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आठ साल की मेहनत, फिर भी पदोन्नति से वंचित: होटल रिसेप्शनिस्ट की कहानी

व्यस्त होटल में रिसेप्शनिस्ट, 8 वर्षों के बाद करियर विकास और चूकी हुई अवसरों पर विचार कर रही है।
8 वर्षों तक समर्पित रिसेप्शनिस्ट रहते हुए, मैंने अपने सहकर्मियों को ऊँचाइयों पर पहुँचते देखा है, जिनमें एक मित्र भी है जो FOM बन गई। यह फोटो यथार्थवादी छवि मेरी यात्रा और करियर की आकांक्षाओं के मीठे-तीखे क्षणों को दर्शाती है।

कभी-कभी जीवन में सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जब आपकी मेहनत और लगन को नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऑफिस में वरिष्ठता और अनुभव के बावजूद जब प्रमोशन किसी नए व्यक्ति को मिल जाए, तो मन में जो खिन्नता और निराशा आती है, वो शायद हर नौकरीपेशा हिंदुस्तानी ने कभी ना कभी महसूस की ही होगी। आज की कहानी एक ऐसे ही होटल रिसेप्शनिस्ट की है, जिसने पूरे आठ साल दिन-रात एक कर दिए, लेकिन जब ‘फ्रंट ऑफिस मैनेजर’ (FOM) बनने की बारी आई, तो उसकी मेहनत को एक झटके में किनारे कर दिया गया।

अनुभव या ‘बाहर का नया खून’? – ऑफिस की राजनीति का असली चेहरा

हमारे नायक ने आठ साल तक एक ही बिजनेस होटल में रिसेप्शनिस्ट की जिम्मेदारी संभाली। होटल के सारे सिस्टम, मेहमानों की पसंद-नापसंद, हर छोटी-बड़ी बारीकी उन्हें पता थी। नए स्टाफ को ट्रेनिंग देने से लेकर मुश्किल शिफ्ट्स में होटल को संभालना – सब कुछ उन्होंने किया। जब पुराने FOM के जाने के बाद पद खाली हुआ, तो उन्हें लगा – ‘अब तो मेरा ही नंबर है!’ मगर, हुआ क्या? होटल मैनेजमेंट ने एक ऐसे व्यक्ति को FOM बना दिया, जो अभी एक महीने पहले ही आया था और जिसे खुद हमारे नायक ने ट्रेन किया था!

हिंदुस्तान के दफ्तरों में भी अक्सर यही देखने को मिलता है – “बाहर से नया खून लाओ, ताजगी आएगी!” लेकिन कई बार ये ‘ताजगी’ सिर्फ दिखावे की होती है। जैसा कि एक Reddit यूज़र ने मजाकिया अंदाज में कहा, “हमारी कंपनी में नई AGM (Assistant General Manager) सिर्फ इसीलिए बनी क्योंकि उसके पास अपनी कार थी। बाद में, वह शॉपिंग रन के लिए मना कर गई, और जब उसने नौकरी छोड़ी, उसी वक्त मैंने भी कार खरीद ली!”

‘तुम बहुत कीमती हो, इसलिए प्रमोशन नहीं देंगे!’ – कम्युनिटी के दिलचस्प कमेंट्स

Reddit पर इस कहानी को पढ़कर कई लोगों ने अपने अनुभव भी साझा किए। एक ने लिखा, “तुम्हें कभी प्रमोशन नहीं मिलेगा, क्योंकि मैनेजमेंट तुम्हें तुम्हारी जगह पर ही रखना चाहता है। जितनी जिम्मेदारियां तुम उठा लेते हो, उतनी शायद कोई और ना उठा पाए।”
दूसरे यूज़र ने तंज कसा, “जब तक तुम ‘ज्यादा’ काम करते रहोगे और छुट्टियों में भी ऑफिस चले जाओगे, मैनेजमेंट क्यों तुम्हें आगे बढ़ाएगा? उन्हें तो फ्री में सुपरस्टार मिल रहा है!”

