ऑफिस की छोटी बदला: जब सहकर्मी को ऑनलाइन ट्रोल करना बना दिल बहलाने का तरीका
ऑफिस का माहौल कभी-कभी स्कूल जैसा हो जाता है – दोस्ती, मज़ाक, और कभी-कभी छोटी-छोटी तकरारें। ऐसे ही एक कहानी है एक कर्मचारी की, जिसे उसके साथी ने कभी-कभी बेवजह परेशान किया। लेकिन उसने सीधे बदला लेने की बजाय, ऐसा तरीका निकाला कि सबकी हँसी छूट जाए। चलिए, जानते हैं कैसे एक साधारण-सी ट्रोलिंग ने ऑफिस की खटपट को हल्का-फुल्का बना दिया।
जब ऑफिस की चाय में पड़ गई कड़वाहट
हर ऑफिस में एक न एक ऐसा इंसान ज़रूर होता है जो कभी-कभी अपनी जुबान या हरकतों से दूसरों का मूड खराब कर देता है। हमारे कहानी के नायक का भी एक ऐसा ही दोस्त था – जो आमतौर पर अच्छा, मददगार और मज़ेदार था, लेकिन कभी-कभी उसकी जुबान तीर से भी तेज़ चलती थी। एक दिन उसने ऑफिस की किचन में हमारे नायक की विकलांगता का मज़ाक बना डाला। सोचिए, दिल कितना दुखा होगा!
लेकिन सीधा-सीधा टक्कर लेना, खासकर जब सामने वाला सीनियर हो, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता। यही वजह थी कि हमारे नायक ने गुस्से को न निगल पाए, न उगल पाए। फिर उसने निकाला देसी जुगाड़ – ट्रोलिंग का!
ऑनलाइन ट्रोलिंग का देसी तड़का
अब कहानी में आता है असली ट्विस्ट। सहकर्मी, बच्चों की एक मशहूर किताब का दीवाना था और Reddit नाम की वेबसाइट पर उस पर जमकर चर्चा करता था। एक दिन, हमारे नायक को पता चला कि वह किस नाम से Reddit पर सक्रिय है।
बस, फिर क्या था! जब भी ऑफिस में उसका मूड खराब होता या सहकर्मी की कोई बेवकूफी याद आती, वह छुप-छुपकर उसके पोस्ट ढूंढता और अपने गुप्त अकाउंट से ऐसी-ऐसी बातें लिखता जो जानबूझकर गलत होतीं – जैसे "स्टार ट्रेक" के फैंस के बीच "स्टॉर्मट्रूपर्स को क्यों नहीं बुला लिया?" पूछना! सहकर्मी उस टॉपिक का इतना दीवाना था कि बहस शुरू हो जाती और घंटों चलती।
यह बदले की आग इतनी हल्की-फुल्की थी कि सामने वाले को असली नुकसान न हो, पर दिल में ठंडक मिल जाए। और मज़े की बात – सहकर्मी अगले दिन ऑफिस में आकर शिकायत करता, "यार, कल Reddit पर एक बड़ा गधा मिला, उसे तो कुछ समझ ही नहीं!" और हमारे नायक को हँसी रोकना मुश्किल हो जाता।
कम्युनिटी की राय: बदला या मस्ती?
Reddit के पाठकों ने भी इस कहानी पर जमकर मज़ेदार कमेंट्स किए। एक यूज़र ने लिखा, "ट्रोलिंग का असली मतलब यही है – बधाई हो!" एक और ने तो यहां तक कह दिया, "यह तरीका सेहतमंद है, कम से कम आप सजा देने के बजाय थोड़ा हँस लेते हैं।"
किसी ने सलाह दी, "किसी दिन उसके ट्रोल कमेंट्स का एलबम बनाना और ऑफिस छोड़ते वक्त दिखा देना, मज़ा आ जाएगा!" वहीं, कई लोग इस बात पर अड़े रहे कि "जो आदमी किसी की विकलांगता का मज़ाक उड़ाए, उसे दोस्त कहना ही गलत है।"
कुछ पाठकों ने यह भी समझाया कि इंसान में अच्छाई-बुराई दोनों होती है – कभी दोस्त, कभी खलनायक। एक कमेंट में तो किसी ने यहां तक लिख दिया, "हर इंसान का ऐसा दोहरापन होता है – यही तो इंसानियत है!"
ऑफिस कल्चर और 'पेटी रिवेंज' का देसी रंग
हमारे समाज में भी "पेटी रिवेंज" यानी छोटी-मोटी बदला लेने की कहानियाँ खूब मिलती हैं – कभी किचन में चीनी छुपा देना, तो कभी किसी के कप में नमक डाल देना। लेकिन इस कहानी का तरीका थोड़ा हाई-टेक था, पर भावना वही – अपना गुस्सा बिना सामने वाले को सीधे बताए निकाल लेना।
ऐसी ट्रोलिंग में न तो किसी की नौकरी गई, न ही कोई बड़ी लड़ाई हुई। उल्टा, काम का तनाव भी हल्का हुआ और दोनों की दोस्ती में नई मिठास आ गई। आखिरकार, जोक्स का मज़ा तभी है जब दिल में कोई ज़हर न हो।
निष्कर्ष: क्या सही, क्या गलत?
कहानी से यह सीख मिलती है कि ऑफिस या जिंदगी में जब गुस्सा या दुख दबा रहे, तो सीधा टकराव हमेशा हल नहीं होता। कभी-कभी हल्की-फुल्की मस्ती या ट्रोलिंग भी सुकून दे जाती है – बशर्ते हदें न पार हों।
तो अगली बार जब आपका बॉस या सहकर्मी कुछ उल्टा-सीधा बोल दे, तो ज़रा सोचिए – क्या आपको भी कोई ऐसा 'जुगाड़' सूझता है? कमेंट में बताइए, आपकी सबसे मज़ेदार 'पेटी रिवेंज' क्या रही?
आखिर में, जैसा एक पाठक ने लिखा – "कभी-कभी दूसरों के दिमाग में मुफ्त में घर बना लेना भी एक जीत होती है!"
आपको ये कहानी कैसी लगी? अपने ऑफिस के किस्से और ट्रोलिंग के अनुभव हमारे साथ ज़रूर बाँटिए।
मूल रेडिट पोस्ट: I ragebait a colleague in reddit comments when he treats me badly