विषय पर बढ़ें

अस्पताल की प्रतीक्षा में: एक खट्टी-मीठी कहानी बुज़ुर्ग महिला और बदले की महक

अस्पताल के प्रतीक्षा कक्ष में व्हीलचेयर पर बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति का कार्टून-शैली चित्रण।
इस जीवंत 3डी कार्टून दृश्य में, एक बुजुर्ग व्यक्ति अस्पताल के प्रतीक्षा कक्ष में बैठा है, जो स्वास्थ्य सेवाओं में आने वाली चुनौतियों को दर्शाता है। यह चित्र कठिन समय में समर्थन और साथी के महत्व को उजागर करता है।

अस्पताल का इंतज़ार कक्ष… वहां की घड़ी मानो कभी आगे बढ़ती ही नहीं। मरीज, उनके परिजन, डॉक्टर, नर्सें—हर कोई किसी न किसी चिंता में डूबा। इसी माहौल में, एक बेटे की नज़र से प्रस्तुत है एक मज़ेदार और थोड़ी-सी तड़पती कहानी, जिसमें एक बुज़ुर्ग महिला की शिकायतों, अस्पताल स्टाफ की सहनशीलता और बेटे के छोटे से बदले ने माहौल में थोड़ी “हवा” भर दी!

इंतज़ार कक्ष की हकीकत: हर कोई राजा, पर नियम सबके लिए

अक्सर हम सोचते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में जाने से VIP ट्रीटमेंट मिलेगा। लेकिन हकीकत तो ये है कि हर मरीज की हालत, उसकी ज़रूरत और डॉक्टर की प्राथमिकता के हिसाब से तय होती है कि किसे कब बुलाया जाएगा। हमारे कहानी के नायक अपने माता-पिता के साथ अस्पताल पहुंचे—माता-पिता व्हीलचेयर पर, शरीर से कमज़ोर लेकिन मन से मज़बूत। डॉक्टर ने कहा, थोड़ा इंतज़ार करना होगा, पर गंभीरता देखते हुए 20 मिनट में ही टेस्ट के लिए बुला लिया गया।

अब यहीं से एंट्री हुई हमारे कहानी की “OH”—यानी 'ओल्ड हग', जो इस ब्लॉग में आदरपूर्वक 'बुज़ुर्ग महिला' कहलाएँगी। जैसे ही हमारे नायक के माता जी अंदर गईं, ये महिला नर्स पर उंगली उठाकर, ऊँची आवाज़ में शिकायतें करने लगीं—“ये व्हीलचेयर वाली पहले कैसे चली गई?”, “मैंने नाश्ता नहीं किया, ये सब मेरी गलती है?”, “मैंने 20 साल तक कॉलेज में पढ़ाया है, मुझे सबक सिखाओ…” वगैरह-वगैरह।

अस्पताल का अनुभव: भूख, चिंता या आदत?

कई पाठकों ने कमेंट में लिखा, शायद ये महिला भूखी थीं, इसलिए चिड़चिड़ी हो रही थीं। एक टिप्पणीकार ने तो यहां तक कहा, “मेरे भाई को भी जब भूख लगती है तो गुस्से में हर किसी से झगड़ पड़ता है!” कुछ ने तो इसे ‘हैंग्री’ (भूख + गुस्सा) बताया—भारत में भी हम ऐसे लोगों को “भूखे भजन न होय गोपाला” कह कर चुप करा देते हैं।

पर एक बात गौर करने वाली है—क्या सिर्फ भूख इतनी बड़ी वजह हो सकती है? अस्पतालों में काम करने वाले कई लोगों ने Reddit पर कहा, “भूख आपको चिड़चिड़ा बना सकती है, पर स्टाफ पर उंगली उठाना, अपनी शान बघारना, और दूसरों के प्रति असम्मान दिखाना, ये सब तो आदत का हिस्सा है।” भारत में भी ऐसे ‘सीनियर सिटीजन’ अक्सर मिल जाते हैं, जो अपने अनुभव का रौब दिखाते हुए सबको नीचे समझते हैं।

स्टाफ की सहनशीलता और बेटा बना ‘पेटी रिवेंज’ का हीरो

अस्पताल का स्टाफ इतना संयमी था कि महिला की शिकायतों के बाद भी उसे खाने के लिए कुछ लाकर दे दिया। जैसे ही महिला ने खाना देखा, उनका व्यवहार 180 डिग्री घूम गया—“भगवान भला करे आप सबका!” लेकिन खाना फिर भी नहीं खाया। ये तो वही बात हो गई, “मुँह में राम, बगल में छुरी।”

इसी बीच, हमारे नायक ने इंतज़ार करने के बाद बिलिंग काउंटर की तरफ़ जाना था। रास्ता तंग था, बुज़ुर्ग महिला वहीं बैठी थीं। नायक ने मौका देखकर चुपचाप “हवा” छोड़ दी—यानि एक ‘साइलेंट और डेडली’ पाद। महिला अचानक खाँसने लगी, और नायक के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। कभी-कभी छोटी-छोटी बातों से भी सुकून मिल जाता है—यही है असली ‘पेटी रिवेंज’!

कई पाठकों ने इस ‘क्रॉप-डस्टिंग’ (पेट से निकली बदली) को गज़ब का मासूम बदला बताया। एक कमेंट में लिखा था, “कुछ फसलों को भी धूल चाहिए होती है”—कितनी बढ़िया बात!

रिश्तों की गर्माहट: अस्पताल में भी मिलती है सच्ची इंसानियत

सर्जरी के बाद जब हमारा नायक फिर से अस्पताल पहुँचा, तो वहाँ के स्टाफ ने उसे पहचान लिया, हालचाल पूछा, और लिफ्ट तक छोड़ा। एक वरिष्ठ व्यक्ति ने उनसे अनुभव पूछा, और जब बुज़ुर्ग महिला की बात बताई गई, तो बोले, “हम समझ गए, स्टाफ ने पहले ही शिकायत की थी। अब से उसका ध्यान रखेंगे।”

इस पूरी कहानी से एक बात साफ होती है—अस्पताल में, चाहे कोई भी हो, इज्ज़त और सहानुभूति सबके लिए ज़रूरी है। जो लोग दूसरों को तुच्छ समझते हैं, उन्हें ज़िंदगी कभी न कभी आईना ज़रूर दिखा देती है। और कभी-कभी, ये आईना एक चुपचाप छोड़ी गई हवा के ज़रिए भी दिखाया जा सकता है!

निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?

हर अस्पताल में ऐसे किरदार मिलते हैं—कुछ परेशान, कुछ खुद को सबसे ऊपर समझने वाले, और कुछ सब्र से काम लेने वाले। इस कहानी में हास्य भी है, सीख भी है। क्या आप भी ऐसे किसी दिलचस्प अनुभव के गवाह बने हैं? क्या कभी आपको भी किसी की शिकायतों पर चुपचाप छोटा सा बदला लेने का मौका मिला?

अपने अनुभव, राय और सुझाव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें। और हाँ, अगली बार अस्पताल जाएँ, तो अपने साथ बिस्कुट या फल ज़रूर ले जाएँ—क्योंकि भूखे पेट ना भजन होय, ना ही अच्छे व्यवहार की आशा!


मूल रेडिट पोस्ट: Old people at the hospital