एयरलाइन की सीट को लेकर बवाल: जब यात्री ने धैर्य खो दिया
भारत में रेल और बस यात्रा के दौरान सीट को लेकर जो जद्दोजहद होती है, वैसी ही जंग हवाई जहाज में भी देखने को मिलती है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ हर किसी की जेब में टिकट तो है, पर मनचाही सीट पाने का लालच कम नहीं होता। आज हम आपको एयरलाइन काउंटर के पीछे की उन कहानियों से रूबरू करवाएंगे, जहाँ सीट की चाहत में लोग अपना आपा खो बैठते हैं। और यकीन मानिए, ये किस्से न सिर्फ हँसाएंगे, बल्कि आपको सोचने पर मजबूर भी कर देंगे कि क्या एक सीट के लिए इतना तामझाम ज़रूरी है?
सोचिए, अगर आप किसी लंबी दूरी की ट्रेन में हैं और आपकी रिज़र्वेशन कन्फर्म नहीं है—तो आप टीटी से लेकर साथ वाले यात्रियों तक सबको मनाने की कोशिश करेंगे, है ना? अब यही स्थिति एयरलाइंस में होती है, बस वहाँ जरा और ‘क्लासी’ तरीके से। पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी एयरपोर्ट के गेट काउंटर पर रोज़ाना ऐसे तमाशे देखने को मिलते हैं, जो किसी बॉलीवुड की कॉमेडी फिल्म से कम नहीं।
पहला किस्सा: "फ्री में सीट मिल जाएगी, ना?"
यह किस्सा उन माता-पिता का है जो सोचते हैं कि दो साल से छोटे बच्चों के लिए मुफ्त टिकट का मतलब है, उन्हें पूरी सीट भी मुफ्त मिल जाएगी! अब एयरलाइन का नियम है कि ऐसे बच्चे ‘लैप चाइल्ड’ यानी गोद में बैठेंगे। मगर माता-पिता अपने साथ भारी-भरकम कार सीट उठा लाते हैं और काउंटर पर खड़े होकर कहते हैं—"क्या तीन सीट साथ में मिल सकती हैं?" जब काउंटर वाला पूछता है, "तीसरी सीट किसके लिए?" तो जवाब आता है, "बच्चे के कार सीट के लिए!"
कर्मचारी जब समझाते हैं कि 'बेटा, फ्री में सीट नहीं मिलती', तो माता-पिता का चेहरा उतर जाता है। फिर कहते हैं, "अगर एक्स्ट्रा सीट हो तो हमें दे दो!" लेकिन यहाँ कोई जादू की झड़ी नहीं है; जिनकी सीट बुक है, वही बैठेगा। और अगर कार सीट को ऊपर लेकर जाने की जिद करें तो कर्मचारी मुस्कराकर कहते हैं, "इसे गेट चेक कर लीजिए, एयरपोर्ट पर मिल जाएगी!" इस जुगाड़ में कामयाबी नहीं मिलती, पर कोशिश की दाद ज़रूर देनी चाहिए।
दूसरा किस्सा: "हम First Class में हैं!"
अब बात करते हैं उन यात्रियों की जो First Class में टिकट लेकर खुद को राजा समझ बैठते हैं। एक साहब आते हैं और कहते हैं, "हमारी पत्नी के साथ सीट बदल दो, हम साथ बैठना चाहते हैं।" काउंटर का जवाब आता है, "सॉरी, सभी First Class सीटें फुल हैं, कोई साथ में खाली नहीं।" साहब बड़बड़ाते हुए चले जाते हैं, "ऐसी खातिरदारी First Class में!"
एक टिप्पणीकार ने बड़े चुटीले अंदाज़ में लिखा, "यात्रियों को लगता है First Class का टिकट मतलब मर्जी की सीट, लेकिन बाकी 20 लोग भी तो First Class में हैं, सबका मन तो नहीं रखा जा सकता!"
तीसरा किस्सा: "अपग्रेड क्यों नहीं देते?"
