एक छोटी सी शरारत, पिताजी के लिए उम्रभर की ड्यूटी: चर्च वाली बदला कहानी
बचपन की शैतानियाँ भला कौन भूल सकता है? खासकर जब वो शरारत इतनी मासूम हो, कि सालों-साल तक उसका असर दिखता रहे। आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहा हूँ—एक छोटे से बच्चे की नादानी, जिसने अपने पिताजी की ज़िंदगी का तीस-तीस साल बदल डाला। ये कहानी है बदले की, लेकिन वो भी ठेठ देसी, शरारती अंदाज में!
बचपन की ऊब और चर्च का रंगीन संघर्ष
सोचिए, तेरह साल का एक लड़का, जो किशोरावस्था की दहलीज़ पर है, और हर रविवार उसे चर्च के Sunday School में जाना पड़ता है। हमारे यहाँ जैसे स्कूल में 'शांति पाठ' या 'प्रार्थना सभा' से बच्चें कभी-कभी बोर हो जाते हैं, वैसे ही पश्चिमी देशों में भी चर्च जाना बच्चों के लिए कम सिरदर्द नहीं। इस बच्चे की परेशानी ये थी कि तेरह साल की उम्र में भी उसे रंगीन क्रेयॉन से यीशु मसीह की तस्वीरें रंगनी पड़ती थीं। उम्र का तकाज़ा, बोरियत का आलम—और पिताजी की सख्ती, 'नहीं बेटा, Sunday School जाना ही पड़ेगा!'
अब हमारे घरों में भी ऐसा ही होता है ना—माता-पिता की जिद्द, "बेटा, पूजा-पाठ में बैठो, भजन सुनो"—और बच्चे की मन की चिड़चिड़ाहट। Reddit के इस पोस्ट वाले लड़के ने भी वही महसूस किया। चर्च में बैठे-बैठे announcements सुन रहा था, गुस्से में। तभी उसे पता चला कि चर्च में usher (सेवक) बनने के लिए लोग चाहिए। ये कोई दो-चार दिन की ड्यूटी नहीं थी, बल्कि 'लाइफटाइम कमिटमेंट'!
'शरारत' का बदला: जब बेटे ने पिताजी को फँसा दिया
अब आता है असली ट्विस्ट! बच्चा, Sunday School से बचने के लिए, पिताजी से दुबारा पूछता है—"पापा, क्या मैं आपके साथ बैठ सकता हूँ?" जवाब फिर वही सख्त 'नहीं'! तो जनाब ने जो किया, वो वाकई कमाल था। Sign-up काउंटर पर गया, और पिताजी का नाम और सिग्नेचर करके, उन्हें usher की ड्यूटी में घुसा दिया। नाम, initials, सब एक जैसे—फर्जी हस्ताक्षर की प्रैक्टिस स्कूल में हो ही चुकी थी!
दो हफ्ते बाद जब पिताजी को सूचना मिली कि अब हर तीसरे रविवार उनकी usher की बारी है, तो गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। मगर चर्च की इज्जत, पुराना मेलजोल—"अब मुँह कैसे दिखाऊँ, कहूँगा कैसे कि बेटे ने फंसा दिया?" बस, फिर क्या था, अगले बीस साल तक, हर तीसरे रविवार, पिताजी ड्यूटी निभाते रहे। बेटे को जोरदार डाँट (या कहें, देसी भाषा में 'कुटाई') भी पड़ी, जो आजकल के बच्चों को शायद ही समझ में आए!
चर्च की रंगीन यादें और 'ग्लिटर' की आफत
Reddit पर इस कहानी के नीचे ढेरों कमेंट्स में लोगों ने अपनी-अपनी चर्च वाली यादें बांटीं। एक यूज़र ने लिखा—"मैं Sunday School से तब निकाला गया, जब मैं ग्लिटर और ग्लू ले आया। Transfiguration (रूपांतरण) में Jesus इतना चमकदार था कि चार साल के बच्चों के साथ-साथ फर्नीचर, कालीन, सब चकाचौंध हो गया!"
किसी ने लिखा, "हमारे यहाँ ग्लिटर को 'क्राफ्ट का हरपेस' कहते हैं—एक बार लग गया, तो ज़िंदगी भर पीछा नहीं छोड़ता!" ये सुनकर मुझे अपने स्कूल के आर्ट पीरियड की याद आ गई, जब ग्लिटर के चलते घर, बाल, कपड़े सब चमकते रहते थे। एक और मजेदार कमेंट था—"दूसरों को धार्मिक ड्यूटी में घसीटना, खुद न निभाना—ये तो वाकई मजेदार बदला है!"
रिश्तों की मिठास और उम्रभर का सबक
सबसे प्यारी बात ये रही कि आज, जब पिताजी 92 साल के हैं, फिर भी बेटे को याद दिलाते हैं—"देखो, बेटा, तुमने मुझे फँसाया था!" Reddit पर एक और यूज़र ने लिखा, "इतने साल बाद भी, ये बदला अब प्यारी याद बन गया है। आखिरकार, बेटे ने अपने पापा को 'पवित्र' ड्यूटी में लगा ही दिया!"
किसी ने पूछा—"इस घटना का आपके धार्मिक विश्वास पर क्या असर पड़ा?" जवाब मिला—"आज भी मैं खुद को agnostic मानता हूँ।" कई लोगों ने अपने अनुभव शेयर किए कि कैसे Sunday School या चर्च की जबरदस्ती ने उनके सोचने-समझने का नजरिया बदल दिया।
निष्कर्ष: शरारत, रिश्ते और पुरानी यादों की मिठास
ये कहानी सिर्फ बदले या शरारत की नहीं है, बल्कि बचपन की उस उम्र की है जब हम बड़े होने की जिद में कुछ भी कर गुजरते हैं। कभी-कभी एक छोटी सी शरारत, उम्रभर की याद बन जाती है। पिताजी ने भले ही नाराज़गी में डांटा हो, लेकिन अब जब वो उस घटना को याद करते हैं, तो चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है।
हमारे यहाँ भी, जब परिवार में किसी ने मज़ाक-मजाक में किसी को किसी कमेटी में घुसेड़ दिया हो, या शादी में किसी को पकड़ा कर ड्यूटी लगवा दी हो, तो सालों तक वो किस्सा चलता ही रहता है। यही तो है परिवार की मिठास—थोड़ी शरारत, थोड़ा गुस्सा, और ढेर सारी यादें!
अगर आपके साथ भी कभी कोई ऐसी शरारत या बदला हुआ हो, तो नीचे कमेंट में जरूर बताइए। कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी और की मुस्कान का कारण बन जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: A lifelong payback