आईटी वालों की मदद: जब एक खराब केबल ने 10 दिन तक सबको घुमाया
आईटी (IT) सपोर्ट की दुनिया में लोग अक्सर सोचते हैं कि जब सामने वाला भी आईटी एक्सपर्ट हो, तो काम आसान हो जाता है। आखिरकार, दोनों एक ही भाषा बोलते हैं, तकनीकी बातें समझते हैं और समस्या का हल निकालना जानते हैं। लेकिन भाईसाहब, कभी-कभी तो आईटी वाले भी ऐसी-ऐसी गलती कर देते हैं कि आम आदमी भी शर्मा जाए! आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – जिसमें एक साधारण सी ईथरनेट केबल ने दिमागी घोड़े दौड़वा दिए और 10 दिन तक सबको चक्रव्यूह में उलझाए रखा।
जब आईटी एक्सपर्ट भी बन जाएं 'क्लूलेस'
हमारे नायक (या कहें, पीड़ित!) एक सॉफ्टवेयर सपोर्ट इंजीनियर हैं, जिनका काम सिर्फ कंपनी के सॉफ्टवेयर से जुड़ी तकनीकी समस्याएँ सुलझाना है। चूंकि उनकी सर्विस सिर्फ क्लाइंट के सर्वर पर चलती है, तो उनके ग्राहक भी ज्यादातर आईटी वाले ही होते हैं। इसका फायदा ये, कि उन्हें रोज-रोज "कंप्यूटर बंद कर के चालू करो" जैसे सवालों से जूझना नहीं पड़ता। लेकिन, इसका नुकसान भी है – जब आईटी बनाम आईटी की जंग छिड़ती है, तो जिम्मेदारी टालने का मैच हफ्तों तक चलता रहता है।
कहानी की शुरुआत होती है एक ऐसे सर्वर से, जो इंटरनेट से कटा हुआ था। क्लाइंट के आईटी वाले बार-बार यही कहते रहे, "बाकी सब सर्वर ठीक हैं, बस यही एक नहीं चल रहा। तुम्हारे सर्विस का ही मसला है।" सपोर्ट इंजीनियर बार-बार बता रहे, "भाईसाहब, सर्विस तो बढ़िया चल रही है, इंटरनेट ही नहीं है। नेटवर्क देखो न अपना!" लेकिन क्लाइंट की टीम अड़ी रही – "हमारी तरफ सब ठीक है, जरूर आपकी सर्विस में गड़बड़ है।"
'एक केबल की कहानी': 10 दिन का महा-उपवास
अब आप सोच रहे होंगे, इसमें इतना टाइम क्या लगा? तो जनाब, असली आईटी ड्रामा यहीं शुरू होता है। रोज़ाना 3-5 ईमेल, हर दिन वही सवाल-जवाब – "कनेक्शन नहीं हो रहा", "लॉग्स में एरर है", "बाकी सब ठीक है", "इंटरनेट नहीं आ रहा"... और फिर वही जवाब – "इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, नेटवर्क टीम को बुलाओ।"
यह सिलसिला चलता रहा पूरे 10 दिन। आखिरकार, एक दिन क्लाइंट का मेल आया – "समस्या खराब ईथरनेट केबल के कारण थी, बदल दी है। टिकट क्लोज कर दीजिए।" दस दिन का झमेला, सिर्फ एक केबल के लिए! जैसे पुराने हिंदी फिल्मों में हीरो आखिर में कहता है, "असल मुजरिम तो ये है!" वैसे ही असली दोषी निकली – एक केबल!
'आईटी के महारथी' भी कभी-कभी भूल जाते हैं मूल बातें
रेडिट पर इस पोस्ट पर खूब मज़ेदार कमेंट्स आए। एक यूज़र ने लिखा, "अरे, केबल तो मैंने बदल ही ली थी! मैं कोई बेवकूफ थोड़े ही हूँ!" (जैसे हमारे यहां कोई कहे – 'मैंने तो पंखा चालू किया ही था, बिजली खुद ही नहीं थी!'). दूसरा कमेंट था, "कई बार लोग पुराने केबल को डस्टबिन से निकालकर फिर से लगा देते हैं, और फिर वही समस्या...।"
एक और मज़ेदार किस्सा कमेंट में आया – "बचपन में निनटेंडो सपोर्ट को कॉल किया था, 'हां, मैंने प्लग इन किया है', और असल में वो प्लग इन ही नहीं था।" क्या हमारे यहां भी अक्सर ऐसा नहीं होता, जब डीटीएच सेटअप बॉक्स चल नहीं रहा होता, तो पता चलता है, तार ही ढीली है!
कुछ लोगों ने आईटी के अंदरूनी दर्द भी साझा किए – जैसे एक ने कहा, "कभी-कभी हम इतने एक्सपर्ट हो जाते हैं कि बुनियादी समस्या देखना ही भूल जाते हैं।" यानी, 'पेड़ के नीचे खड़े होकर पेड़ ही नहीं दिखता' वाली बात!
'फिंगर पॉइंटिंग' और 'जिम्मेदारी टालू' संस्कृति
भारत में भी ऑफिस के माहौल में अक्सर यही देखने को मिलता है – कोई भी समस्या हो, सब अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं। जैसे बिजली चली जाए, तो कोई कहता है 'बिल्डिंग वालों से पूछो', बिल्डिंग वाले कहते हैं 'लाइट कंपनी से पूछो', और असल में मिस्त्री को तार जोड़ने में पांच मिनट लगते हैं!
आईटी में भी यही होता है – "ये तुम्हारे फायरवॉल का मसला है", "नहीं, तुम्हारे नेटवर्क का", "हमने तो सब चेक कर लिया, तुम देखो।" और फिर, एक एक्सपर्ट आता है, पांच मिनट में असली दिक्कत पकड़ लेता है – और सबका मुंह बंद!
एक कमेंट में किसी ने लिखा, "तीन महीने तक सब एक-दूसरे पर दोष डालते रहे, आखिर किसी ने रूटिंग चेक की और पांच मिनट में समस्या सुलझ गई।" ये किस्सा सुनकर हर भारतीय पाठक मुस्कुरा देगा – यहां तो ऐसे किस्से रोज़ होते हैं!
निष्कर्ष: तकनीक में भी 'जुगाड़' और इंसानियत जरूरी है
कभी-कभी, सबसे बड़ी समस्या की जड़ सबसे छोटी चीज़ होती है – जैसे एक ढीला वायर, एक खराब केबल, या रीस्टार्ट न किया हुआ कंप्यूटर। चाहे आप आईटी एक्सपर्ट हों या आम आदमी, मूल बातें कभी न भूलें – "तार चेक कर लो, रीस्टार्ट कर लो, और अगर फिर भी न चले तो असली एक्सपर्ट को बुलाओ!"
तो अगली बार जब आपके ऑफिस का कंप्यूटर या सर्वर न चले, तो 'हाई-फाई' सोचने से पहले एक बार तार-केबल और प्लग जरूर देख लीजिए। क्या पता, आपकी 10 दिन की परेशानी 10 सेकंड में ही दूर हो जाए!
आपको भी ऐसी कोई मजेदार आईटी या टेक सपोर्ट की कहानी याद है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए – आपकी कहानी पढ़कर और लोग भी हँसेंगे और सीखेंगे!
मूल रेडिट पोस्ट: Supporting other IT people is usually better than the general populace. Usually.