यहाँ दो लोग लेट-लतीफी में भागते-भागते आते हैं, फ्लाइट बस छूटने ही वाली है। पति साहब गुस्से में कहते हैं, "हमारी सीटें अलग-अलग हैं, एक साथ बैठा दो!" कर्मचारी समझाते हैं कि अब कोई सीट साथ में खाली नहीं, बोर्डिंग करो। फिर साहब कहते हैं, "अपग्रेड दे दो, पैसे भी दे देंगे!" लेकिन यहाँ कोई ‘घर की शादी’ नहीं है कि रिश्तेदार के लिए जगह बना ली जाए। मजेदार बात यह कि दोनों का कनेक्टिंग फ्लाइट भी अलग-अलग है, यानी अगले एयरपोर्ट पर फिर से सिर पकड़ना पड़ेगा!
एक पाठक ने लिखा, "ऐसे लोग जब देर से आते हैं तो अपनी गलती मानने की बजाय कर्मचारियों से झगड़ते हैं। अगर समय पर आते तो शायद साथ बैठ पाते!"
चौथा किस्सा: "बीवी को सीट के आगे सीट नहीं चाहिए!"
अब आते हैं सबसे हास्यास्पद कहानी पर। एक बुज़ुर्ग दंपती आते हैं, पति कहते हैं, "बीवी को वीलचेयर चाहिए और हमें एक्सिट रो (Exit Row) सीट चाहिए, उसके आगे कोई सीट न हो वरना बीवी को घबराहट होती है।" एयरलाइन का नियम है कि जो इमरजेंसी में दूसरों की मदद कर सके, वही Exit Row में बैठ सकता है। वीलचेयर लेते ही कंप्यूटर ने उनकी सीट बदल दी, लेकिन साहब अड़ जाते हैं।
कर्मचारी कहते हैं, "सर, अगर वीलचेयर चाहिए तो Exit Row नहीं मिलेगी।" पति कहते हैं, "तो वीलचेयर कैंसल करो, सीट वापस दो!" यहाँ Jetway Jesus भी चमत्कार न कर पाए! अंत में मैनेजर बुलाना पड़ा, और काफी नोकझोंक के बाद जैसे-तैसे Exit Row मिल गई, लेकिन कनेक्टिंग फ्लाइट में दोनों की सीट अलग-अलग! अब अगली बार किसी और कर्मचारी की शाम खराब होगी।
एक टिप्पणीकार ने चिंता जताई, "मान लीजिए इमरजेंसी हो जाए, और ऐसे लोग Exit Row में बैठें तो बाकी यात्रियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।" वहीं एक और ने मजाकिया अंदाज़ में कहा, "एयरपोर्ट पर वीलचेयर की डिमांड वैसे ही होती है जैसे शादी में फ्री फोटोग्राफर की!"
यही नहीं, कभी-कभी कुछ यात्री इतने गुस्से में आ जाते हैं कि काउंटर पर चिल्लाने लगते हैं कि 'मुझे अपग्रेड चाहिए, अभी चाहिए!' एक पाठक ने बताया कि ऐसी महिला को बार-बार कहा गया कि फ्लाइट निकल रही है, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं। आखिरकार, फ्लाइट अटेंडेंट्स को भी भगवान का ही सहारा है!
कुल मिलाकर, चाहे भारत हो या पश्चिम, यात्रियों की उम्मीदें और कर्मचारियों की परेशानियाँ, दोनों में कोई कमी नहीं। लेकिन एक सीट के लिए इतना हंगामा? भैया, अगली बार जब आप सफर करें, तो थोड़ा धैर्य रखें, मुस्कराएँ और याद रखें—कर्मचारी भी इंसान हैं, और हर सीट में पहुँचना, शांति से यात्रा करना ही असली 'First Class' है।
आपका कोई मजेदार एयरलाइन या रेलवे का सीट वाला किस्सा है? नीचे कमेंट में जरूर साझा करें, क्योंकि असली मनोरंजन तो आपके अनुभवों में छुपा है!
मूल रेडिट पोस्ट: In which people lose their cool over an airline seat.