जब प्रिंटर बना सिरदर्द: एक शुक्रवार की तकनीकी दास्तां
आखिरकार शुक्रवार आ ही गया! ऑफिस की भागदौड़, मीटिंग्स का झमेला और रोज़मर्रा की छोटी-बड़ी तकनीकी परेशानियाँ—सच कहूँ तो जैसे ही शुक्रवार आता है, दिल से एक आवाज़ आती है, “वाह, अब तो सुकून मिलेगा!” लेकिन दोस्तों, इस बार की शुक्रवार की कहानी ऐसी है कि सुनकर आप भी कहेंगे, “भाई, क्या झेला है!”
हर हफ्ते की तरह सोचा था कि आज तो जल्दी घर निकल जाऊँगा, लेकिन किस्मत का खेल देखिए, एक मामूली सा प्रिंटर पूरे 40 मिनट तक मुझे नचाता रहा। ऑफिस वाले भी चाय की प्याली लेकर तमाशा देख रहे थे, जैसे किसी शादी में बैंड बजाने वाले की धुन पर सब झूम रहे हों।