मालिक या बड़े अफसर से सीधा बात करो, वरना आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा।”

कोई बोले, “अगर खुद के पैसे से गिफ्ट खरीदने भेजे, तो वहीं से कोट भी खरीद लो!” यानी ‘जैसे को तैसा’ का असली उदाहरण।

क्या करें जब नौकरी छोड़ना मुमकिन न हो?

छोटे शहरों में, जहाँ जॉब्स की किल्लत है, वहाँ नौकरी छोड़ना आसान नहीं। हमारी नायिका ने भी Indeed जैसी जॉब साइट्स पर एक साल से ढूंढा, पर कुछ मिला नहीं। ऐसे में “काम के साथ इज्ज़त” का सवाल और भी बड़ा हो जाता है।

कई लोगों ने सलाह दी—“कम से कम जीएम को बार-बार याद दिलाओ, लिंक भेजो, और जब कीमत बढ़ गई हो तो मासूम बनकर पूछो—‘क्या सच में अब इतनी महँगी हो गई?’” किसी ने तो यहाँ तक कहा, “अगली बार उनके किसी खर्चे से अपने लिए पैसे काट लो!”

निष्कर्ष: आपकी इज्ज़त, आपकी जिम्मेदारी

आखिर में, यह कहानी हमें सिखाती है कि ऑफिस में अपनी मेहनत और इज्ज़त दोनों की रक्षा करना जरूरी है। चाहे बॉस कितना भी बड़ा हो, अगर आपके साथ गलत हो रहा है, तो आवाज़ उठाना ज़रूरी है। और अगर कोट की जगह आपकी मेहनत, या खुद्दारी दांव पर लग जाए—तो बस “मिलान का डिजाइनर” बनकर मत रहिए, बल्कि अपने हक के लिए खड़े होइए!

तो दोस्तों, अगर आपके साथ भी ऐसी कोई घटना हुई है, तो कमेंट में जरूर बताएँ—क्या आप ऐसे बॉस को माफ कर देंगे, या अपने हक के लिए लड़ेंगे?

आखिर में याद रखिए—“कपड़े तो फिर भी मिल जाते हैं, पर इज्ज़त एक बार गई तो वापस नहीं आती!”


मूल रेडिट पोस्ट: GM ruined my coat :(