ऑनलाइन सस्ता मिला!' – दुकानदार और ग्राहक की जुगलबंदी
शाम का वक्त था, दुकान में भीड़ कम हो चुकी थी। ऐसे समय में आमतौर पर वे ही ग्राहक आते हैं जिन्हें रात को कुछ जरूरी सामान लेना होता है। सब शांत था, तभी काउंटर से आवाज़ आई—"भैया, ज़रा इस Dr Pepper के मल्टी-पैक का दाम देख लीजिए, ग्राहक कह रहा है ये तो 12 पाउंड का है, लेकिन बिल पर 15 पाउंड आ रहा है। उसके पास फोटो भी है।"
अब सोचिए, हमारे यहाँ भी ऐसा ही कुछ होता—कोई ग्राहक सब्ज़ी मंडी में सब्ज़ी बेचने वाले से कहे, "भैया, कल तो आपके पड़ोसी की दुकान पर टमाटर 20 रुपये किलो थे, आप क्यों 30 ले रहे हैं?" दुकानदार क्या ही कहे!
ग्राहक का हथियार – मोबाइल की स्क्रीन
जैसे ही मैं काउंटर पर पहुँचा, ग्राहक ने बिना कुछ बोले मोबाइल मेरी आँखों के आगे कर दिया, ऐसे जैसे कोई मंतर दिखा रहा हो। फोटो में था—छह महीने पुराना, किसी और सुपरमार्केट का ऑफर, और उसपर भी फेसबुक के स्क्रीनशॉट पर गूगल का स्क्रीनशॉट! यानी "खिचड़ी में नमक ऊपर से डाल दिया"।
मैंने मन ही मन सोचा—अब इस बहस का कोई अंत नहीं। दस साल की रिटेल की नौकरी ने मुझे दो बातें सिखाई हैं:
पहली, इन लोगों के पास वक्त बहुत है, आपके पास नहीं। आप तर्क देंगे, ये फिर भी अपना ही राग अलापेंगे।
दूसरी, ये लोग अक्सर अकेले होते हैं। शायद दुकान पर बहस करना ही उनकी असली बातचीत होती है। असल ज़िंदगी में लोग इनसे बचते हैं, इसलिए ये बहस को लंबा खींचते हैं।
बहस का नया तरीका – "बिल्कुल सही कीमत है!"
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे! बढ़िया दाम है।"
ग्राहक ने विजयी भाव से कहा, "हाँ! आपको भी यही दाम देना चाहिए था।"
मैंने जवाब दिया, "माफ कीजिए, हम वो दाम नहीं दे सकते। चाहें तो आपकी खरीदारी की रकम लौटा सकता हूँ, आप वहाँ से खरीद लीजिए।"
ग्राहक ने कहा, "ठीक है, मुझे रिफंड चाहिए, उसी कीमत पर!"
मैंने भी मन में सोचा—भैया, आपको 12 पाउंड वापस चाहिए या 15? लेकिन ऐसे सवाल पूछने से बहस और बढ़ जाती, जैसा एक कमेंट में किसी ने कहा, "अगर दुकानदार यही बोल देता तो ग्राहक बहस और लंबी कर देता।"
खैर, मैंने झटपट रिफंड किया और पूछा, "कोई और मदद चाहिए?"
ग्राहक ने सिर हिलाया, जैसे कोई जंग जीत ली हो, और चुपचाप दुकान से निकल गया।
हर दुकान पर ऐसे ग्राहक – सबका अपना तरीका
रेडिट पर कुछ कमेंट्स में लोगों ने अपने मजेदार अनुभव साझा किए।
एक ने लिखा, "मैं तो ऐसे ग्राहकों को बस 'क्या शानदार फोन है!' बोलकर आगे बढ़ जाता हूँ।"
दूसरे ने मजाक में कहा, "अगर ग्राहक सिर्फ प्रोडक्ट का नाम चिल्लाए, तो मैं भी कोई रैंडम नाम चिल्लाता और चला जाता!"
एक और पाठक ने लिखा—"हमारे यहाँ भी एक ग्राहक आया, बोला 'दूसरी दुकान में सस्ता है', मैंने कहा 'तो वहीं से ले लीजिए', वो चुपचाप चला गया।"
ये बातें हमारे यहाँ की दुकानों में भी खूब देखी जाती हैं। अक्सर लोग पुराने अखबार की कटिंग या SMS दिखाकर कहते हैं, "ये ऑफर था, मुझे भी चाहिए!" लेकिन दुकानदार जानते हैं—हर ग्राहक को तर्क से नहीं, व्यवहार से हैंडल करना पड़ता है।
अनुभव का असली सार – समय की कीमत
पोस्ट के लेखक ने बड़ी खूबसूरती से लिखा—अब बहस में जीतने में मज़ा नहीं आता, बस काम जल्दी निपटाओ, ताकि स्टाफ समय पर घर जा सके।
कई पाठकों ने तारीफ की कि लेखक ने ग्राहक की इज्ज़त भी रखी और माहौल भी शांत रखा। एक ने लिखा, "आपने बहुत समझदारी से मामला संभाला, साथ ही ग्राहक को इंसान समझा, यही असली professionalism है।"
दरअसल, हर दुकान में ऐसे ग्राहक मिलते हैं—कभी कोई पुराना ऑफर दिखाता है, कभी ऑनलाइन कीमत की फोटो, कभी पड़ोस की दुकान की रसीद! लेकिन अनुभवी दुकानदार जानते हैं—समय की कीमत बहस से कहीं ज़्यादा है।
कई बार तो ग्राहक खुद भी जानता है कि उसकी बात में दम नहीं, लेकिन बातचीत के लिए बहाना ढूंढ़ता है।
रेडिट के एक मजेदार कमेंट के शब्दों में—"अगर आपको कोई चीज़ 100 रुपये में मिल रही है, जो पहले 150 की थी, लेकिन आपको उसकी ज़रूरत नहीं थी, तो आपने 50 बचाए नहीं, 100 खर्च किए!"
निष्कर्ष – आपकी दुकान, आपके अनुभव
तो अगली बार कोई ग्राहक आपको पुरानी कीमत, ऑनलाइन फोटो या किसी और दुकान का ऑफर दिखाए, तो मुस्कुराइए, शांति से जवाब दीजिए, और अपना कीमती समय बचाइए।
क्या आपके साथ भी ऐसा कभी हुआ है? कमेंट में जरूर बताइए।
और हाँ, अगली बार जब आपको कोई दुकान पर "सस्ता ऑनलाइन" कहे, तो ये ब्लॉग याद जरूर कीजिएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: 'I found it cheaper online!'