एक साल पुरानी डिपॉजिट की रसीद और मेहमान की याददाश्त का खेल
शहर के किसी भी होटल या लॉज में अगर आपने कभी रात बिताई है तो आप जानते होंगे – रिसेप्शन पर हर रोज़ कुछ न कुछ नया तमाशा होता है। कभी कोई मेहमान अपनी चप्पलें भूल जाता है, तो कभी कोई अपनी चाय में चीनी कम होने पर शिकायत कर देता है। लेकिन आज जो किस्सा मैं सुनाने जा रही हूँ, वह होटल इंडस्ट्री के उन मज़ेदार और हैरान करने वाले पलों में से एक है, जब एक मेहमान अचानक एक साल पुरानी डिपॉजिट रसीद लेकर रिसेप्शन पर आ धमका।
मेहमान और उनकी एक साल पुरानी रसीद
होटलों में अमूमन कार्ड से ही डिपॉजिट ली जाती है—यानी कि अगर आप होटल में रुक रहे हैं, तो कोई नुक़सान या अतिरिक्त खर्च होने की आशंका में होटल वाले आपसे कुछ पैसे एडवांस में ले लेते हैं। लेकिन भारत में, और पश्चिमी देशों में भी, कई बार मेहमान सुविधाएं ले लेता है, पर कार्ड न होने का बहाना बना कर जिद्द करता है कि कैश में ही डिपॉजिट दूँगा। रिसेप्शन कर्मचारी भी क्या करें—अंत में मान ही जाते हैं।
अब हुआ यूँ कि एक मेहमान बड़े गर्व से एक पुरानी, हल्की-सी मुड़ी-तुड़ी रसीद लेकर आया और बोला, "मैडम, ये देखिए, पिछले साल जनवरी में मैंने डिपॉजिट दिया था, अब आपसे पैसे वापस लेने आया हूँ!" रिसेप्शनिस्ट ने तारीख देखी—जनवरी 2024! यानी पूरे एक साल से भी ज़्यादा पुरानी रसीद!
रिसेप्शनिस्ट ने बड़ी शांति से समझाया, "साहब जी, इतनी पुरानी डिपॉजिट तो अब सिस्टम में भी नहीं मिलती, आपको नई डिपॉजिट देनी होगी। पुरानी रसीद के बारे में मैनेजर से ही बात कर सकते हैं।" मेहमान ने बहस करने की कोशिश की, लेकिन अंततः कार्ड से नई डिपॉजिट देनी ही पड़ी। इस पूरी घटना को सुनकर मेरे साथी कर्मचारी ठहाके मारकर हँस पड़े—कहना ही होगा, "लोग कितने अजीब होते हैं!"
रसीदें, याददाश्त और पुराने ग्राहक
ऐसी बातें हमारे देश में नई नहीं हैं। अक्सर दुकानों में भी कोई पुराना ग्राहक महीनों बाद आकर कहता है, "भैया, पिछली दिवाली पर मैंने 500 रुपये एडवांस दिए थे, अब मेरा सामान दो या पैसे वापस करो!" यहाँ तक कि पड़ोस की किराना दुकान का मालिक भी कहता है, "भैया, पुराना हिसाब-किताब घर पर ही छोड़ दो, यहाँ नया सामान लो!"
Reddit पर एक उपयोगकर्ता ने मज़ाक में लिखा—"यही वजह है कि हम अच्छा सिस्टम नहीं बना पाते!" एक और ने लिखा, "बस एक ऐसा ग्राहक चाहिए जो सबका खेल बिगाड़ दे।" यह बात बिल्कुल सच है—अगर कोई एक बार सिस्टम का फायदा उठाने लगे तो बाकी सबकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
धाँधली के किस्से और होटल वालों के जुगाड़
एक और टिप्पणी में बताया गया कि कैसे एक ग्राहक ने एक ही दुकान से दो बार डिपॉजिट वापस लेने की कोशिश की। पहले नई कर्मचारी के सामने 80 डॉलर वापस ले गया, फिर अगले दिन मैनेजर के सामने वही रसीद लेकर बिलकुल भोले बन कर खड़ा हो गया—"भैया, कल बड़ी जल्दी में चला गया, पैसे तो वापस लिए ही नहीं!" मगर इस बार मैनेजर सतर्क था—वो रसीद लेकर ऑफिस में गया और पुलिस को फोन कर दिया।
इसके बाद सभी कर्मचारियों को सख्त हिदायत मिल गई—अब से डिपॉजिट की रसीद पर ग्राहक और कर्मचारी दोनों के साइन होंगे, और हर चीज़ नोटबुक में दर्ज होगी। ये सब पढ़कर यकीन मानिए, हमारे यहाँ की सरकारी दफ्तरों की याद आ गई, जहाँ हर काम के चार-चार दस्तावेज़ और दो-दो गवाह चाहिए होते हैं!
भारत में भी वही कहानी, अलग अंदाज़
हमारे यहाँ तो कभी-कभी पुराने ग्राहक अपनी बहन, चाचा या पड़ोसी को भेज देते हैं—"वो पिछली बार जो पैसे छोड़े थे, वही लेने आया हूँ!" और जब कर्मचारी पहचान नहीं पाता तो शुरू होता है असली ड्रामा—"हम तो इतने सालों से आपके यहाँ सामान ले रहे हैं, आपको हम पर भरोसा नहीं!"
एक कमेंट में किसी ने बढ़िया सलाह दी—"जब भी डिपॉजिट वापस दो, रसीद पर दोनों के साइन कराओ।" यह छोटी-सी बात बड़े-बड़े झगड़े से बचा सकती है।
क्या सिखाया हमें इस किस्से ने?
इस पूरे किस्से से यही सिखने को मिलता है कि सिस्टम चाहे अमेरिका का हो या भारत का, ग्राहक और दुकानदार या रिसेप्शनिस्ट की रस्साकशी हर जगह चलती रहती है। पुराने बकाया, रसीदें, और याददाश्त की गलती—ये सब इंसानी फितरत का हिस्सा हैं। बस फर्क इतना है कि कहीं ग्राहक अंग्रेज़ी में बहस करता है, तो कहीं हिंदी में तर्क देता है। और अंत में, हर जगह यही कहा जाता है—"लोग कितने अजीब होते हैं!"
अगर आपके साथ भी ऐसा कोई मज़ेदार किस्सा हुआ है, तो कमेंट में जरूर बताइएगा—क्योंकि होटल, दुकान या दफ्तर—हर जगह कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं। आखिर, ज़िंदगी तो यारों किस्सों का मेला है!
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