जब थेरेपिस्ट की 'सच्चाई' उनसे ही भारी पड़ गई: एक अनोखा थेरेपी अनुभव

"बेटा, जो भी मन में हो, खुलकर कहो।" हमारे यहां तो बचपन से ही ये सुनते आए हैं, लेकिन जब सच में मन की बात कह दो, तो सामने वाला नाक-भौं सिकोड़ने लगता है। ऐसा ही कुछ हुआ Reddit यूज़र u/hollowcitylights के साथ, जब उन्होंने अपने थेरेपिस्ट की 'बिना फिल्टर ईमानदारी' वाली सलाह को थोड़ा ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया।

सोचिए, आप किसी मनोवैज्ञानिक (psychologist) के पास जाते हैं, और हर सेशन में वही घिसी-पिटी लाइन सुनते हैं – "यहां आप पूरी तरह सुरक्षित हैं, जो चाहें कह सकते हैं, बिल्कुल भी न छुपाएं, न शरमाएं।" अब भाई साहब एक दिन सचमुच बिना लाग-लपेट के बोल पड़े। फिर जो हुआ, वो तो किसी बॉलीवुड ड्रामे से कम नहीं था!

अब सुनिए असली किस्सा। थेरेपिस्ट साहब हर बार यही समझाते कि "जो भी मन में आए, कह दो।" लेकिन जैसे ही OP ने सीधा-सीधा कह दिया कि "मुझे लगता है सेशन काफी रिपिटिटिव (दोहराव वाला) हो गया है, सवाल रटे-रटाए लगते हैं, कई बार ऐसा लगता है जैसे मैं किसी इंसान से नहीं बल्कि एक प्रॉसेस से बात कर रहा हूँ। आपकी कुछ प्रतिक्रियाएँ भी थोड़ी बनावटी या स्क्रिप्टेड लगती हैं।"

बस फिर क्या था! कमरे का माहौल एकदम बदल गया। थेरेपिस्ट की कुर्सी भी बेचैन हो गई और खुद साहब भी। चेहरे पर टेंशन, कुर्सी पर हिलना-डुलना और अचानक 'सच्चाई' की जगह 'सम्मानपूर्वक बोलो' वाली बात आ गई। OP की ईमानदारी अब उन्हें 'प्रतिरोध' या 'प्रोजेक्शन' लगने लगी। पांच मिनट पहले जो बात 'अटल नियम' थी, अब वो 'सीमा उल्लंघन' बन गई!

एक कमेंटेटर ने तो खूब मज़ाकिया अंदाज में लिखा – "भाई, अब नए थेरेपिस्ट का पता ढूंढो।" (समझो, जैसे हमारे यहां कोई डॉक्टर बार-बार एक्स-रे करवाए और मर्ज ना समझे, तो लोग डॉक्टर बदलने की सलाह दे ही देते हैं।) दूसरे ने जोड़ा – "हर थेरेपिस्ट अच्छा नहीं होता, कई लोग तो खुद की समस्या सुलझाने के लिए यह पेशा चुन लेते हैं!"

एक और कमेंट में बड़ी गूढ़ बात कही गई – "अगर तुम्हारा थेरेपिस्ट फीडबैक लेने पर रक्षात्मक (defensive) हो जाए, तो ये तो बड़ी लाल झंडी है।" हमारे देश में भी यही देखा गया है – चाहे बॉस हो, टीचर हो, या काउंसलर, अगर आप ईमानदारी से बात कर दो और सामने वाला बुरा मान जाए, तो रिश्ता बिगड़ता ही है।

एक मनोवैज्ञानिक (psychologist) ने Reddit पर समझाया – "थेरेपी में थेरेपी की प्रक्रिया पर बात करना भी बहुत जरूरी है। OP ने जो फीडबैक दिया, वो दोनों के रिश्ते को मजबूत करने का मौका था, लेकिन थेरेपिस्ट ने उसे मिस कर दिया।" (यानी, जैसे हम अपने पंडित जी से भी पूजा के तरीके पर सवाल कर दें, तो असली पंडित वही है जो हंसकर समझाए, ना कि गुस्सा हो जाए!)

मजेदार बात ये रही कि सेशन का बाकी समय OP से ये पूछा जाता रहा कि "तुम्हें ये सब कहने की जरूरत क्यों लगी?" लेकिन असल मुद्दे – यानी थेरेपिस्ट के व्यवहार पर – चर्चा ही नहीं हुई। OP खुद को दोषी और असहज महसूस करके बाहर निकल गए, जबकि उन्होंने तो वही किया था, जो उनसे बार-बार कहा गया था।

एक कमेंट ने तो इसे सीधे-सीधे 'गिल्ट ट्रिपिंग' (guilt tripping) और 'भावनात्मक हेरफेर' (emotional manipulation) बताया। "तुमने मुझे बुरा महसूस कराया, अब तुम्हें भी बुरा फील कराओ!" – कुछ ऐसा ही भाव था थेरेपिस्ट का।

यहाँ एक और टिप्पणी ने भारतीय संदर्भ में बिल्कुल सटीक बात कही – "अगर तुम्हें अपने थेरेपिस्ट की भावनाओं का ख्याल रखना पड़े, तो समझो खेल खत्म!" थेरेपी का मतलब ही है कि आप खुलकर अपनी बात कह सको, डर या संकोच के बिना। अगर वही सुरक्षित जगह न रहे, तो फिर फायदा क्या?

कुछ कमेंट्स में हल्की-फुल्की मस्ती भी थी – "तुम थेरेपी में खराब नहीं हो, तुम्हारे अपॉस्ट्रॉफी (apostrophe) ज़रूर खराब हैं!" (अब यहां हिंदी वाले हैं, तो हमारा 'शुद्ध' और 'अशुद्ध' का फंडा कुछ अलग है, लेकिन बात वही है – इंसानियत सबसे बड़ी!)

सार यही निकलता है: चाहे थेरेपिस्ट हो या कोई भी 'समझदार' समझा जाने वाला इंसान, अगर वो आपकी ईमानदारी बर्दाश्त न कर सके, तो या तो खुद में सुधार लाए या आप नया विकल्प तलाशें। जैसे एक कमेंटेटर ने कहा, "कभी-कभी सही डॉक्टर/गाइड/काउंसलर ढूंढने में समय और कोशिश दोनों लगते हैं, लेकिन जब मिल जाए, तो खुद को बेहतर महसूस करना सचमुच संभव है।"

तो अगली बार अगर कोई आपको कहे – "मन की बात कहो, खुलकर कहो", तो पहले ये भी देख लो कि सामने वाला सुनने की हिम्मत रखता है या नहीं! आखिरकार, ईमानदारी और खुलेपन की कीमत दोनों तरफ होती है।

अगर आपके साथ भी कभी ऐसा अजीब अनुभव हुआ है – चाहे ऑफिस में, रिश्तों में या किसी काउंसलर के पास – तो नीचे कमेंट में जरूर बताइए। क्या आपको भी कभी अपनी 'सच्चाई' भारी पड़ गई? या फिर किसी ने आपकी बात को खुले दिल से स्वीकार किया? आपकी कहानी पढ़ने का हमें इंतजार रहेगा!

शुभकामनाएं, और याद रखिए – अपने मन की बात कहने से कभी मत डरिए, लेकिन सुनने वाले के कान भी मजबूत होने चाहिए!


मूल रेडिट पोस्ट: My therapist told me to always be 100 percent honest and unfiltered, so I did