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ऑफिस की आईटी सपोर्ट: जब सब कुछ करेंगे, बस टिकट नहीं डालेंगे!

समर्थन अनुरोधों से बचते हुए व्यक्ति का कार्टून 3D चित्र, टिकट सबमिशन विकल्पों को दर्शाता है।
यह जीवंत कार्टून-3D चित्र उस हास्य को दर्शाता है, जिसमें दिखाया गया है कि कुछ लोग आसानी से उपलब्ध विकल्पों के बावजूद समर्थन अनुरोध जमा करने से कैसे बचते हैं। यह मजेदार ढंग से आत्म-सेवा पोर्टल और टिकट प्रणाली का महत्व बताता है, भले ही ध्यान भंग होता हो!

ऑफिस में आईटी सपोर्ट वाले भाइयों-बहनों की ज़िंदगी कुछ अलग ही होती है। एक तरफ़ तो लोग कहते हैं – "भैया, कुछ भी हो जाए, बस सिस्टम न बंद हो", दूसरी तरफ़ जब कोई दिक्कत आती है, तो टिकट डालना उनके लिए जैसे कोई पहाड़ चढ़ना हो! अरे भैया, ऑफिस के काम में अगर चाय-कॉफी के लिए लाइन में लग सकते हैं, तो एक छोटा सा सपोर्ट टिकट डालने में क्या आफ़त है?

टिकट सिस्टम: आईटी वालों की रामबाण औषधि

हमारे देश में तो हर चीज़ का जुगाड़ है, लेकिन आईटी सपोर्ट का असली जुगाड़ है – टिकट सिस्टम। सोचिए, अगर हर बार कोई आईटी भाई सिर्फ फोन या मैसेज पर ही सबका काम करता रहे तो उसका तो राम नाम सत्य हो जाएगा! टिकट सिस्टम है तो हर काम की हिस्ट्री रहेगी, सबके काम का हिसाब रहेगा और मैनेजमेंट को भी समझ आ जाएगा कि किसको कितनी मेहनत लग रही है।

एक Reddit उपयोगकर्ता ने बड़ा ही बढ़िया लिखा – "भैया, बिना टिकट के कुछ भी करो, काम नहीं होगा।" जैसे हमारे देश में कहावत है – "लिखा-पढ़ी न हो तो कल को कौन मानेगा?" वैसे ही आईटी में – "टिकट नहीं तो काम नहीं।"

देसी दिमाग़: टिकट डालने से बचने के जुगाड़

हमारे यहां ऑफिस में लोग बड़े तेज़ होते हैं। कोई Teams पर सीधा मैसेज डालेगा – "भैया, सिस्टम स्लो है, जल्दी देखो!" कोई सीधे फोन घुमा देगा – "अरे, मेरी प्रेजेंटेशन अटक गई, अभी हेल्प चाहिए।" और जब आईटी वाला बोले – "टिकट डाल दीजिए", तो जवाब आता है – "अरे, पहले ऐसे थोड़ी होता था!"

एक कमेंट पढ़ कर तो हंसी आ गई – "कुछ लोग पांच गुना ज़्यादा मेहनत करते हैं, बस टिकट डालने की मेहनत ना करनी पड़े।" एक और भाई बोले – "फोन तब तक नहीं उठाता जब तक कोई VIP न हो!" अपने यहां भी तो यही हाल है – बॉस या मैनेजर फोन करें तो सब लाइन में लग जाते हैं, बाकियों के लिए – "टिकट डालिए जी!"

"टिकट नहीं तो काम नहीं": ऑफिस की राजनीति

कई बार ऑफिस में कुछ लोग सोचते हैं कि वो बड़े खास हैं, उन्हें तो टिकट डालने की ज़रूरत ही नहीं। ऐसे लोगों के लिए एक आईटी सपोर्ट वाले ने बड़ा ही देसी तरीका निकाला – "भैया, जितनी बार फोन करो, सबसे पहले टिकट नंबर पूछो। दो-तीन बार में ही लोग सुधर गए।"

एक और कहानी में तो मैनेजर खुद टीम के पीछे खड़ा हो गया – "टिकट के बिना कोई काम नहीं होगा। अगर कोई सीधा आकर बोले, तो बता देना – मैनेजर की परमिशन चाहिए।" इसका असर ये हुआ कि अब कोई भी बिना टिकट के आईटी डेस्क पर आने से डरता है!

प्यारे पाठकों, ऑफिस में अक्सर "मैं कौन हूँ?" टाइप की पॉलिटिक्स भी चलती है। एक कमेंट में लिखा था – "सर, आपके Active Directory में दर्जा देख लिया, आप मेरी मैनेजर से भी नीचे हैं। पहले टिकट डालिए, फिर बात आगे बढ़ेगी!"

टिकट सिस्टम का फायदा: सबका काम आसान

कई आईटी सपोर्ट वाले बताते हैं कि – "टिकट सिस्टम से ही पता चलता है कि किसने क्या काम किया। जैसे आपके सेल्स में टारगेट पूरे करने पर नाम जुड़ता है, वैसे ही हमारे लिए टिकट हमारी सेल है। जितने ज़्यादा टिकट, उतना ज़्यादा काम दिखेगा।"

एक बहनजी ने तो कमाल की बात कही – "अगर आप टिकट नहीं डालेंगे, तो आपकी प्रॉब्लम सिस्टम में दिखेगी ही नहीं। जैसे बिना परची डॉक्टर इलाज नहीं करता, वैसे ही बिना टिकट आईटी वाला काम नहीं करता!"

और एक देसी समाधान भी आया – "अगर कोई टिकट नहीं डालता, तो उसके लिए भी एक टिकट डाल दो – 'यूज़र को टिकट डालना सिखाना है।'"

निष्कर्ष: टिकट डालो, आईटी वाले को चैन से जीने दो

आखिर में, यही कहना चाहूंगा – ऑफिस में आईटी सपोर्ट वाले भी इंसान हैं, कोई चमत्कारी बाबा नहीं। अगर उन्हें सही से काम करने देना है, तो टिकट डालना सीखिए। जैसे दुकान में बिना पर्ची के सामान नहीं मिलता, वैसे ही आईटी में बिना टिकट के कोई सेवा नहीं मिलेगी।

तो अगली बार अगर आपकी स्क्रीन ब्लू हो जाए, प्रिंटर रूठ जाए, या इंटरनेट बाबा की कृपा रुक जाए – फौरन टिकट डालिए। आईटी वाला भी खुश, आप भी खुश, और ऑफिस की गाड़ी भी आराम से चलेगी।

क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे लोग हैं जो टिकट डालने से बचते हैं? या आईटी वाले भाई-बहन, आपके पास भी कोई दिलचस्प किस्सा है? कमेंट में ज़रूर बताइए – आखिर, कहानी साझा करने से ही तो परिवार बनता है!


मूल रेडिट पोस्ट: Some people really will....