यह बात भारतीय दफ्तरों में भी खूब देखने को मिलती है – जो कर्मचारी ‘हाँ’ बोलते रहते हैं, उन पर काम का बोझ तो बढ़ता जाता है, लेकिन प्रमोशन की लाइन में वे अक्सर पीछे ही रह जाते हैं। एक और यूज़र ने सलाह दी, “अगर कंपनी तुम्हारी कदर नहीं कर रही, तो समय है दूसरी जगह इंटरव्यू देने का। अपने अनुभव को कहीं और भुनाओ!”

सैलरी बढ़ोतरी या ‘झुनझुना’? – असली सम्मान क्या है?

जब हमारे नायक को प्रमोशन नहीं मिला, तो मैनेजर ने सांत्वना देने के लिए 75 यूरो की सैलरी बढ़ोतरी और थोड़ी ‘आजादी’ दे दी – यानी अब वे खुद फैसले ले सकते हैं। ज़रा सोचिए, आठ साल की सेवा और इनाम में केवल 75 यूरो! यह तो वैसा ही है जैसे दिवाली बोनस में दो किलो मिठाई थमा दी जाए और कहा जाए – “बहुत मेहनत की है, बेटा!”

एक यूज़र ने बड़ी सच्चाई से लिखा, “तुम्हारे अनुभव की कद्र सिर्फ तुम्हारी कुर्सी तक है। वे तुम्हें प्रमोट नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें डर है कि तुम्हारे बिना काम कैसे चलेगा।”
यहाँ तक कि कुछ लोगों ने यह भी कहा कि अब समय है ‘ना कहना’ सीखने का – छुट्टी कटवाने या एक्स्ट्रा काम करने से मना करो, ताकि मैनेजमेंट को भी लगे कि तुम्हारा योगदान कोई मामूली बात नहीं।

दिल से काम करो, लेकिन खुद की कदर भी करो

हमारे नायक ने खुद लिखा – “मुझे अपने काम और होटल से प्यार है, मेहमान मुझसे दोस्ताना व्यवहार करते हैं, और कई लोग खुद पूछते हैं कि क्या मैं FOM बनूंगा।” फिर भी, उन्होंने अपनी निराशा को बड़े सभ्य अंदाज में बयान किया – “मैं नाराज़ नहीं हूँ, बस निराश हूँ।”

कई बार जीवन में हमें ऐसे मोड़ मिलते हैं जहाँ अपने आत्म-सम्मान और करियर के लिए बड़े फैसले लेने पड़ते हैं। भारतीय समाज में भी अक्सर कहा जाता है – “अरे, नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत है? सब्र करो, आगे मौका मिलेगा।” लेकिन आज की युवा पीढ़ी जानती है कि अगर सही कद्र न मिले, तो नई राह तलाशना भी जरूरी है।

निष्कर्ष: आपकी मेहनत का असली मोल सिर्फ आप ही तय कर सकते हैं

हर ऑफिस में ऐसे कई लोग होते हैं जो चुपचाप सबका बोझ उठाते हैं, लेकिन जब प्रमोशन की बारी आती है तो उन्हें ‘पुराना’ कहकर किनारे कर दिया जाता है। अगर आप भी ऐसी स्थिति में हैं, तो Reddit समुदाय की सलाह को याद रखिए –
“अपना रेज़्यूमे तैयार रखो, अपनी काबिलियत पर भरोसा रखो, और जहाँ सम्मान मिले, वहीं ठहरो।”

दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? क्या आपको भी मेहनत के बावजूद नजरअंदाज किया गया? अपने अनुभव और राय कमेंट में जरूर लिखें। आखिरकार, नौकरी बदलना आसान नहीं, लेकिन आत्म-सम्मान खोना उससे भी मुश्किल है!


मूल रेडिट पोस्ट: 8 years as a receptionist got passed over for FOM.